कप्तानी का महत्व जितना ज़्यादा क्रिकेट में होता है उतना किसी अन्य खेल में नहीं होता है। क्रिकेट के मैदान पर यह सबसे महत्वपूर्ण जिम्मेदारी होती है, क्योंकि कप्तान द्वारा लिए गए निर्णय ही मैच के रिजल्ट पर गहरा असर डालते हैं। हमने कई शानदार खिलाड़ियों को देखा है जिन्होंने कप्तानी हासिल करने के बाद अपनी टीम को शानदार तरीके से लीड किया तो वहीं कुछ खिलाड़ी कप्तानी के बोझ तले दब गए।
कुछ ऐसे भी कप्तान रहे जो अपने करियर में काफी सफल रहे, लेकिन कभी भी वर्ल्ड कप नहीं जीत सके। ग्रुप स्टेज में अच्छा खेल दिखाने के बावजूद उनकी टीमें नॉकआउट स्टेज में मजबूत टीमों के खिलाफ फेल हो गईं। एक नजर वनडे के चार बेहतरीन कप्तानों पर जो वर्ल्ड कप नहीं जीत सके।
#4 स्टीफन फ्लेमिंग
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बाएं हाथ के बल्लेबाज स्टीफन फ्लेमिंग ने 1997 से लेकर 2007 तक न्यूजीलैंड की कप्तानी। फ्लेमिंग शांत स्वभाव के कप्तान थे और उनके इसी गुण को पूरी दुनिया में सराहा जाता था। उनके पास कभी भी 3-4 मैच जिताने वाले खिलाड़ी नहीं थे, लेकिन फिर भी उन्होंने हर खिलाड़ी का बेस्ट निकाला था।
1999 में फ्लेमिंग पहली बार कप्तान के रूप में वर्ल्ड कप पहुंचे जहां उनकी टीम ने टॉप-4 में फिनिश किया। उस वर्ल्ड कप का हाईलाइट ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ ग्रुप स्टेज में मिली जीत थी। 2003 वर्ल्ड कप में भारत और ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ हार झेलने के बाद वे सुपर सिक्स स्टेज में ही बाहर हो गए थे। अपने आखिरी वर्ल्ड कप में फ्लेमिंग ने अपनी टीम को सेमीफाइनल में पहुंचाया, लेकिन श्रीलंका के खिलाफ उन्हें हार झेलनी पड़ी।
मैच:218 जीत:98 हार:106 टाई:1 जीत प्रतिशत:48.04%
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#3 हैंसी क्रोनिए
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दक्षिण अफ्रीका के लिए कप्तान के तौर पर हैंसी क्रोनिए ने काफी शानदार काम किया था, लेकिन 2002 में मैच-फिक्सिंग के आरोपों ने उनकी सभी उपलब्धियों को बर्बाद कर दिया। हालांकि, अपने पूरे करियर में वह सबसे मेहनती और अनुशासन वाले खिलाड़ी के रूप में जाने गए तथा उनकी फील्ड सेटिंग ने अफ्रीका को लिमिटेड ओवर की क्रिकेट में काफी सफलता दिलाई।
1996 वर्ल्ड कप में उन्होंने दक्षिण अफ्रीका को क्वार्टर फाइनल में पहुंचाया था जहां वे वेस्टइंडीज से हार गए थे। 1999 वर्ल्ड कप के सेमीफाइनल में अफ्रीका को ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ आखिरी ओवर में नौ रनों की जरूरत थी। लांस क्लूजनर ने लगातार दो चौके जड़े, लेकिन उनके और एलन डोनाल्ड के बीच मिक्स-अप के कारण मुकाबला टाई रहा। बेहतर रन-रेट के कारण ऑस्ट्रेलिया फाइनल में पहुंच गई और प्रोटियाज टीम का दिल टूट गया।
मैच: 138 जीत: 99 हार: 35 टाई: 1 जीत प्रतिशत: 73.70%
#2 सौरव गांगुली
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जब सौरव गांगुली ने भारतीय टीम की कप्तानी संभाली थी तो देश में मैच-फिक्सिंग स्कैंडल के कारण खेल ने काफी सम्मान गंवाया था। गांगुली ने टीम में एग्रेशन भरा और उनकी कप्तानी में भारतीय टीम ने आक्रामक और निडर क्रिकेट खेला। 2003 वर्ल्ड कप में जाते समय भारतीय टीम अपने चरम पर थी और उन्होंने ग्रुप-स्टेज में ऑस्ट्रेलिया के बाद दूसरा स्थान हासिल किया था।
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सुपर सिक्स स्टेज में भारत अजेय रहा और उन्होंने केन्या, न्यूजीलैंड और श्रीलंका के खिलाफ जीत हासिल की। सेमीफाइनल में एक बार फिर उनका सामना केन्या से हुआ और उन्होंने 91 रनों से मुकाबला जीता। फाइनल में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ गांगुली ने टॉस जीता और पहले गेंदबाजी का फैसला लिया। गांगुली का यह फैसला उन पर भारी पड़ गया और ऑस्ट्रेलिया ने भारत को 125 रनों से हराकर तीसरी बार वर्ल्ड कप जीता।
मैच: 147 जीत: 76 हार: 66 टाई : 0 जीत प्रतिशत: 53.52%
#1 ग्रीम स्मिथ
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हैंसी क्रोनिए की मौत से आश्चर्यचकित और दुखी दक्षिण अफ्रीका ने 22 साल के युवा बल्लेबाज ग्रीम स्मिथ को कप्तानी की कठिन जिम्मेदारी सौंपने का निर्णय लिया था। स्मिथ ने अपनी कप्तानी में टीम की दशा सुधार दी और क्रिकेट के हर फॉर्मेट में अफ्रीकी टीम स्मिथ के अंडर शानदार साबित हुई। 2007 वर्ल्ड कप में सुपर 8 स्टेज में चौथे स्थान पर रहने वाली प्रोटियाज टीम ने सेमीफाइनल का सफर तय किया था।
सेमीफाइनल में एक बार फिर वे ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ हारे क्योंकि ग्लेन मैक्ग्रा और शॉन टैट की जोड़ी ने अफ्रीकी बल्लेबाजी को तहस-नहस कर दिया। 2011 वर्ल़्ड कप के क्वार्टर फाइनल में अफ्रीका का सामना न्यूजीलैंड से हुआ, जिसमें 222 रनों के स्कोर का पीछा करते हुए दक्षिण अफ्रीका की टीम मैच हार गई और उसे टूर्नामेंट से बाहर होना पड़ा।
मैच: 150 जीत: 92 हार: 51 टाई: 1 जीत प्रतिशत: 64.23%