जब Olympics में गोल्ड मेडल दिया ही नहीं गया 

ओलंपिक मेडल्स के पीछे के हिस्से का डिजायन आयोजन करने वाला शहर तय कर सकता है।
ओलंपिक मेडल्स के पीछे के हिस्से का डिजायन आयोजन करने वाला शहर तय कर सकता है।

ओलंपिक खेलों में हर खिलाड़ी पोडियम पर चढ़ने की चाह रखता है। गोल्ड, सिल्वर या ब्रॉन्ज मेडल को अपने नाम कर अपनी टीम और देश का नाम रोशन करने की चाह हर एथलीट में होती है। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इतिहास में 2 ओलंपिक खेल ऐसे रहे जब गोल्ड मेडल दिया ही नहीं गया। जी हां। आइए जानते हैं ओलंपिक के पदकों से जुड़े कुछ खास तथ्य -

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1) जब नहीं दिया गया गोल्ड मेडल

1896 में पहले आधुनिक ओलंपिक ग्रीस की राजधानी एथेंस में खेले गए। पहली बार ओलंपिक खेल हो रहे थे तो ग्रीस की पौराणिक पंरपरा के तहत जीतने वाले खिलाड़ियों को जैतून के पत्तों का बना ताज पहनाया गया और चांदी का मेडल दिया गया। रनर-अप खिलाड़ियों को कॉपर या ब्रॉन्ज के मेडल दिए गए।

2) किसी खिलाड़ी को नहीं मिला मेडल

कुछ ओलंपिक खेलों में आधिकारिक 5 रिंग भी मेडल्स पर नहीं दर्शाई गईं।
कुछ ओलंपिक खेलों में आधिकारिक 5 रिंग भी मेडल्स पर नहीं दर्शाई गईं।

1900 में फ्रांस के पेरिस में दूसरे ओलंपिक खेल हुए जहां जीतने वाले खिलाड़ियों को मेडल दिए ही नहीं गए। बजाय इसके खिलाड़ियों को ट्रॉफी देकर सम्मानित किया गया। ऐसा इन खेलों के इतिहास में पहली और आखिरी बार हुआ। हालांकि IOC ने आगे चलकर पहले और दूसरे ओलंपिक खेलों के विजेताओं को भी उनके स्थान अनुसार गोल्ड, सिल्वर और ब्रॉन्ज मेडल प्रदान किए।

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3) पहली बार दिए गए तीनों पदक

1904 में जब अमेरिका के मिसौरी के सेंट लुई में ओलंपिक खेलों का आयोजन हुआ तो पहली बार पहले, दूसरे और तीसरे स्थान पर आने वाले खिलाड़ियों को क्रमश: स्वर्ण, रजत और कांस्य पदक दिया गया।

4) डिजाइन होता है मेजबान की जिम्मेदारी

2016 रियो और 2012 लंदन ओलंपिक के मेडल के पिछले हिस्से के डिजायन अलग-अलग है।
2016 रियो और 2012 लंदन ओलंपिक के मेडल के पिछले हिस्से के डिजायन अलग-अलग है।

ओलंपिक ग्रीष्मकालीन हों या शीतकालीन, खेलों की मेजबानी करने वाले देश के ऊपर होता है कि वह किस तरह के मेडल विजेताओं को दे। वैसे साल 1928 में ऐम्सटर्डैम (नीदरलैंड) में हुए खेलों के मेडल के लिए अंतर्राष्ट्रीय ओलंपिक समिति ने विशेष प्रतियोगिता के तहत एक डिजायन को चुना जिसमें मेडल के आगे वाले हिस्से में ग्रीक सभ्यता में जीत की देवी मानी जाने वाली नाइकी (Nike) को दर्शाया गया है एवं पास ही रोमन कोलोजियम बना है। इसके पीछे वाले हिस्से में एक ऐथलीट को उठाए हुए लोग दर्शाए गए। 1972 के म्यूनिक ओलंपिक में पीछे के इस डिजाइन को बदला गया और तभी से IOC ने मेजबान देशों को मेडल के पीछे के हिस्से का डिजायन बनाने की इजाजत दी।

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5) जब डिजायन को लेकर हुआ विवाद

सिडनी ओलंपिक में दिए गए मेडल में डिजाइनर ने सिडनी के विश्व प्रसिद्ध ओपेरा हाउस को बनाया था जिसका इतिहासकारों ने काफी विरोध किया था।
सिडनी ओलंपिक में दिए गए मेडल में डिजाइनर ने सिडनी के विश्व प्रसिद्ध ओपेरा हाउस को बनाया था जिसका इतिहासकारों ने काफी विरोध किया था।

साल 2000 के सिडनी ओलंपिक में जो पदक बनाया गया था उसमें आगे के हिस्से में प्राचीन ग्रीक सभ्यता की जीत की देवी Nike तो थीं,लेकिन रोमन कोलोजियम के बजाय ओपेरा हाउस को दर्शाया गया। ग्रीस ने इस मेडल का विशेष रूप में विरोध किया क्योंकि ओपेरा हाउस दिखाना तो गलत था ही लेकिन रोमन कोलोजियम भी ग्रीक सभ्यता का हिस्सा नहीं है, और ग्रीस के लोग इस बात से नाराज थे कि लगभग 76 सालों तक किसी ने भी इस गलती को नहीं समझा कि ग्रीस की सभ्यता की देवी के साथ मेडल पर रोमन कोलोजियम की तस्वीर थी।

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ग्रीस ने 2004 एथेंस ओलंपिक में पदक को अपने पौराणिक इतिहास के करीब लाते हुए नए रूप से तैयार किया।
ग्रीस ने 2004 एथेंस ओलंपिक में पदक को अपने पौराणिक इतिहास के करीब लाते हुए नए रूप से तैयार किया।

ऐसे में साल 2004 में जब ओलंपिक खेल अपनी जन्मभूमि एथेंस में हुए तो इसमें जीत की देवी Nike तो थी हीं, साथ ही कोलोजियम के स्थान पर ग्रीस का पेनेथेनाइक स्टेडियम बनाया गया।

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6) गोल्ड और सिल्वर से ज्यादा दिए जाते हैं ब्रॉन्ज मेडल

ओलंपिक में बॉक्सिंग, ताइक्वांडो, कुश्ती और जूडो की स्पर्धाएं शारीरिक रूप से की जाती हैं जिसमें दो अपोनेंट होते हैं। ऐसी स्पर्धाओं में कुल 4 पदक दिए जाने का प्राविधान है और ब्रॉन्ज मेडल के लिए अलग से मैच नहीं होता। मतलब यह कि यदि सेमिफाइनल में हारने वाले दोनों खिलाड़ियों को ब्रॉन्ज मेडल दिया जाता है। जिससे आधिकारिक रूप से दिए जाने वाले ब्रॉन्ज मेडल सिल्वर और गोल्ड से संख्या में ज्यादा होते हैं।

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Edited by निशांत द्रविड़
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