आईसीसी टूर्नामेंट क्रिकेट के खेल को नए आयाम प्रदान करती हैं। इन टूर्नामेंटों को लेकर खिलाड़ियों के साथ-साथ दर्शकों में भी ज़बरदस्त उत्साह देखने को मिलता है। आईसीसी हर दो / चार साल के अंतराल में इन टूर्नामेंटों को आयोजित करती है। इनमें आईसीसी वर्ल्ड कप, आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफी और आईसीसी टी-20 विश्व कप शामिल हैं।
इन टूर्नामेंटों की शुरुआत सबसे पहले 1975 में खेले गए विश्व कप के साथ हुई थी। उसके बाद 1998 में चैंपियंस ट्रॉफी, और उसके बाद 2007 में टी-20 विश्व कप की शुरुआत हुई।
इन टूर्नामेंटों में से एक में भी जीतना किसी भी टीम के लिए गर्व की बात है। भारत, श्रीलंका, वेस्टइंडीज और पाकिस्तान ऐसे चार टीमें हैं जिन्होंने इन तीनों टूर्नामेंटों का ख़िताब जीता है। भारतीय टीम की बात करें तो इसमें कुछ चुनिंदा खिलाड़ी हैं जिन्होंने इन तीनों आईसीसी टूर्नामेंटों में जीत का स्वाद चखा है।
तो आइए एक नजर डालते हैं इन 4 भारतीय खिलाड़ियों पर:
#4. हरभजन सिंह
हरभजन सिंह एक दशक से अधिक समय तक भारत के प्रमुख स्पिनर रहे हैं। वह 2007 में एमएस धोनी की कप्तानी में टी-20 विश्व कप जीतने वाली टीम का हिस्सा थे और इसके बाद 2011 में आईसीसी विश्व कप जीतने में भी उनकी बेहद अहम भूमिका रही थी। इसके अलावा उन्होंने 2002 में खेली गई आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफी में भी शिरकत की थी। सौरव गांगुली के नेतृत्व में भारत इस चैंपियंस ट्रॉफी में संयुक्त विजेता रहा था।
भज्जी ने 2002 में खेली गयी चैंपियंस ट्रॉफी में बढ़िया प्रदर्शन किया था। इस टूर्नामेंट में उन्होंने 5 मैचों में से 6 विकेट चटकाए थे जिसमें पहले फाइनल में 27 रन देकर 3 विकेट उनका सर्वश्रेष्ठ गेंदबाज़ी आँकड़ा रहा।
इसके पांच साल बाद, हरभजन ने दक्षिण अफ्रीका में नए कप्तान एमएस धोनी के नेतृत्व में भारत को पहला और एकमात्र टी-20 विश्व कप जिताने में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई थी। इस विश्व कप में उन्होंने 6 मैचों में 7 विकेट चटकाए थे। 2011 में भारत की मेज़बानी में हुए विश्व कप में भी हरभजन टीम इंडिया का हिस्सा थे और इस विश्व कप में उन्होंने 9 मैचों में 9 विकेट हासिल किये थे।
हालांकि, इन तीनों टूर्नामेंटों में हरभजन का प्रदर्शन बहुत शानदार तो नहीं था लेकिन उन्होंने विपक्षी बल्लेबाज़ों पर लगातार दबाव बनाये रखा जिसकी वजह से वे कभी भी खुल कर नहीं खेल सके। नतीजतन, भारत को तीन आईसीसी ख़िताब जीतने का मौका मिला।
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#3. वीरेंद्र सहवाग
वीरेंद्र सहवाग ने भी आईसीसी के सभी 3 टूर्नामेंटों में सफलता का स्वाद चखा है। सहवाग चैंपियंस ट्रॉफी 2002 में सबसे ज़्यादा रन बनाने वाले खिलाड़ी थे। उन्होंने पूरे टूर्नामेंट में ज़बरदस्त बल्लेबाज़ी करते हुए 5 मैचों में 271 रन ठोक डाले थे।
इसके पांच साल बाद, वीरू ने बल्ले के साथ शानदार प्रदर्शन करते हुए भारत को पहली बार टी-20 विश्व कप जिताने में मुख्य भूमिका निभाई। हालाँकि, वह चोटिल होने की वजह से फाइनल में नहीं खेल पाए लेकिन सेमीफइनल तक उन्होंने टीम इंडिया को हमेशा अच्छी शुरुआत दिलाई।
नजफगढ़ के नवाब ने विश्व कप 2011 में सचिन तेंदुलकर के साथ सलामी बल्लेबाज़ की भूमिका भी बखूबी निभाई और ज्यादातर मैचों की शुरुआत पहली गेंद पर चौका लगाकर की। बांग्लादेश के खिलाफ इस विश्व के पहले ही मैच में सहवाग की 140 गेंदों में बनाए 175 रनों की तूफानी पारी इस टूर्नामेंट की सर्वोच्च व्यक्तिगत पारी रही।
#2. युवराज सिंह
युवराज सिंह भारतीय टीम के सबसे बड़े मैच विजेता खिलाड़ियों में से एक रहे हैं। बल्ले और गेंद से शानदार प्रदर्शन के साथ-साथ रक ज़बरदस्त फ़ील्डर, यह सभी विशेषताएं उन्हें सही मायनों में भारत के सर्वश्रेष्ठ आल-राउंडर्स की फेहरिस्त में ला खड़ा करती हैं। युवी ने अपने करियर में तीनों आईसीसी टूर्नामेंटों में भारत को विजयी बनाने में अहम भूमिका निभाई है।
