चोट से डगमगाते रहे नेहरा, परिवर्तन के बलबूते जहीर ने चौदह सालों तक किया राज
इसके बाद साल 1998 में अजीत अगरकर और 1999 में आशीष नेहरा के रूप में टीम को दो तेज गेंदबाज मिले। ये दोनों ही योग्य थे लेकिन अहम मौकों पर अक्सर फिसल जाया करते थे। इन दोनों को ही लेकर विपक्षी टीमों ऐसा कोई खौफ नहीं हुआ करता था जो उस दौर के शेन बॉण्ड, ब्रेट ली, ग्लेन मैक्ग्रा या शोएब अख्तर का हुआ करता था। ये दोनों किसी मैच में तो जबरदस्त गेंदबाजी करते और अगले ही मैच में इनका प्रदर्शन क्लब स्तर के गेंदबाज से भी नीचे चला जाता। नेहरा कभी फिटनेस तो कभी खराब फॉर्म के चलते जूझते रहे।
फिर आया साल 2000 का वक्त। तब टीम को एक योग्य और जुझारू गेंदबाज के रूप में जहीर खान मिले, जिन्होंने 14 सालों तक भारत के लिए एक स्तर की क्रिकेट खेली। अच्छी शुरुआत के बाद कुछ सालों बाद जहीर की पिटाई होने लगी। उनका एकमात्र हथियार यॉर्कर बल्लेबाजों के लिए पहेली नहीं रहा था। जिसके चलते उन्हें नाकामी झेलनी पड़ रही थी। इसके बाद जहीर में भी असली निखार तब आया जब उन्होंने काउंटी क्रिकेट खेली, उसके बाद तो मानो इस गेंदबाज का नया जन्म ही हो गया। इस गेंदबाज ने गेंद से कलाकारी करना सीख लिया था जिसके बलबूते इसने बल्लेबाजों को क्रीज पर खूब नचाया।