टोक्यो ओलंपिक के महिला हॉकी के कांस्य पदक मुकाबले में भारत को बेहद नजदीकी मुकाबले में ग्रेट ब्रिटेन के हाथों 4-3 से हार मिली और ओलंपिक में महिला टीम का पहला पदक जीतने का सपना अधूरा रह गया। लेकिन सच कहें तो बहुत कम खेल प्रेमियों ने भारतीय महिला टीम से पोडियम फिनिश की उम्मीद की थी। इसलिए ऐसे में ये बात ध्यान देने वाली है कि इन लड़कियों ने 1.3 अरब भारतीयों को पदक जीतने की उम्मीद दी और यही बात महिला हॉकी के नए उदय का कारण बनेगी।
पिछड़ने के बाद की खेल में वापसी
भारतीय टीम ने पूरे मैच में शानदार प्रयास किया और जीत की दहलीज पर थी। रानी रामपाल की अगुवाई में खेल रही टीम इंडिया दूसरे क्वार्टर में 2-0 से पिछड़ रही थी। लेकिन टीम ने एक के बाद एक ताबड़तोड़ वार किए और दूसरे क्वार्टर में दो मिनट के अंतराल में गुरजीत कौर ने 2 पेनेल्टी कॉर्नर को गोल में बदलकर बराबरी कर ली। कुछ मिनटों बाद वंदना कटारिया ने बेहद सूझबूझ दिखाते हुए गोलपोस्ट के पास से स्टिक से डिफ्लेक्शन देकर तीसरा गोल कर टीम को एक गोल की बढ़त दिला दी। लेकिन इसके बाद ब्रिटेन ने तीसरे क्वार्टर में गोल कर मामला बराबरी का कर दिया। चौथे क्वार्टर में ब्रिटेन ने पेनेल्टी कॉर्नर को गोल में तब्दील कर 4-3 की निर्णायक बढ़त ले ली।
हार में भी जीत है
भारतीय खेल प्रेमी थोड़े निराश जरूर हैं, क्योंकि महिला हॉकी टीम ने क्वार्टर-फाइनल में ऑस्ट्रेलिया जैसी मजबूत टीम को मात देकर सभी को चौंका दिया था और खेल प्रेमियों को अब पदक की आस लगी थी। और किसी को भी पदक के इतना करीब आकर हारना पसंद नहीं है। लेकिन ये भी जरूर है कि जब ग्रुप मुकाबलों में टीम ने लगातार 3 गेम गंवाएं, तो सभी ने उम्मीद छोड़ दी थी। लेकिन कोच शॉर्ड मिरयने ने टीम का हौसला बनाए रखा और उन्हें पोडियम की दहलीज तक ले गए। 1980 में ओलंपिक में पहली बार महिला हॉकी को जगह मिली और टोक्यो ओलंपिक 2020 में पहली बार टीम ने सेमीफाइनल में जगह बनाई है।
विश्व रैंकिंग की 7वें नंबर की भारतीय टीम चौथे स्थान पर रहती है, क्वार्टर-फाइनल में ऑस्ट्रेलिया को हराती है, सेमीफाइनल में अर्जेंटीना जैसी शानदार टीम से 2-1 के अंतर से हारती है, ऐसे में सकारात्मक रुख दिखाना बेहद जरुरी है। भारतीय टीम की कमजोरी उसका डिफेंस रहा है, जिसमें गोलकीपर सविता पुनिया के अलावा बाकि उदिता, ग्रेस इक्का को मजबूती दिखानी होगी। कोच शोर्ड मरीन भी टीम को यही सीख देंगे।
कोई भी खेल धीरे-धीरे ही आगे बढ़ता है और टीम धीरे-धीरे ही बढ़ती है। ऐसे में भारतीय महिला हॉकी टीम ने अपना बेस्ट देने की कोशिश की जिसकी सराहना होनी चाहिए। इस बार नहीं लाए मेडल, तो 2024 को लक्ष्य बनाकर आज से ही तैयारी शुरु कर दें। पुरुष हॉकी टीम ने 41 साल बाद हॉकी में देश को पोडियम फिनिश दिलवाई है। इससे देशभर में सभी खेल और हॉकी प्रेमियों और खिलाड़ियों का हौसला बढ़ा है। इसलिए जरूरी है कि रानी रामपाल एंड कंपनी निराश न हो और अगले साल होने वाले FIH विश्व कप और उसके बाद पेरिस 2024 को लक्ष्य बनाए।