वर्ल्ड कप वनडे क्रिकेट का सबसे अहम और बड़ा टूर्नामेंट माना जाता है। टीमें चार साल मेहनत करते हुए वर्ल्ड कप में जाकर अपने प्रदर्शन से लोहा मनवाने का प्रयास करती है। कई टीमें ऐसी हैं जिन्हें अभी तक वर्ल्ड कप में एक बार भी खिताब जीतने का मौका नहीं मिला। ऑस्ट्रेलिया ने दो बार वर्ल्ड कप जीता है, दूसरी तरफ भारतीय टीम ने दो बार खिताब जीता है।
भारतीय पुरुष टीम टीम कुल तीन बार वनडे वर्ल्ड कप के फाइनल में पहुंची और दो बार उन्हें जीत दर्ज करने का सुनहरा मौका मिला था।वर्ल्ड कप के शुरुआती दो संस्करण वेस्टइंडीज ने जीते थे, इसके बाद 1983 में कपिल देव की कप्तानी में भारतीय टीम ने टूर्नामेंट जीत लिया। 2011 वर्ल्ड कप में भारत ने श्रीलंका को फाइनल मैच में पराजित किया था। इसके बाद भारतीय टीम को फिर से फाइनल में पहुँचने का मौका नहीं मिल पाया। इन सबके बीच भारतीय महिला टीम का जिक्र करना भी जरूरी हो जाता है। इस आर्टिकल में भारतीय महिला टीम के उन दो वनडे वर्ल्ड कप फाइनल मैचों की बात की गई है जिनमें उन्हें पराजय का सामना करना पड़ा। एक बात इसमें समान यह है कि दोनों वर्ल्ड कप फाइनल में मिताली राज भारतीय महिला टीम की कप्तान थी।
महिला वर्ल्ड कप में भारत के 2 फाइनल मैच
वर्ल्ड कप 2005
भारतीय महिला टीम ने ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ 2005 के वर्ल्ड कप के दौरान सेंचुरियन में फाइनल मुकाबला खेला था। इस मैच में भारतीय महिलाओं को 98 रन से मैच और खिताब गंवाना पड़ा था। ऑस्ट्रेलिया ने पहले बल्लेबाजी करते हुए 4 विकेट के नुकसान पर 215 रन बनाए। जवाब में खेलते हुए भारतीय टीम दबाव का सामना नहीं कर पाई और 117 रन बनाकर आउट हो गई। भारतीय महिलाओं ने 46 ओवर तक बल्लेबाजी की लेकिन लक्ष्य से बहुत पहले पूरी टीम आउट हो गई। मिताली राज के लिए यह निराशजनक पल था क्योंकि उनकी कप्तानी में यह पहला मौका था जब टीम खिताब जीतने से एक कदम दूर रही। उस मैच में भारतीय महिलाएं लगातार आउट होकर पवेलियन लौटती रहीं और कंगारुओं के लिए मैच आसान हो गया।
वर्ल्ड कप 2017
लॉर्ड्स के मैदान पर इस फाइनल मैच में भारतीय महिलाओं के पास जीतने का पूरा मौका था लेकिन इंग्लैंड ने 9 रन से मैच जीत लिया। पहले खेलते हुए इंग्लैंड ने 7 विकेट पर 228 रन बनाए। जवाब में खेलते हुए भारतीय टीम लक्ष्य के करीब जाकर 219 रन पर आउट हुई। 8 गेंद शेष थी और टीम जीत सकती थी लेकिन बल्लेबाज टिक नहीं पाईं। मिताली राज के लिए दूसरी बार निराश करने वाला पल था, इस बार भी वह कप्तान थीं।