मुझे दुःख है कि मैं ओलंपिक में देश के लिए मेडल नहीं जीत सका । मैंने अपना श्रेष्ठ देने की कोशिश की और पिछले चार सालों में विपरीत परिस्थितयों में हमने जी तोड़ मेहनत की और ओलंपिक के लिए क्वालीफाई किया । खासकर ऐसे समय में जब पिछले चार साल से मेरे पास कोई स्पॉन्सरशिप नही थी, न ही सरकार की ओर से कोई सहायता थी । जब हम देश के लिए मेडल नहीं जीत पाते तो बहुत दुःख होता है । लेकिन इस बारे में आप कुछ नही कर सकते और कई बार मेहनत करने के बाद भी चीजें आपके पक्ष में नही जाती। खेल के मैदान में कोई हारना नहीं चाहता हर कोई जीतना चाहता है, लेकिन हार-जीत खेल का हिस्सा हैं।
हमारा काम खेलना होता है और उसमे हम अपना सर्वश्रेष्ठ देते हैं। यदि हमारे देश के ओलंपिक में मेडल नही आते तो खिलाडियों को दोष देना गलत होगा । हमारे देश के खिलाडियों में प्रतिभा की कोई कमी नही है । वे विश्व के श्रेष्ठ खिलाडियों के साथ कम्पटीशन करके ओलंपिक तक पहुँचते हैं, ये भी कम उपलब्धि नही है । लेकिन एक खिलाड़ी की हार के पीछे बहुत सारी परिस्थितियां होती हैं जो हमारे खिलाडियों के प्रदर्शन को प्रभावित करती हैं । किसी खिलाडी के पास जॉब नही होती, कभी स्पॉन्सरशिप नही होती, कभी प्रमोशन की समस्या, कभी परिवार को लेकर समस्याएं, यहाँ तक कई बार तो खिलाडी के पास ट्रेनिंग और डाइट के लिए भी पैसे नही होते । ऐसे में आप कैसे एक खिलाडी को जिम्मेदार ठहरा सकते हो । अगर आप उनसे पदक जीतने की उम्मीद करना चाहते हैं तो आपको उनको वैसे ही तैयार करना होगा जैसे विश्व के दूसरे देश करते हैं । उनका वैसे ही ख्याल रखना होगा जैसे मैडल जितने वाले देशों में रखा जाता है । हमारे सिस्टम में एक बहुत बड़ी खामी है कि हमारी सरकार मेडल जीतने के बाद तो खिलाडी को बहुत कुछ देती है, लेकिन उससे पहले खिलाडी को शारीरिक और मानसिक रूप से तैयार कैसे करना है, इसका ख्याल कोई नही रखता।
अब ओलंपिक से जाने के बाद खिलाडियों की वैल्यू जीरो हो जाएगी । उन्हें कोई याद नही रखेगा, शायद कोई उन्हें हौसला भी न दे । लेकिन ये खिलाडी फिर अपने अपने दम पर, अपनी अपनी जगह अगले कॉम्पिटिशन की तैयारियों में जुट जायेंगे । क्योंकि हमारे दिलों में देश के तिरंगे को लहराते देखने का जज़्बा है । इनकी आवाज़ उठाने वाला कोई नही, खिलाडी खिलाड़ी भी सिस्टम से डरकर ज्यादातर आवाज नही उठाते । लेकिन यदि हमें ओलंपिक में मेडल चाहिए तो हमे आवाज उठानी होगी, कुछ ऐसे फैसले लेने होंगे की अगले ओलंपिक में हम पदक तालिका में टॉप में रहने वाले देशों के बराबर खड़े हों ।
मैं आप सभी मीडिया के साथियों के माध्यम से प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी जी से प्रार्थना करना चाहता हूँ कि वो अपने कीमती समय में से मुझे 10 मिनट का समय दें । ताकि मैं खेलों और खिलाडियों की समस्यायों और समाधान से उनको अवगत करा सकूँ । मेरे कोच राजेश कुमार और मैंने 2014 में 15 सूत्रों का एक स्पोर्ट्स ड्राफ्ट खेलमंत्री जी को दिया था, लेकिन उसपर कोई अमल नही हो पाया । जबकि बहुत बेसिक चीजें करके भी हम भारतीय खेलों में क्रन्तिकारी परिवर्तन ला सकते हैं । मैं जानता हूँ कि प्रधानमंत्री जी का समय बहुत कीमती है और वे बहुत व्यस्त रहते हैं । लेकिन यदि हमें खेलों की दुनिया में देश को ऊपर उठाना है तो हमें भ्रष्टाचार की बेड़ियों से खेलों को बाहर निकलना होगा । और उसी के लिए मैं प्रधानमंत्री जी से मिलना चाहता हूँ । ताकि देश के खिलाडियों की बात मैं प्रधानमंत्री तक पहुंचा सकूँ । अन्यथा अगले ओलिंपिक में भी हम ऐसे ही कभी सिस्टम को तो कभी अपने खिलाडियों को कोसते रह जायेंगे और ये सिलसिला यूँही चलता रहेगा।
मैं जानता हूँ कि मैं ओलंपिक में मेडल नही जीत पाया, लेकिन मैं हारा नही हूँ, मैं अपने देश के लिए, अपने तिरंगे के लिए और अपने देशवाशियों के लिए फिर उठूंगा, फिर लड़ूंगा और फिर जीतूंगा । अभी बहुत संघर्ष, बहुत सी लड़ाईयां बाकि हैं । मैं जानता हूँ कि अब मेरे लिए भी राह आसान नही होगी । मेरे कोच जो 2010 से द्रोणाचार्य के हक़दार हैं, उसके लिए भी हमे लड़ना होगा । मैं ये भी जनता हूँ कि ऐसा कहने के बाद मेरे सामने और मुश्किलें खड़ी हो जाएँ, लेकिन खेलों, खिलाडियों और बॉक्सिंग को बचाने के लिए मुझे जो भी करना पड़े मैं करूँगा, क्योंकि हम सभी को पता है देश में खेलों की हालात क्या हैं और खासकर बॉक्सिंग तो खत्म होने की कगार पर है । हमें अपने खेलों में जान डालने के लिए हर सम्भव प्रयास करना होगा । मैं एक और संघर्ष के लिए तैयार हूँ । आप सभी ने विषम परिस्थितियों में भी मेरा साथ दिया और मुझे जो प्यार दिया, जो सम्मान दिया है उसके लिए आप सभी को दिल से धन्यवाद ।
आपका अपना
बॉक्सर मनोज कुमार
Edited by Staff Editor