वेस्टइंडीज दौरे के लिए टीम का चयन हुए लगभग एक सप्ताह से भी ज्यादा का समय बीत चुका है, लेकिन अभी भी यह मुद्दा गर्म है कि इस दौरे की टीम चयन के दौरान ऐसी खामियां क्यों की गई? सौरव गांगुली जैसे दिग्गज खिलाड़ियों ने भी टीम के चयन में दिखी अनियमितताओं पर सवाल उठाए हैं। हाल ही में सुनील गावस्कर ने भी इस चयन को लेकर बीसीसीआई पर कुछ तंज कसे हैं। ऐसी ही प्रतिक्रिया चयनकर्ताओं को उस वक्त भी मिली थी, जब उन्होंने वर्ल्ड कप टीम में अंबाती रायडू को शामिल नहीं किया और उसके बाद जब शिखर धवन को चोट कारण टीम से बाहर हुए तब उन्होंने ऋषभ पंत को और फिर जब विजय शंकर चोटिल हुए तो उसकी जगह मयंक अग्रवाल को चुना गया जिसके बाद रायडू ने अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट से संन्यास ले लिया और इसका जिम्मेदार उन्हें अप्रत्यक्ष रूप से चयनकर्ताओं को बताया। आज हम इस लेख में इसी बात पर चर्चा करेंगे की वह कौन सी तीन गलतियां की जिन्हें शायद उन्हें नहीं करना चाहिए था।
#1 अजिंक्य रहाणे और शुभमन गिल का एकदिवसीय टीम में चयन न होना
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विंडीज दौरे के लिए जो टीम के चयन में सबसे बड़ी कमी देखने को मिली वाह थी एकदिवसीय टीम में शुभमन गिल और अजिंक्य रहाणे का चयन ना होना। इस बात को लेकर सौरव गांगुली ने भी चयनकर्ताओं पर सवाल उठाए हैं। शुभमन गिल को तो शायद यह भी ना पता हो कि वह दिन से क्यों बाहर चल रहे हैं। अजिंक्य राहणे टेस्ट टीम के उप कप्तान हैं और फिलहाल वह एक दिल सी टीम से बाहर चल रहे हैं, वह शायद भारतीय टीम के नंबर 4 पोजीशन के लिए अच्छा विकल्प हो सकते हैं। वहीं शुभमन गिल वेस्टइंडीज दौरे में टीम इंडिया- A लिए मैन आफ द टूर्नामेंट रहे थे। शायद चयनकर्ताओं को अपने इस फैसले के बारे में आगे सोचना चाहिए और शायद चयनकर्ताओं की जवाबदेही भी तय होनी चाहिए।
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#2 मयंक अग्रवाल का चयन एकदिवसीय टीम में ना होना
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मयंक अग्रवाल का चयन विजय शंकर के चोटिल होने के बाद भारतीय टीम में किया गया। लेकिन उन्हें बिना मैच खिलाये ही टीम से बाहर भी कर दिया गया और विंडीज दौरे में जगह नहीं दी गई। यह अपने आप में कई सवाल उठाता है।अगर आपको मयंक अग्रवाल को टीम से बाहर ही करना था तो उन्हें वर्ल्ड कप में जगह क्यों दी गई? शायद अगर उनकी जगह रायडू को जगह दी जाती तो वह सन्यास भी नहीं लेते और आज इस बात पर चर्चा भी नहीं हो रही होती कि मयंक अग्रवाल को विंडीज दौरे पर क्यों नहीं भेजा गया? शायद यह छोटी-छोटी गलतियां चयनकर्ताओं के अपरिपक्व रवैया को दर्शाती है। चयनकर्ताओं का यह चयन कई सवाल तो उठता है, लेकिन शायद इसके पीछे कोई लंबी रणनीति हो जिस पर वह अभी से कार्य कर रहे हों, यह तो भविष्य में ही पता चलेगा।
#3 कम खिलाड़ियों का तीनों फॉर्मेट में चयन
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विंडीज दौरे के चयन में जो सबसे बड़ी कमी देखने को मिली वह यह थी कि टेस्ट, एकदिवसीय और ट्वेंटी-20 की टीमों में समान खिलाड़ियों का चयन ना होना। कम ही खिलाड़ी ऐसे थे जिनका चयन तीनों टीमों में हुआ। इस बात पर सवाल सौरव गांगुली ने भी उठाए उनका कहना था कि, "महान टीमों के पास निरंतर खेलने वाले खिलाड़ी होते हैं. यह सभी को खुश करने वाली बात नहीं है बल्कि देश के लिए सर्वश्रेष्ठ चुनने वाली बात है, कई ऐसे खिलाड़ी हैं जो सभी प्रारूप में खेल सकते हैं। "
यह बात अलग है कि विनोद कांबली जैसे खिलाड़ी सौरव गांगुली के इस बयान से असहमत हैं, हो सकता है कि टीम के इस चयन के पीछे चयनकर्ताओं की कोई मंशा हो सकती है और वह किसी लंबी रणनीति पर काम कर रहे हो। शायद हमें उनका काम उन्हीं पर छोड़ देना चाहिए, उनकी मंशा पर सवाल नहीं उठाया जाने चाहिये। लेकिन क्रिकेट जानकारों को भी अपनी बात रखने का हक है और चयनकर्ताओं को उनके सुझावों पर ध्यान देना चाहिए।