ओलंपिक खेलों की किसी भी स्पर्धा के फाइनल के बाद विजेता और फैंस को इंतजार रहता है मेडल सेरेमनी का जब जीतने वाले खिलाड़ियों को गोल्ड, सिल्वर और ब्रॉन्ज का मेडल मिलता है और साथ ही विजेताओं के देशों के ध्वज धीरे-धीरे ऊपर की तरफ आते हैं। लेकिन ओलंपिक के इतिहास में एक वाकया ऐसा हुआ जब गुस्साए एक खिलाड़ी ने मेडल पहनने की बजाय उसे जमीन पर फेंक दिया।
टाई हो गया था मुकाबला
दरअसल वाकया साल 1992 के बार्सिलोना ओलंपिक का है जब पूर्व सोवियत यूनियन की टीम Unified Team के रूप में भाग ले रही थी। इस टीम के दल का हिस्सा थे रूस के इब्रागिम समादोव जो वेटलिफ्टिंग के 82.5 किलोग्राम भार वर्ग में Unified Team का प्रतिनिधित्व कर रहे थे। मुकाबले में आखिरकार तीन खिलाड़ियों ने स्नैच और जर्क मिलाकर कुल 370 किलोग्राम का वजन उठाया। ग्रीस के पिर्रोस डिमास, पोलेंड के क्रिजिस्तोफ सिमियन और समादोव ने बराबर वजन उठाया और क्योंकि सभी वेटलिफ्टर अपने सारे अटेम्प्ट इस्तेमाल कर चुके थे इसलिए किसी के पास दूसरा मौका भी नहीं था।
टाई-ब्रेकर ने दिलाया समादोव को गुस्सा
तीनों खिलाड़ियों ने बराबर वजन उठाया इसलिए निर्णायकगणों ने टाई-ब्रेकर का सहारा लिया। दरअसल दो टाई-ब्रेकर रखे गए थे। पहले टाई-ब्रेकर में वेटलिफ्टरों का वजन देखा जाना था, जिसका वजन सबसे कम होता उसे स्वर्ण पदक मिलता। अगर वजन भी बराबर होता तो यह दूसरे टाई-ब्रेकर के अंदर यह देखा जाता कि किस वेटलिफ्टर ने शुरुआती अटेम्प्ट में वजन को उठाया। ग्रीस के डिमास और पोलेंड के सिमियन का वजन 81.80 किलोग्राम था जबकि समादोव 81.85 किलोग्राम के थे। ऐसे में सिर्फ 0.05 ग्राम ज्यादा होने के कारण समादोव को तीसरे नंबर पर आना पड़ा। जबकि डिमास और सिमियन के बीच दूसरे टाई-ब्रेकर के आधार पर ग्रीस के डिमास को गोल्ड मेडल देना तय हुआ। इससे गुस्साए समादोव ने मेडल सेरेमनी के दौरान मेडल प्रदान कर रहे अधिकारी से मेडल नहीं पहना और हाथ में लेकर जमीन पर पटक दिया और वहां से चले गए।
समादोव की इस हरकत के बाद IOC ने तुरंत फैसला लेते हुए उनपर आजीवन बैन लगा दिया। हालांकि अगले दिन समादोव ने माफी मांगी लेकिन IOC ने कड़ा रुख बरकरार रखा और उनका प्रतिबंध नहीं हटाया। IOC ने इस प्रतियोगिता में चौथे स्थान पर आने वाले खिलाड़ी को भी ब्रॉन्ज मेडल नहीं दिया।
कई खिलाड़ी नाराजगी में छोड़ चुके हैं पदक
वैसे ओलंपिक खेलों में और अन्य तमाम खेल के इवेंट में कई बार ऐसे वाकये देखने को मिल जाते हैं जहां किसी कारण, विशेष रूप से निर्णायकगणों के फैसले के कारण, एथलीट विरोध के रूप में अपना मेडल या तो लेते नहीं या पहनने के बाद वहीं छोड़ देते हैं।
2008 बीजिंग ओलंपिक खेलों के दौरान ग्रीको-रोमन कुश्ती में स्वीडन का प्रतिनिधित्व कर रहे पहलवान आरा इब्राहिमनियक ने मेडल सेरेमनी के बाद अपना कांस्य पदक वहीं छोड़ दिया क्योंकि वह सेमीफाइनल मुकाबले में हुए अपने मैच के फैसले से खुश नहीं थे। यहीं नहीं साल 2014 में दक्षिण कोरिया में हुए एशियाई खेलों में मुक्केबाजी में अपनी सेमीफाइनल बाउट के फैसले से नाराज भारतीय बॉक्सर सरिता देवी ने भी मेडल सेरेमनी में अपना कांस्य पदक गले से उतारकर सेमीफाइनल में अपनी प्रतिद्वंदी रही खिलाड़ी के गले में पहना दिया।