कपिल से निकलकर श्रीनाथ के हाथों में आई तेज गेंदबाजी की कमान
फिर कुछ कदम आगे चलने पर 1982-85 के आस-पास मनोज प्रभाकर और चेतन शर्मा के रूप में कुछ योग्य गेंदबाज आए, लेकिन ये लंबे समय तक कपिल का साथ नहीं दे पाए। फिर आया 90 का दशक जब कई गेंदबाज कब आए और कब गए किसीको पता ही नहीं चला। वर्तमान में टीम इंडिया के गेंदबाजी कोच भरत अरुण दो टेस्ट मैच खेलकर चलते बने, तो वहीं एक टेस्ट खेलने वाले राशीद पटेल अपना करियर लंबा नहीं खींच सके। इन दोनों के अलावा अतुल वासन, सुब्रतो बनर्जी, विवेक राजदान, सलील अंकोला और संजीव शर्मा कपिल के साथ जोड़ी बनाने के लिए संघर्ष करते रहे।
साल 1991 में जवागल श्रीनाथ के आने के बाद कुछ हद तक भारतीय क्रिकेट को एक योग्य गति वाला गेंदबाज मिला। तभी 1994 में कपिल देव ने क्रिकेट को अलविदा कह दिया और भारतीय क्रिकेट एक बार फिर योग्य तेज गेंदबाज की कमी से जूझने लगा। 1995 के बाद भारतीय क्रिकेट में पारस महाम्ब्रे, डोडा गणेश, प्रशांत वैद्या, आशीष विंस्टन जैदी, हरविंदर सिंह, देबाशीष मोहंती और वेंकटेश प्रसाद के रूप में कुछ तेज गेंदबाजों का आगमन हुआ। इन सभी ने घरेलू क्रिकेट तो तेज गेंदबाजी की लेकिन अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट के दबाव ने इन्हें मध्यम गति का गेंदबाज बना दिया। इन सभी में से वेंकटेश ही लम्बे समय तक टिक पाए।