वर्ल्ड कप का 12वां संस्करण 30 मई से इंग्लैंड और वेल्स में खेला जाएगा। इस टूर्नामेंट में विश्व की 10 सर्वश्रेष्ठ टीमें भाग ले रही हैं। भारतीय टीम भी अपना तीसरा वर्ल्ड कप खिताब जीतने के उद्देश्य से इंग्लैंड पहुंच चुकी है। इस टीम की कप्तानी विराट कोहली कर रहे हैं साथ ही वर्ल्ड कप 2011 विजेता टीम के कप्तान महेंद्र सिंह धोनी भी इस टीम का हिस्सा हैैं।
वर्ल्ड कप का तीसरा संस्करण (1983) भारतीय टीम के लिए बहुत यादगार रहा। क्योंकि इसी संस्करण में भारतीय टीम ने शुरुआती लगातार दो संस्करणों की विजेता रह चुकी वेस्टइंडीज को हराकर पहली बार वर्ल्ड कप का खिताब जीता था। उस समय भारतीय टीम के कप्तान कपिल देव हुआ करते थे। इसके 28 साल बाद साल 2011 में फिर ऐसा मौका आया जब भारतीय टीम ने महेंद्र सिंह धोनी की अगुवाई में वर्ल्ड कप का खिताब जीता।
आज हम बात करने जा रहे हैं भारतीय टीम के दोनों वर्ल्ड कप (1983 और 2011) का खिताब जीतने का पैटर्न कैसा रहा और दोनों में क्या समानताएं रही।
#1. अच्छी सलामी जोड़ी और नंबर 3 बल्लेबाजी:
वर्ल्ड कप 1983 में सुनील गावस्कर और 2011 में सचिन तेंदुलकर बड़े नाम थे, जो सलामी बल्लेबाज थे। सबसे बड़ी बात कि ये दोनों मुम्बई के ही थे। दोनों ही बल्लेबाज तकनीक के साथ बल्लेबाजी करने के लिए मशहूर थे। 1983 में क्रिस श्रीकांत और 2011 में वीरेंदर सहवाग हार्ड हिटर सलामी बल्लेबाज थे। इसके अलावा नंबर 3 पर बल्लेबाजी के लिए फाइनल में मोहिंदर अमरनाथ (1983) और गौतम गंभीर (2011) थे। दोनों ही खिलाड़ी दिल्ली के थे। दोनों ही वर्ल्ड कप में सलामी बल्लेबाजी में तकनीक और उग्र बल्लेबाजी का शानदार मिश्रण था। यदि सलामी बल्लेबाज फ्लॉप साबित हुए तो नंबर 3 पर अच्छा बल्लेबाज था जो स्कोरबोर्ड पर रन बढ़ा सकता था।
नोट: दोनों ही वर्ल्ड कप में भारतीय टीम ने 4 लीग मैच जीते थे और फाइनल मुकाबला शनिवार को खेला गया था।
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#2. मजबूत, समझदार और सहज कप्तान:
कहते हैं कोई टीम तब मजबूत होती है जब उस टीम का कप्तान मजबूत हो। कपिल देव और महेंद्र सिंह धोनी इस कहावत पर बिल्कुल खरे उतरते हैं। दोनों ही कप्तानों के अंदर आत्मविश्वास था और तुरंत निर्णय लेने की क्षमता थी। यह बात इससे सिद्ध होती है कि 2011 वर्ल्ड कप के फाइनल मुकाबले में महेंद्र सिंह धोनी खुद युवराज सिंह से पहले उतरे थे, जबकि युवराज सिंह अच्छे फॉर्म में थे। इसके अलावा कपिल देव जिम्बाब्वे के खिलाफ सातवें स्थान पर बल्लेबाजी करने उतरे थे जब जिम्बाब्वे के गेंदबाजों ने 17 रन पर 5 विकेट गिरा दिए थे। दोनों ही कप्तान खेल को समझते थे फिर उस हिसाब से निर्णय लेकर काम करते थे।