हालाँकि, 2002 में खेली गई चैंपियंस ट्रॉफी में उन्हें अपनी प्रतिभा दिखाने का ज़्यादा मौका नहीं मिला। सभी पांच मैचों में खेलने के बावजूद, उन्हें केवल दो में बल्लेबाजी करने का मौका मिला। दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ सेमीफाइनल में उन्होंने महत्वपूर्ण 62 रनों की पारी खेली थी और एक विकेट भी हासिल किया था।
इसके पांच साल बाद, दक्षिण अफ्रीका में खेले गए टी-20 विश्व कप में उन्हें उप-कप्तान नियुक्त किया गया। इस टूर्नामेंट में इंग्लैंड के खिलाफ 'करो या मरो' के मैच में युवराज ने स्टुअर्ट ब्रॉड के एक ओवर में 6 छक्के लगाकर इतिहास रच दिया था और आज तक टी -20 में यह उपलब्धि हासिल करने वाले वह दुनिया के एकमात्र बल्लेबाज हैं। अपनी इस पारी में सिर्फ 12 गेंदों पर अपना अर्धशतक पूरा कर लिया था, जो भी एक रिकार्ड है।
इस विश्व कप में ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ खेले गए सेमीफाइनल में भी उन्होंने ऑस्ट्रेलियाई गेंदबाजों की भी जमकर धुनाई की, और सिर्फ 30 गेंदों में 70 रन ठोक डाले थे। युवराज ने पूरे टूर्नामेंट में 6 मैचों में 168 रन बनाए और एक विकेट भी लिया, जिसकी वजह से भारत ने टी-20 विश्व कप का पहला संस्करण जीता था।इसके बाद, 2011 में युवी ने बल्ले और गेंद दोनों से शानदार प्रदर्शन कर भारत को 28 साल विश्व विजेता बनाने में बेहद अहम किरदार निभाया था। इस विश्व कप में उन्होंने चार बार 'मैन ऑफ द मैच' पुरस्कार जीतने के साथ ही 'मैन ऑफ़ द टूर्नामेंट' का भी पुरस्कार जीता। इस टूर्नामेंट में खेले 9 मैचों में युवी ने 362 रन बनाए और इसके साथ 15 विकेट भी चटकाए थे।
#1. एमएस धोनी
एमएस धोनी का शुमार भारतीय क्रिकेट इतिहास के महानतम कप्तानों में किया जाता है। वह पहले और एकमात्र कप्तान हैं जिनके नेतृत्व में भारत ने तीनों आईसीसी टूर्नामेंटों का ख़िताब जीता है।
2007 में एकदिवसीय विश्व कप की शर्मनाक हार के बाद, महेंदर सिंह धोनी को पहली बार भारतीय टीम की बागडोर सौंपी गई थी। कप्तान के रूप में अपने पहले ही विश्व कप में धोनी ने अपनी सूझ-बूझ और नेतृत्व क्षमता से उनपर दिखाए भरोसे को सही साबित किया।
इस विश्व कप में पाकिस्तान के खिलाफ फाइनल मैच को कौन भूल सकता है। साँसे रोक देने वाले इस मैच में धोनी ने अपनी सूझ-बूझ का परिचय देते हुए आखिरी ओवर में अनुभवी हरभजन सिंह की बजाय अनुभवहीन जोगिंदर शर्मा को गेंद थमाई। सभी क्रिकेट प्रशंसकों के लिए यह एक चौंकाने वाली बात थी। लेकिन शर्मा ने कप्तान के भरोसे को टूटने नहीं दिया और भारत ने सिर्फ 5 रनों से यह मैच जीतकर पहली बार टी-20 विश्व कप का ख़िताब जीतने का गौरव हासिल किया।
इसके चार साल बाद धोनी ने विश्व कप 2011 में भी भारतीय टीम का नेतृत्व किया। भारत, श्रीलंका और बांग्लादेश की संयुक्त मेज़बानी में खेले गए इस विश्व कप में भारतीय टीम ख़िताब की प्रबल दावेदार थी। इस टूर्नामेंट के फाइनल में धोनी ने गंभीर के साथ मिलकर हार के जबड़े से जीत छीन ली थी और फाइनल में 79 गेंदों पर नाबाद 91* रन बनाए थे।
धोनी का विजयी छक्का हमेशा भारतीय प्रशंसकों के दिमाग में ताज़ा रहेगा। इस विश्व कप में धोनी ने 9 मैचों में 241 रन बनाए थे। इसके दो साल बाद, धोनी ने सहवाग, गंभीर, जहीर और हरभजन जैसे खिलाड़ियों की गैर-मौजूदगी में आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफी में भारतीय टीम का नेतृत्व किया। इस टूर्नामेंट में भी धोनी ने अपनी नेतृत्व क्षमता का परिचय देते हुए इंग्लैंड के खिलाफ फाइनल में, महंगे साबित हो रहे इशांत शर्मा को गेंद सौंपी, जिन्होंने आखिरी ओवर में दो महत्वपूर्ण विकेट लेकर मैच का पासा पलट दिया और भारत ने चैम्पियंस ट्रॉफी का ख़िताब जीत लिया। इसके साथ ही धोनी भारत को तीन आईसीसी ख़िताब जिताने वाले पहले और एकमात्र कप्तान बने।