दक्षिण अफ्रीका में एक द्विपक्षीय एकदिवसीय सीरीज़ को जिस तरह भारतीय टीम ने विपक्ष पर पूरी तरह हावी होकर जीता है, वह ऐतिहासिक है और इसके लिये कप्तान के साथ ही साथ पूरी टीम भी प्रशंसा के योग्य है। हालांकि, ऐसे में जब एक साल बाद ही 2019 विश्व कप सामने है, यह महत्वपूर्ण है कि जीत के साथ ही साथ बची हुई खामियों पर भी काम किया जाये, इससे पहले कि बहुत देर हो जाये। एक नज़र डाल लेते हैं टीम इंडिया की उन खामियों पर जो इस शानदार सीरीज़ जीत में भी छिपी है:
# 1 फ़िनिशर
महेंद्र सिंह धोनी अब वैसे फिनिशर नहीं रहे हैं, जैसे कि वह एक समय हुआ करते थे । यह सुनने में बुरा तो लगता है, लेकिन यह सच है। जो भी पिछले एक या दो साल से एकदिवसीय मैचों को देख रहा है, इस तथ्य से पूरी तरह सहमत होगा कि धोनी की सावधानी भरी पारी और उनका पारी की शुरुआत में संघर्ष करना अक्सर एक पारी की रन गति पर प्रभाव डालता है। वास्तव में, पिछले 3 वर्षों से उनकी स्ट्राइक रेट 80 के आसपास है। (2016 में 80, 2017 में 84, 2018 में 81) हालांकि यह 2005 में स्वीकार्य होता, लेकिन आधुनिक समय में जबकि इंग्लैंड जैसी टीम एक आक्रामक क्रिकेट खेल रही है, यह स्ट्राइक रेट एक फिनिशर के लिये बेहतर नही है। इस तथ्य को समझने के लिये आईये एक नज़र अन्य टीमों के फिनिशरों की स्ट्राइक रेट पर: #डेविड मिलर 2016 में 137, 2017 में 99, 2018 में 81 #ग्लेन मैक्सवेल 2016 में 121, 2017 में 113, 2018 में 87 #मार्कस स्टोइनिस 2017 में 100, 2018 में 111 #2016 में जोस बटलर 129, 2017 में 102, 2018 में 109 वैसे भी, जब आप 35 वर्ष की उम्र कोई भी व्यक्ति को महीनों क्रिकेट से दूर रहे तो उसे दोबारा फॉर्म पाने के लिए समय की आवश्यकता होती है, 45वें ओवर में आने के बाद उनसे उम्मीद होती है कि वह लंबे-लंबे छक्के लगाएंगे। फिर भी धोनी की असीमित प्रतिभा, अनुभव और फैसले लेने की क्षमता के चलते धोनी अब भी एकादश में शामिल है। अगली स्लाइड में एमएस धोनी की जगह फिनिशर का किरदार निभा सकने के लिये हार्डिक पांड्या, केदार जाधव या यहां तक कि ऋषभ पंत के विकल्पों पर नज़र डालेंगे। उन्हें हालांकि इस भूमिका में ढलने के लिये समय की आवश्यकता होगी, और जोस बटलर और डेविड मिलर की तरह आवश्यक कौशल को सीखना होगा। इसे भी पढ़ें: SAvIND: अंतर्राष्ट्रीय टी20 में भारतीय गेंदबाज़ों के 5 विकेट लेने के पीछे है सुरेश रैना कनेक्शन
# 2 मध्यक्रम
पिछली स्लाइड की बात पर आगे बढ़ते हुए देखे, तो हमे लगता है कि एमएस धोनी अपने मौजूदा 'पारी के निर्माण' अवतार में नंबर 4 के लिये आदर्श खिलाड़ी हैं। देखा जाये तो धोनी के खेलने की वर्तमान शैली इस नंबर के लिये एकदम सही है। पारी को बनाने और फिर धीरे धीरे अंत तक पहुचने पर अंतिम ओवरों में उनके पास आक्रामक प्रहार करने के लिए पर्याप्त समय होगा। भारतीय क्रिकेट टीम प्रबंधन ने इस प्रयोग को पहले भी आजमाया है और उन्हें अच्छे परिणाम भी मिले हैं। इसका मतलब यह है कि अजिंक्य रहाणे को बैक-अप सलामी बल्लेबाज की भूमिका में वापस भेज दिया जायेगा क्योंकि वह 5 या उससे नीचे की बल्लेबाजी के लिए फिट नहीं हैं। केएल राहुल नंबर 5 के लिए एक अच्छा विकल्प हो सकते है, या केदार जाधव भी एक अच्छा विकल्प हो सकते हैं। ऋषभ पंत एक और विकल्प होंगे, जिन्हें बल्लेबाज़ी क्रम में नीचे भेजने के विकल्प पर विचार किया जा सकता है।
