इंग्लैंड (England) के खिलाफ जिस तरह से भारतीय टीम (Indian Team) ने चार टेस्ट मैचों की सीरीज में जीत हासिल की है, उसमें कई चीजें साफ़ हो गई है। युवा खिलाड़ियों का इस जीत में ख़ासा योगदान रहा है। सीनियर खिलाड़ियों का बल्ला खामोश रहने के बाद भी जूनियर बल्लेबाजों ने टीम की न केवल इज्जत बचाई, बल्कि खुद को साबित भी कर दिया।
ऊपरी क्रम में भारतीय टीम के लिए रोहित शर्मा ही इकलौते बल्लेबाज थे जिनके बल्ले से रन निकले। विराट कोहली, चेतेश्वर पुजारा और अजिंक्य रहाणे बुरी तरह फ्लॉप रहे। इन तीनों बल्लेबाजों की तकनीक में पहले जैसी बात नजर नहीं आई और ये रक्षात्मक तरीके से खेलते हुए भी पवेलियन लौटते हर नजर आए।
निचले क्रम में हुई बेहतरीन बल्लेबाजी
दूसरी तरह युवा भारतीय खिलाड़ियों ने आक्रमण और डिफेन्स का बेहतरीन मिश्रण करते हुए रन बनाए और भारतीय टीम को सीरीज में जीत दिलाई। ऋषभ पन्त हो या वॉशिंगटन सुंदर, यहाँ तक कि रविचंद्रन अश्विन ने भी टीम इंडिया के लिए बेहतर आत्म विश्वास के साथ बल्लेबाजी की। ऋषभ पन्त एक बार शतक से चूके लेकिन अंतिम मैच में इसे पूरा करने में सफल रहे। वॉशिंगटन सुंदर 96 रन तक जाकर नाबाद रहे और यह दुर्भाग्य रहा कि टीम के सभी बल्लेबाज आउट हो गए। वह 85 रन पर भी एक बार नाबाद रहे और यह भी इसी सीरीज में हुआ। अक्षर पटेल ने अंतिम मैच में 43 रन बनाए और रनआउट हुए। इन सभी बल्लेबाजों के खेल को देखते हुए कहा जा सकता है कि सीनियर खिलाड़ियों से ज्यादा भरोसेमंद बल्लेबाजी युवाओं ने की।
युवा खिलाड़ियों की तरह ही अगर सीनियर खिलाड़ियों के बल्ले से रन निकलते तो शायद इंग्लैंड की टीम पहले टेस्ट मैच में भी नहीं जीत पाती। उस मैच को टीम इंडिया ड्रॉ करा सकती थी। कप्तान कोहली सामने वाली टीम को डिफेन्स पर भरोसा करने की नसीहत देते हुए जरुर दिखे लेकिन उनकी टीम के सीनियर खिलाड़ी ही इस पर भरोसा नहीं रख पा रहे थे।