बॉक्सिंग के माहौल में पले-बढ़े हैं ब्रॉन्ज मेडलिस्ट हुसामुद्दीन, पिता शमसुद्दीन बने प्रेरणा

हुसामुद्दीन ने लगातार दूसरी बार कॉमनवेल्थ खेलों में ब्रॉन्ज मेडल जीता है।
हुसामुद्दीन ने लगातार दूसरी बार कॉमनवेल्थ खेलों में ब्रॉन्ज मेडल जीता है।

कहा जाता है कि किसी भी मां-बाप का सपना होता है कि उनके बच्चे जिंदगी में उनसे बेहतर करें, और जो मुकाम उन्होंने खुद हासिल किया हो उनके बच्चे उससे भी ऊंचा जाएं। तेलंगाना में रहने वाले पूर्व अंतर्राष्ट्रीय बॉक्सर शमसुद्दीन ने यही सोचते हुए अपने 6 बेटों को बॉक्सिंग सिखाई, और अब उनमें से एक मोहम्मद हुसामुद्दीन ने देश को कॉमनवेल्थ गेम्स में ब्रॉन्ज दिलाया है।

28 साल के हुसामुद्दीन ने पुरुषों की 56 किलोग्राम वेट कैटेगरी में बर्मिंघम कॉमनवेल्थ गेम्स का ब्रॉन्ज जीता। हुसामुद्दीन का ये लगातार दूसरा कॉमनवेल्थ ब्रॉन्ज है और साल 2018 में उन्होंने इसी स्पर्धा में कांस्य पदक जीता था। हुसामुद्दीन का जन्म 12 फरवरी 1994 को निजामाबाद में जन्में हुसामुद्दीन 6 भाईयों में सबसे छोटे हैं। पिता शमसुद्दीन निजामाबाद के कलेक्ट्रेट मैदान में बॉक्सिंग सिखाया करते थे और अपने सभी बेटों को भी ये गुर सिखाया।

हुसामुद्दीन के दो भाई भी अंतर्राष्ट्रीय स्तर के मुक्केबाज रह चुके हैं, ऐसे में जब पिता ने शुरुआत में ट्रेनिंग दी तो हुसामु्द्दीन हिचकिचाते थे कि पिता की अपेक्षा पर खरे नहीं उतरे तो क्या होगा। लेकिन धीरे-धीरे हुसामुद्दीन ने स्किल के मामले में अपने भाईयों को पीछे छोड़ दिया और राज्य स्तरीय प्रतियोगिताओं में अपना सिक्का जमा लिया। साल 2009 में औरंगाबाद में हुए जूनियर नेशनल्स में हुसामुद्दीन को ब्रॉन्ज मिला। मई 2011 में हुसामुद्दीन ने यूश नेशनल्स में सिल्वर मेडल हासिल किया।

साल 2016 में हुसामुद्दीन ने पहली बार सीनियर नेशनल चैंपियनशिप खेली और गोल्ड जीत गए। इसके बाद उन्होंने इंडियन आर्मी ज्वाइन की। पुणे के आर्मी स्पोर्ट्स इंस्टिट्यूट में हुसामुद्दीन को ट्रेनिंग मिलने लगी। हुसामुद्दीन ने 2018 के गोल्ड कोस्ट कॉमनवेल्थ गेम्स का ब्रॉन्ज जीतने के बाद जर्मनी में हुए कैमिस्ट्री कप में गोल्ड जीता। 2019 में थाईलैंड ओपन में सिल्वर, 2020 में स्ट्रान्डिया कप में सिल्वर और 2021 में नेशनल्स में सिल्वर जीतने के बाद हुसामुद्दीन ने बर्मिंघम गेम्स को अपना लक्ष्य बनाया और कांस्य पदक जीतने में कामयाब रहे। हुसामुद्दीन अपनी उपलब्धि का श्रेय पिता और भारतीय सेना को देते हैं।

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