# 4. सही समय का लाभ उठाना:
भारतीय टीम ने वर्ल्ड कप 1983 मिशन की शुरुआत वेस्टइंडीज को हराकर किया था, दूसरे मैच में उन्होंने जिम्बाब्वे को हराया। इसके बाद अगले दो मैचों में उन्हें ऑस्ट्रेलिया और वेस्टइंडीज से हार का सामना करना पड़ा। लेकिन उनके उत्साह में कमी नहीं आई। जिस कारण अगले दो मैचों में वे ज़िम्बाब्वे और ऑस्ट्रेलिया को एवं सेमीफाइनल में इंग्लैंड को रौंदते हुए फाइनल में पहुंचे। फाइनल में उन्होंने वेस्टइंडीज से अपनी पुरानी हार का बदला लिया और खिताब पर कब्जा किया।
वर्ल्ड कप 2011 में भारतीय टीम ने अपने मिशन की शुरुआत बांग्लादेश को हराकर किया था। लेकिन इंग्लैंड के खिलाफ अगला मैच टाई हो गया (वर्ल्ड कप इतिहास का यह चौथा टाई मैच था)। इसके अलावा उन्हें दक्षिण अफ्रीका से भी हार का सामना करना पड़ा था। फाइनल में भी श्रीलंका के खिलाफ गेंदबाजी करते हुए अंतिम 10 ओवर और बल्लेबाजी करते समय शुरुआती 10 ओवर भारत के पक्ष में नहीं था। लेकिन दोनों टीम के कप्तानों ने सही समय का लाभ उठाया और खिताब जीत लिया।
नोट: 1983 वर्ल्ड कप के भारतीय सलामी बल्लेबाज साल 2011 में बीसीसीआई के चयन समिति के अध्यक्ष थे।
#5. मजबूती से मैच में वापसी:
1983 वर्ल्ड कप के फाइनल में वेस्टइंडीज टीम ने भारत को 183 रनों पर रोक दिया था जिससे यह लग रहा था कि वेस्टइंडीज यह मैच जीत जाएगी लेकिन विवियन रिचर्ड्स का विकेट गिरने के बाद भारतीय गेंदबाजों ने मैच को अपने कब्जे में लेकर जीत हासिल की। ठीक उसी तरह 2011 के वर्ल्ड कप फाइनल में भारत के लिए गेंदबाजी करते समय अंतिम 10 ओवरों में 90 रन दे दिए थे। इसके अलावा बल्लेबाजी पारी में भी शुरुआती 10 ओवर अच्छे नहीं थे उन्होंने जल्दी ही सहवाग और तेंदुलकर को खो दिया था। लेकिन उसके बाद गंभीर और एमएस धोनी की अच्छी पारी की बदौलत भारत को जीत हासिल हुई।
नोट: भारतीय टीम ने दोनों वर्ल्ड कप में लीग मैच समाप्त होने पर अंक तालिका में दूसरे स्थान पर थी।