टेस्ट में बेस्ट टीम इंडिया के लिए दक्षिण अफ़्रीका दौरे पर आख़िरी टेस्ट में मिली जीत ने कुछ हद तक पहले दो टेस्ट मैचों में मिली हार की कड़वाहट को कम करने का काम ज़रूर किया। हालांकि इस जीत ने सीरीज़ का परिणाम नहीं बदला क्योंकि वह तो सेंचुरियन में मिली हार के साथ ही मेज़बान के पक्ष में जा चुका था। लेकिन इस जीत ने दक्षिण अफ़्रीका सरज़मीं पर व्हाइटवॉश के धब्बे से बचाने के साथ साथ जोहांसबर्ग में न हारने के शानदार रिकॉर्ड को भी क़ायम रखा। भारत को मिली इस जीत के बाद ये भी तय हो गया कि आईसीसी टेस्ट रैंकिंग में नंबर-1 पर टीम इंडिया अभी भी बरक़रार रहेगी और दक्षिण अफ़्रीका के साथ अंकों का अंतर भी ज़्यादा कम नहीं हुआ। लेकिन क्या 25 सालों का हिसाब बराबर करने के इरादे से प्रोटियाज़ पहुंची कोहली एंड कंपनी अपने इस प्रदर्शन से ख़ुश होने के लायक़ है ? क्या भारतीय फ़ैंस ये सोचकर ख़ुद को तसल्ली दे सकते हैं कि 8 साल बाद उनकी चहेती टीम ने अफ़्रीकी सरज़मीं पर कोई टेस्ट जीता ? क्या कोच रवि शास्त्री और कप्तान विराट कोहली इस जीत से इंग्लैंड के ख़िलाफ़ उन्हीं के घर में होने वाली टेस्ट सीरीज़ में अपनी रणनीति में कोई फ़र्क़ लाएंगे ? कई ऐसे सवाल हैं जो भारतीय फ़ैंस और क्रिकेट पंडितों के ज़ेहन में घूम रहे होंगे, मैंने भी कुछ सवालों का जवाब इस लेख के ज़रिए तलाशने की कोशिश की है।
केपटाउन में कोहली से हुई पहली चूक
सीरीज़ का पहला टेस्ट केपटाउन में खेला गया, जहां विराट कोहली ने अंतिम-11 से उप-कप्तान अजिंक्य रहाणे को बाहर रखा। रहाणे की जगह रोहित शर्मा पर कोहली ने ये कहते हुए भरोसा जताया कि रोहित फ़ॉर्म में हैं। इस मैच में भारतीय गेंदबाज़ों का प्रदर्शन तो शानदार रहा लेकिन हार्दिक पांड्या को छोड़कर कोई भी बल्लेबाज़ कुछ ख़ास न कर सका, नतीजा ये हुआ कि जीत के लिए 209 रनों का पीछा करते हुए भारतीय बल्लेबाज़ 72 रन पीछे रह गए। रहाणे की जगह रोहित को टीम में रखना भी रंग नहीं लाया।
सेंचुरियन में हो गया ‘विराट असंतुलन’
उम्मीद थी कि केपटाउन में हुई ग़लतियों से कोहली सबक़ लेंगे और सेंचुरियन के करो या मरो के टेस्ट मैच में अजिंक्य रहाणे को वापस लेकर आएंगे। लेकिन सेंचुरियन में जो हुआ वह किसी ने सपने में भी नहीं सोचा था। केपटाउन में कमाल की गेंदबाज़ी और बल्ले से भी अच्छा करने वाले भुवनेश्वर कुमार को ही कोहली ने ड्रॉप कर दिया। साथ ही साथ एक बार फिर रोहित को रहाणे पर तवज्जो दिया। लगातार दो मैचों में उप-कप्तान अजिंक्य रहाणे बाहर ही बैठे रहे। हालांकि एक बार फिर भारतीय गेंदबाज़ों ने अपने प्रदर्शन में निरंतरता रखी और दक्षिण अफ़्रीका को दोनों ही पारियों में बड़े स्कोर नहीं करने दिए। बल्लेबाज़ी का मोर्चा इस बार कप्तान कोहली ने ख़ुद संभाला और शानदार 153 रनों की पारी खेलते हुए उम्मीदों को ज़िंदा रखा। टीम इंडिया के गेंदबाज़ों ने इस बार भी बल्लेबाज़ों के सामने जीत के लिए 287 रनों का लक्ष्य रखा, पर भारत की दूसरी पारी 151 रनों पर ही ढेर हो गई। चेतेश्वर पुजारा ने तो इस टेस्ट में दोनों पारियों में रन आउट होते हुए एक अनचाहा भारतीय रिकॉर्ड बना डाला। मैच के बाद पत्रकारों द्वारा टीम संयोजन के उपर सवाल पूछने पर कोहली भड़क भी गए जिसकी आलोचना क्रिकेट जगत में हुई।
