भारत में इन दिनों टोक्यो ओलंपिक खेलों का शूमार हर किसी के सर चढ़ कर बोल रहा है। भारत ने टोक्यो में शानदार प्रदर्शन करते हुए आज तक का सबसे अच्छा प्रदर्शन किया और 7 पदक जीते। इस ओलंपिक में भारत को जो सुनहरी यादें दी हैं, वो यहां के देशवासी कभी नहीं भूल सकते।
इंडिया में ओलंपिक से कुछ दिन पहले और कुछ दिन बाद तक लोगों को क्रिकेट के अलावा अन्य खेलों का शूमार रहता है। इसके बाद सब अपने काम में मस्त हो सरकार पर खिलाड़ियों का ना मिलने सुविधा का दोषरोपण कर देते हैं। हिंदुस्तान में ओलंपिक पदक विजेता पर पैसों की बारिश होती है। लेकिन चौथे स्थान पर जो खिलाड़ी रहते हैं उन्हें आगे जाकर कोई भी नहीं पूछता। अब आप बोलेंगे कि स्वर्गीय मिल्खा सिंह, पीटी उषा, और दीपा कर्माकर को वो सब कुछ मिला जिसके वो हकदार हैं। हालाँकि टोक्यो ओलंपिक्स में भारतीय महिला हॉकी टीम और गोल्फ में अदिति अशोक चौथे स्थान पर रहीं और उम्मीद है कि इनके बेहतरीन प्रदर्शन को लोग लम्बे समय तक याद रखेंगे।
व्यक्तिगत खिलाड़ी कभी-कभी मेडल ला भी देते हैं, लेकिन टीम इवेंट में हॉकी छोड़ किसी खेल में हम ये नहीं कह सकते कि हमारे खिलाड़ी इस टीम स्पोर्टस में अच्छा कर रहा है। टीम स्पोर्टस में चौथा स्थान तक भी बहुत मुश्किल से पहुंचते हैं। चौथे स्थान वाले टीम का कोई नहीं पूछता। उदाहरण के तौर पर अब भारतीय महिला टीम के कांस्य पदक मुकाबले में हार को देख सकते हैं। खिलाड़ियों के प्रदर्शन को कई लोगों को सराहना मिला। लेकिन कई ऐसे तबके के लोग हैं, जो मेडल ना जीतने पर उस गांव या जिले के लोग को दोषी पाते हैं।
महिला हॉकी खिलाड़ी वंदना कटारिया को उनके आस-पड़ोस के लोग ताना कस रहे हैं। चौथे स्थान पर काबिज होना क्या गुनाह है? बात यहां किसी स्थान की नहीं है । बात दरअसल यहां पर सोच की है। किसी को ज्यादा औऱ कुछ को कम देंगे तो आभाव होना लाजमी है। जब आभाव होगा तो ऐसे प्रश्न सामने आने लाजमी हैं। आभाव प्रयोग का इस्तेमाल यहां पर खिलाड़ियों को मिल रही सुविधा पर है। टोक्यो ओलंपिक अपनी समापान की ओर अग्रसित हो रहा है। ऐसे में जब हम खिलाड़ी वतन वापस आए तो उनके सम्मान आप कुछ नेक करने का जरूर सोचिएगा। अगर कुछ ना कर सके तो अपने आस-पास के उभरते हुए खिलाड़ियों को ही सहायता जरूर करिएगा। क्योंकि ना जाने आपके आस-पास ही एक ओलंपिक मेडलिस्ट पनप रहा हो। पहले या चौथे ये सब हमारी सोच पर है।