टोक्यो में पैरालंपिक खेलों की शुरुआत शानदार अंदाज में हुई। भव्य शुभारंभ समारोह में बढ़िया परफॉरमेंस, आतिशबाजी और एथलीटों की अगुवाई के बीच दिव्यांग खिलाड़ियों का यह खेल महाकुंभ शुरु हुआ। ओपनिंग सेरेमनी में एक खास मौका भी देखने को मिला जहां तालिबान के कब्जे में आ चुके अफगानिस्तान के साथ आयोजकों ने हमदर्दी दिखाते हुए इस देश का झण्डा भी ऐथलीट मार्च में शामिल किया। तालिबान के कब्जे के कारण उत्पन्न हुई स्थिति की वजह से अफगानिस्तान के पैरा ऐथलीट पैरालंपिक में भाग नहीं ले रहे हैं।
अफगानिस्तान के झण्डे को लहराया
दरअसल पैरालंपिक खेलों में अफगानिस्तान के पैरा ऐथलीटों को भाग लेना था। लेकिन काबुल में तालिबान के घुसने और देश पर कब्जा करने के बाद यह ऐथलीट समय से जापान नहीं पहुंच पाए। लेकिन मेजबान देश जापान ने पैरालंपिक में क्वालिफाय करने वाले अफगानी खिलाड़ियों और उनके देश का मान रखा। ऐथलीट मार्च के दौरान एक वॉलन्टियर अफगानिस्तान का झण्डा लेकर शामिल हुए। उनके साथ अफगानिस्तान का कोई दल या ऐथलीट नहीं था लेकिन मेजबान देश ने ऐसा करके दुनिया का ध्यान अफगानिस्तान की ओर खींचने की कोशिश की है, क्योंकि तालिबान ने कब्जे के बाद इस देश का नाम और राष्ट्रीय ध्वज दोनों ही बदलने का ऐलान कर दिया है।
अंतर्राष्ट्रीय पैरालंपिक समिति ने ट्वीट कर यह विचार साझा किया कि अफगानिस्तान को मंच पर दिखाने का कारण वैश्विक सौहार्दता का है।
अफगान खिलाड़ियों के साथ दुनिया
ओपनिंग सेरेमनी में मेजबान जापान ने आज तक प्रयोग में आ रहा अफगानिस्तान का राष्ट्रीय ध्वज वॉलन्टियर के माध्यम से सेरेमनी में शामिल किया। जिस मंच पर दुनिया के सभी देश मौजूद हों, वहां पर ऐसा करना इस बात का संकेत है कि दुनिया के अधिकतर देशों को अफगानिस्तान में पनपे हालात के बाद वहां की आम जनता और खिलाड़ियों के साथ हमदर्दी है।
तालिबान के ताकत हथियाने के बाद देश में सभी लोगों के जीवन के साथ ही खिलाड़ियों के जीवन पर भी असर पड़ा है।हाल ही में खत्म हुए टोक्यो ग्रीष्मकालीन ओलंपिक खेलों में अफगानिस्तान के दल ने हिस्सा लिया था, दल की अगुवाई करने वाली ऐथलीट किमीया यूसेफी आज तालिबान के आतंक के बाद ईरान में शरण लेकर रहने को मजबूर हैं।
टोक्यो में दिख सकते हैं अफगानी खिलाड़ी
अफगानिस्तान की ओर से ताइक्वांडों में पैरा खिलाड़ी जाकिया खुद्दादादी को पैरालंपिक में खेलने का मौका मिला था और वो पैरा खेलों में जाने वाली पहली अफगान महिला होतीं, लेकिन परिस्थितियां बिगड़ने के कारण वह टोक्यो समय से नहीं पहुंच सकीं और काबुल में ही फंसी रह गईं।
हालांकि ऑस्ट्रेलियाई सरकार की कोशिशों के बाद जाकिया और एक अन्य अफगानी खिलाड़ी को काबुल से दुबई भेज दिया गया है और उम्मीद की जा रही है कि ये दोनों खिलाड़ी समय रहते टोक्यो पहुंच कर पैरालंपिक में भाग ले सकें। यदि ऐसा होता है, तो ये निश्चित रूप से एक ऐतिहासिक घटना होगी।