भारतीय महिला बॉक्सर जैस्मिन लम्बोरिया ने बर्मिंघम कॉमनवेल्थ खेलों में 60 किलोग्राम भार वर्ग का ब्रॉन्ज जीत अपने परिवार की सालों की मेहनत का फल दे दिया। 20 साल की जैस्मिन का ये पहला कॉमनवेल्थ मेडल है और उन्हें इस स्तर तक पहुंचने के लिए न सिर्फ परिवार का विरोध झेलना पड़ा बल्कि लड़कों से घूंसे भी खाने पड़े।
हरियाणा के भिवानी की रहने वाली जैस्मिन का जन्म 30 अगस्त 2001 को हुआ। बचपन में वह एथलेटिक्स और क्रिकेट पसंद करती थी। लेकिन फिर अपने चाचा संदीप और परविंदर को बॉक्सिंग करते देखा तो उन्होंने भी बॉक्सिंग करने की ठानी। लेकिन उनको पिता जयवीर ने घर के बड़ों और समाज के दबाव में मना कर दिया और पिता ने बेटी से कोई दूसरा खेल चुनने को कहा, लेकिन वह नहीं मानी। फिर उन्होंने चाचा संदीप और परविंदर से मदद मांगी, दोनों ने उनके पिता को मनाया।
जैस्मिन ने ट्रेनिंग चाचा परविंदर की लम्बोरिया बॉक्सिंग अकादमी में शुरु की। यहां सभी खिलाड़ी लड़के ही थे। शुरुआती 2-3 साल तो ट्रेनिंग के दौरान वो लड़कों से पिटाई खाती रहीं और खूब घूंसे झेले। लेकिन इससे उनका डिफेंस काफी मजबूत हो गया। धीरे-धीरे उनकी तकनीक और बेहतर हुई और अटैक भी अच्छा होता गया और वो अकादमी के लड़कों को कड़ी टक्कर देने लगीं।
साल 2019 में जैस्मिन ने ऑल इंडिया यूनिवर्सिटी गेम्स में एशियाई चैंपियनशिप ब्रॉन्ज विजेता मनीषा मोउन को हराकर सभी को हैरान कर दिया। जैस्मिन ने इस साल मई में हुए IBA विश्व चैंपियनशिप के लिए हुए ट्रायल में पूर्व विश्व चैंपियनशिप ब्रॉन्ज मेडलिस्ट सिमरनजीत कौर को मात दी। इसके बाद कॉमनवेल्थ गेम्स के क्वालिफिकेशन में उन्होंने एक बार फिर सिमरनजीत को हराया और फाइनल मुकाबले में तो उन्होंने हाल ही में विश्व चैंपियनशिप में ब्रॉन्ज लाने वाली परवीन हूडा को हराया।
कॉमनवेल्थ खेलों में जैस्मिन को अपनी स्पर्धा में सीधे क्वार्टरफाइनल में जगह मिली थी और उन्हें कम से कम ब्रॉन्ज के लिए केवल ये बाउट जीतनी थी और ऐसा हुआ भी। लेकिन इस बाउट तक पहुंचने का सफर आसान नहीं था और जैस्मिन ने अपनी जिद और जज्बे से इसे पूरा किया है।