ओलंपिक तक ही इनामी राशि क्यों?

Athletics - Olympics
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टोक्यो ओलंपिक को समाप्त हुए कुछ वक्त हो गए हैं। लेकिन अभी तक इन खेलों का रंग लोगों के सर-चढ़कर बोल रहा है। खिलाड़ियों की वतन वापसी के साथ ही उनका सम्मान रंगारंग कार्यक्रम के साथ किया जा रहा है। स्वर्ण,रजत,कांस्य पदक विजेता के साथ ही उन खिलाड़ियों का भी सम्मान किया जा रहा है। जो इस प्रतियोगिता में मेडल नहीं जीत पाए हैं। खिलाड़ियों को ऐसे भव्य समारोह पहले कभी नहीं हुआ। बावजूद इसके सवाल ये खड़ा होता है। ये सारी सुविधा ओलंपिक तक क्यों सीमित है? ओलंपिक 4 साल में एक बात होता है। क्यों हम सिर्फ 4 साल में किसी खिलाड़ी के पदक जीतने का इंतजार करेंगे?

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भारत के हर खिलाड़ियों का हो सम्मान

भारतीय टी्म विभीन्न खेलों में साल भर कई अंतराष्ट्रीय प्रतियोगिता में हिस्सा लेती है। कई बार खिलाड़ी मेडल के साथ आते हैं। कई बार हार के। हारने वाले खिलाड़ियों को दूर जीतने वाले खिलाड़ियों को कोई पूछता तक नहीं 2009 में भारतीय महिला बास्केटबॅाल टीम के एक खिलाड़ी का बयान सामने आया था। "अगर कोई क्रिकेटर मेडल जीतकर आता तो उसके सम्मान के लिए कई तरह की चीज की जाती " लेकिन मेडल के साथ आने के बाद हमें कोई पूछने वाला नहीं है।

ओलंपिक पदक विजेता के अलावा अन्य खिलाड़ियों के लिए बढ़े सुविधा

भारत में ओलंपिक पदक विजेता रातों-रात करोड़पति बन जाता है। उसके पास इतनी राशि मौजूद रहती है। जिससे रिटायरमेंट के बाद उसे आगे का जीवन कैसे व्यतीत करें उसके बारे में सोचना नहीं पड़ता। लेकिन भारत में आज के समय में भी कई ऐेसे खिलाड़ी मौजूद हैं।जिनके पास तमाम सुविधा होने के बावजूद भी उनकी रोजमर्रा की जिंदगी बड़ी दुखदायक तरह से गुजरती। कई बार ऐसे खिलाड़ियों की कहानी सुनने को मिलती है।जहां दो वक्त के रोटी के लिए खिलाड़ी मे़डल बेचने को तैयार रहते हैं।

हालांकि बीतें कुछ वर्षों में सुविधा जरूर बदली है। लेकिन सुविधाओं की जो गति होनी चाहिए वो नहीं मिल रही है। महानगरों में सुविधाओं का भरमार है। वहीं गावं के बारे में बात करें तो वो सुविधा ना के बराबर है। भारत में पदक विजेता की सूची निकालें तो अधिकांश खिलाड़ी गांव से आते हैं। गांव-देहात में बेहतर स्टेडियम,खाने के बेहतर खाना,पहनने को अच्छे कपड़ा हो तो फिर सोने पर सुहागा है। सरकार को इन सब बारे में सोचना होगा। सिर्फ ओलंपिक ही नहीं बल्कि हर खिलाड़ी को वो सहयोग मिलें जिसका वो हकदार है।

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Edited by निशांत द्रविड़
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