#3. शानदार ऑलराउंडर:
जब मोहिंदर अमरनाथ को 1983 की वर्ल्ड कप टीम में शामिल किया गया था तो यह सबसे कठिन फैसला था क्योंकि मोहिंदर अमरनाथ ने 3 साल बाद वनडे क्रिकेट में वापसी की थी। वेस्टइंडीज और पाकिस्तान के खिलाफ उनके अच्छे प्रदर्शन को देखते हुए टीम में शामिल किया गया था। इसके अलावा अगर युवराज सिंह की बात करें तो साल 2010 उनके पिछले 10 सालों के करियर का सबसे खराब साल था लेकिन उन्हें वर्ल्ड कप में मौका दिया गया। मोहिंदर अमरनाथ ने सेमी फाइनल और फाइनल में अच्छा प्रदर्शन किया जबकि युवराज सिंह ने भी क्वार्टरफाइनल में शानदार प्रदर्शन किया था।
नोट: दोनों ही वर्ल्ड कप में भारत ने बुधवार को सेमीफाइनल खेला था।
# 4. सही समय का लाभ उठाना:
भारतीय टीम ने वर्ल्ड कप 1983 मिशन की शुरुआत वेस्टइंडीज को हराकर किया था, दूसरे मैच में उन्होंने जिम्बाब्वे को हराया। इसके बाद अगले दो मैचों में उन्हें ऑस्ट्रेलिया और वेस्टइंडीज से हार का सामना करना पड़ा। लेकिन उनके उत्साह में कमी नहीं आई। जिस कारण अगले दो मैचों में वे ज़िम्बाब्वे और ऑस्ट्रेलिया को एवं सेमीफाइनल में इंग्लैंड को रौंदते हुए फाइनल में पहुंचे। फाइनल में उन्होंने वेस्टइंडीज से अपनी पुरानी हार का बदला लिया और खिताब पर कब्जा किया।
वर्ल्ड कप 2011 में भारतीय टीम ने अपने मिशन की शुरुआत बांग्लादेश को हराकर किया था। लेकिन इंग्लैंड के खिलाफ अगला मैच टाई हो गया (वर्ल्ड कप इतिहास का यह चौथा टाई मैच था)। इसके अलावा उन्हें दक्षिण अफ्रीका से भी हार का सामना करना पड़ा था। फाइनल में भी श्रीलंका के खिलाफ गेंदबाजी करते हुए अंतिम 10 ओवर और बल्लेबाजी करते समय शुरुआती 10 ओवर भारत के पक्ष में नहीं था। लेकिन दोनों टीम के कप्तानों ने सही समय का लाभ उठाया और खिताब जीत लिया।
नोट: 1983 वर्ल्ड कप के भारतीय सलामी बल्लेबाज साल 2011 में बीसीसीआई के चयन समिति के अध्यक्ष थे।
#5. मजबूती से मैच में वापसी:
1983 वर्ल्ड कप के फाइनल में वेस्टइंडीज टीम ने भारत को 183 रनों पर रोक दिया था जिससे यह लग रहा था कि वेस्टइंडीज यह मैच जीत जाएगी लेकिन विवियन रिचर्ड्स का विकेट गिरने के बाद भारतीय गेंदबाजों ने मैच को अपने कब्जे में लेकर जीत हासिल की। ठीक उसी तरह 2011 के वर्ल्ड कप फाइनल में भारत के लिए गेंदबाजी करते समय अंतिम 10 ओवरों में 90 रन दे दिए थे। इसके अलावा बल्लेबाजी पारी में भी शुरुआती 10 ओवर अच्छे नहीं थे उन्होंने जल्दी ही सहवाग और तेंदुलकर को खो दिया था। लेकिन उसके बाद गंभीर और एमएस धोनी की अच्छी पारी की बदौलत भारत को जीत हासिल हुई।
नोट: भारतीय टीम ने दोनों वर्ल्ड कप में लीग मैच समाप्त होने पर अंक तालिका में दूसरे स्थान पर थी।