# 3 ऑलराउंडर
आज क्रिकेट में एक बात बार बार कही जा रही है- 'बेन स्टोक्स रातों रात बेन स्टोक्स नही बने' इस वाक्य पर कितनी भी बातें हो पर कहीं न कहीं सही भी है। भारत के हार्डिक पांड्या अभी भी भारत की आलराउंडर की आवश्यकता को पूरा नहीं कर पा रहे हैं। हालांकि, उन्होंने पिछले दौरों पर कुछ सुधार किया है, और ऐसा लगता भी है कि टीम इंडिया ने उन्हें उनके मौजूदा कौशल के लिए बहुत अधिक महत्व दे रखा है। यदि पांड्या पांचवें गेंदबाज की भूमिका को पूरा करते हैं, तो उन्हें गेंदबाजी करने में पूरी तरह सक्षम होना चाहिए, ऐसी गेंदबाजी जिससे कि वह भुवनेश्वर कुमार और जसप्रित बुमराह की कसी गेंदबाजी शुरुआत और कुलदीप और चहल के स्पिन के जाल से उत्पन्न दबाव को खत्म न होने दें और दुनिया भर के सर्वश्रेष्ठ बल्लेबाजों के लिए एक खतरा बन सकें। अक्सर उन्हें नये बल्लेबाजों को गेंदबाज़ी करते देखा गया है और जैसे ही हमला होता है हटा दिया जाता है और विकेट के पतन के बाद वापस लाया जाता है या केदार जाधव को उनकी जगह ले आया जाता है। इंग्लैंड में आयोजित होने वाले विश्व कप के लिये, भारत को मजबूत तेज गेंदबाजी आक्रमण की जरूरत है क्योंकि वहाँ जाधव शायद प्रभावी नहीं हो सकेंगे। विराट कोहली ने हर दूसरी कांफ्रेंस में उन्हें 'मैच विजेता' कहा है, हालांकि उन्होंने मैच-जीतने वाले प्रदर्शन को आज तक नहीं दिखाया है, यह ठीक है कि खिलाड़ियों को समर्थन मिलना चाहिये और उन्हें आत्मविश्वास देना चाहिये, और कोहली को एक मुखर कप्तान भी माना जाता है। हमारा मानना है कि हार्दिक पांड्या टीम इंडिया का भविष्य हैं, लेकिन आत्मविश्वास और अति आत्मविश्वास के बीच एक रेखा होनी चाहिये, जिससे खिलाड़ी और जिम्मेदारी ले सकें। ईमानदारी से कहा जाये तो कोहली और टीम प्रबंधन को, पांड्या को समझाने की जरुरत है जिससे कि वह स्पिन और तेज़ गेंदबाजी के खिलाफ अपनी आक्रामकता तो दिखा सकें। इसके लिए उन्हें अपनी बल्लेबाजी तकनीक को बेहतर करना होगा और गेंदबाजी में सिर्फ बाउंसर पर अपनी निर्भरता खत्म करना होगा।
# 4 विकेटों के बीच दौड़
भारतीय शीर्ष क्रम को इस समस्या पर ध्यान देने की आवश्यकता है, और इसे जल्द सुलझाना होगा। क्या रोहित शर्मा, शिखर धवन और विराट कोहली के विकेट की तुलना में खतरनाक सिंगल ज्यादा महत्वपूर्ण हैं? बहुत बार विशेष रूप से रोहित शर्मा उनमें से ज्यादातर में दोषी रहे हैं, जबकि इन तीन में से एक रन आउट का हिस्सा रहें। हम कोहली के रन चुराने और दौड़ने की क्षमता के एक बड़े प्रशंसक हैं, फिर भी या तो बाकी टीम को उनके स्तर तक पहुँचने की जरूरत है या खुद कोहली को थोड़ा सा संभल कर दौड़ना होगा, क्योंकि उनकी रन दौड़ने की उत्सुकता ने अक्सर उन्हें आउट होते हुए पाया है। हालांकि, रोहित शर्मा, शिखर धवन, अजिंक्य रहाणे या केदार जाधव उन मानकों को नही प्राप्त कर सकते जो कि कोहली के पास हैं (क्योंकि महेंद्र सिंह धोनी शायद एकमात्र व्यक्ति हैं जो कोहली के साथ अच्छी तरह से रन बनाते हैं, क्योंकि कोहली पूरे फैसले को सीनियर में छोड़ देते हैं)। यह खामी टीम के लिये खतरनाक साबित हो सकती है टीम इंडिया के जीतने के फार्मूले में शीर्ष 3 में से किसी एक बल्लेबाजी का अंत तक जाना शामिल होता है। विकेटो के बीच की दौड़ निश्चित रूप से वर्तमान समय में शानदार भारतीय तिकड़ी के लिए काम करने का क्षेत्र है। लेखक: शलज लवानिया अनुवादक: राहुल पांडे