जोहांसबर्ग में आख़िरकार दिखा जलवा
आख़िरकार कोहली ने ग़लतियों से सबक़ लिया और भुवनेश्वर कुमार को वापल लाया, साथ ही साथ सीरीज़ में पहली बार अजिंक्य रहाणे को प्लेइंग-XI में शामिल किया। हालांकि इस मैच में 5 तेज़ गेंदबाज़ों के साथ उतरते हुए कोहली ने सभी को हैरान करने की अपनी निरंतरता को क़ायम रखा और हरी पिच पर पहले बल्लेबाज़ी करते हुए तो चौंका ही दिया। लेकिन वापसी करने वाले भुवनेश्वर कुमार और जसप्रीत बुमराह की क़हर ढाती हुई गेंदों के सामने प्रोटियाज़ टीम भी भारत के स्कोर से बस 7 रन ही ज़्यादा बना पाई। असमान उछाल वाली पिच पर भारतीय बल्लेबाज़ों ने साहस का परिचय दिया और पहली बार सीरीज़ में खेल रहे अजिंक्य रहाणे और पिछले मैच में ड्रॉप किए गए भुवनेश्वर कुमार इस अंदाज़ में खेल रहे थे मानो साबित कर रहे हों अपनी अहमियत। इन दोनों के बीच हुई 7वें विकेट की अर्धशतकीय साझेदारी (55 रन) ही मैच का टर्निंग प्वाइंट बन गई। दक्षिण अफ़्रीका की पारी के दौरान ख़तरनाक हो चुकी पिच पर अंपायरों ने खेल भी रोका लेकिन मेज़बान टीम ने खेल भावना का बेहतरीन परिचय देते हुए खेल जारी रखा। हालांकि दक्षिण अफ़्रीका चौथे दिन भारत के दिए लक्ष्य से 63 रन पीछे रह गई। भुवनेश्वर कुमार को ऑलराउंड (66 रन, 4 विकेट) प्रदर्शन करने के लिए मैन ऑफ़ द मैच से नवाज़ा गया। भारत सीरीज़ भले ही हारा हो लेकिन दोनों टीमों के बीच अंतर बहुत ज़्यादा नहीं था, इसका अंदाज़ा इसी बात से लग सकता है कि सीरीज़ में सबसे ज़्यादा 286 रन विराट कोहली ने बनाए। तो शृंखला में सबसे ज़्यादा 15 विकेट कगिसो रबाडा, वर्नन फ़िलैंडर और मोहम्मद शमी ने हासिल किए। यानी इस सीरीज़ ने एक बात तो साफ़ कर दी कि इस टीम इंडिया के पास अब ऐसी पेस बैट्री मौजूद है जो हरी और उछाल भरी पिचों पर मेज़बान टीम के बल्लेबाज़ों के भी होश उड़ा सकती है। जो भारत के लिए बेहद सकारात्मक पहलू है, एक ऐसी चीज़ जहां हम हमेशा से संघर्ष करते नज़र आते थे। लेकिन बल्लेबाज़ी में निरंतरता का अभाव एक बड़ी समस्या है जिसका तोड़ इंग्लिश दौरे से पहले निकालना ज़रूरी होगा और वह तभी हो सकता है जब भारतीय टीम पहले ही इंग्लैंड पहुंचे और उनके पास वहां की परिस्तिथियों में ढलने और पिच को समझने का पर्याप्त समय हो। जिसका अभाव दक्षिण अफ़्रीका में देखने को मिला और ख़ामियाज़ा सीरीज़ में हार के तौर पर भुगतना पड़ा। सबसे अहम ये कि विराट कोहली को मैदान के अंदर और मैदान के बाहर दोनों ही जगह बदलाव लाने की ज़रूरत है। मैदान के अंदर जहां अपने उपर संयम रखना आवश्यक है तो मैदान के बाहर पत्रकारों के साथ आक्रामक रवैया भी उनके लिए अच्छा नहीं। इन सबके अलावा जो एक और चीज़ इस दौरे में देखने को मिली और उसपर विराट को बहुत ज़्यादा मेहनत की ज़रूरत है, वह ये है कि खिलाड़ियों पर भरोसा करना सीखें और ये तय करें कि किन खिलाड़ियों को लेकर एक बेहतरीन टीम संयोजन बनाया जा सकता है। 35 टेस्ट मैचों में कप्तानी करने वाले कोहली ने कभी भी एक ही टीम दो मैचों में नहीं उतारी है। जिसका असर खिलाड़ियों पर भी पड़ता है और वह अपने स्थान खोने को लेकर हमेशा दबाव में रहते हैं जिससे उनके आत्मविश्वास में कमी साफ़ झलकती है।