भारत (India) के पूर्व सलामी बल्लेबाज गौतम गंभीर (Gautam Gambhir) ने 2 अप्रैल, 2011 को विश्वकप के फाइनल में 97 महत्वपूर्ण रन बनाए और भारतीय टीम की खिताबी जीत में अहम योगदान दिया। उस पल को आज दस वर्ष हो गए। इस मौके पर गौतम गंभीर ने कहा कि उनका एकमात्र अफसोस उनकी टीम के लिए मैच खत्म नहीं करना था। शतक एक ऐसी चीज थी जिसके बारे में वह ज्यादा परवाह नहीं करते।
गौतम गंभीर ने स्पोर्ट्स टुडे से बातचीत में कहा कि मुझे उन 3 रनों पर पछतावा नहीं है, लेकिन मुझे अफसोस है कि मैच खत्म नहीं कर पाया। वह मेरी जिम्मेदारी थी। आप जानते हैं कि क्रिकेट में मज़ेदार बातें हुई हैं, क्रिकेट में मज़ेदार बातें होंगी। जब आप उस अवस्था और अवसर पर हैं, यह विश्व कप फाइनल था। एमएस धोनी के साथ मैच खत्म करना मेरी जिम्मेदारी थी। ड्रेसिंग रूम में वापस जाने का मेरा एकमात्र पछतावा है, 100 को याद नहीं कर रहा था। अगर हम वर्ल्ड कप नहीं जीतते तो यह पछतावा तो जीवन भर मेरे साथ रहता।
गौरतलब है कि उस मैच में भारत के 7 ओवर पूरे होने से पहले अपने सलामी बल्लेबाज वीरेंदर सहवाग और सचिन तेंदुलकर के आउट होने के बाद गौतम गंभीर की 122 गेंदों की पारी की शुरुआत हुई। गंभीर लंबे समय तक खड़े रहे और एमएस धोनी के साथ 109 रन जोड़ने से पहले युवा विराट कोहली के साथ 83 रन की साझेदारी की। दोनों साझेदारियों की वजह से भारत ने 275 रनों का पीछा किया और खिताबी जीत हासिल की। महेंद्र सिंह धोनी ने भी नाबाद 91 रन बनाते हुए मैच को छक्के से खत्म किया।
भारतीय टीम ने छह विकेट से जीत हासिल करते हुए वर्ल्ड कप में एक बड़ा इतिहास रच दिया। घरेलू वर्ल्ड कप में जीत हासिल कर भारत ने आईसीसी विश्वकप को दूसरी बार जीता।