क्रिकेट इतिहास में क्रिकेट के बल्ले का साइज़ और दशा बदलती रही है। सबसे पहले शुरूआती क्रिकेट में एक स्टिक से ही क्रिकेट का खेल हुआ करता था। फिर धीरे-धीरे बल्ले ने नया रूप लेना शुरू किया। बल्ले के इस रूप में विलो (एक प्रकार की लकड़ी) का इस्तेमाल लगातार हुआ है। आज कल के बल्लेबाज विलो के बल्ले का ही इस्तेमाल करते हुए नजर आते है। विलो में भी इंग्लिश विलो और कश्मीर विलो का प्रयोग किया जाता है लेकिन अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में इंग्लिश विलो के बल्ले से ही बल्लेबाज खेलते हैं, लेकिन भविष्य को देखते हुए हमें अब बल्ले की लकड़ी में भी बदलाव देखने को मिल सकता है। कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने बाँस की लकड़ी पर प्रशिक्षण करते हुए नए बल्ले इजाद किये हैं।
कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों ने कहा कि आगामी सालों में बल्लेबाज बाँस के बल्लों से खेलना पसंद करेंगे। सभी बल्लेबाजों का सपना होगा कि वो बाँस के बल्ले से बल्लेबाजी करें, क्योंकि काफी प्रशिक्षण के बाद बाँस के बल्ले से अब खेला जा सकता है। उन्होंने इस सन्दर्भ में आगे कहा कि लैमिनेटेड बाँस के बल्ले पारम्परिक विलो के बल्लों से मजबूत होंगे। यह बल्ले सख्त और पर्यावरण को हानि पहुँचाए बिना भी कारगर साबित होंगे साथ ही इनके मिडिल पर गेंद लगने की आवाज़ भी बहुत अच्छी आएगी। बाँस के बल्ले से यॉर्कर गेंद पर भी आसानी से चौका लगाया जा सकता है साथ ही हर प्रकार के शॉट भी खेले जा सकेंगे।
कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों का कहना है कि बाँस के बल्ले विलो के मुकाबले 40% भारी होंगे लेकिन हलके ब्लेड्स होने के कारण बॉल पर जोर से हिट होगा। मार्लीबोन क्रिकेट क्लब (MCC) के अनुसार क्रिकेट के बल्लों के ब्लेड्स में लकड़ी का प्रयोग होना चाहिए लेकिन बाँस घाँस का एक पार्ट है इसलिए इस पर विचार करना चाहिए। कैम्ब्रिज यूनिवर्सिटी के वैज्ञानिकों का आगे कहना है कि खेल की भावना को देखते हुए बाँस से खेलना अच्छा विकल्प रहेगा, क्योंकि मौजूदा बल्लों के हैंडल भी घाँस से बनी होती है। इसलिए हम इन बल्लों का प्रयोग कर सकते हैं।
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