क्रिकेट की शुरुआत से ही अम्पायर का निर्णय सर्वमान्य रहा है और मैदान पर होने वाली हर गतिविधि पर नजर रखने का काम अम्पायर का ही होता है। कई बार गलत फैसलों के शिकार भी बल्लेबाज हुए हैं क्योंकि उस समय तीसरे अम्पायर यानी थर्ड अम्पायर का कॉन्सेप्ट नहीं हुआ करता था लेकिन बाद में इसे लाया गया और फैसलों में और ज्यादा सफाई देखने को मिली।
अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट में मैचों के दौरान ज्यादा पारदर्शिता से फैसले देने के लिए थर्ड अम्पायर की नियुक्ति की गई और उसे कई अधिकार भी मिले। इससे बल्लेबाजी और गेंदबाजी दोनों में ही फायदेमंद माना गया। रन आउट या अन्य कई मामलों में थर्ड अम्पायर की नियुक्ति से एक नया विकल्प खुल गया।
थर्ड अम्पायर की शुरुआत कैसे हुई
थर्ड अम्पायर की परिकल्पना श्रीलंका के पूर्व घरेलू क्रिकेटर महिंदा विजेसिंघे ने की थी और इस नियम को लागू 1992 में दक्षिण अफ्रीका और भारत के बीच डरबन टेस्ट मैच में लागू किया गया था। कार्ल लिबनबर्ग को तीसरा अम्पायर बनाया गया था और सचिन तेंदुलकर थर्ड अम्पायर द्वारा आउट दिए जाने वाले पहले अंतरराष्ट्रीय क्रिकेटर बने। मैच के दूसरे दिन सचिन तेंदुलकर रन आउट होकर पवेलियन लौटे थे। इसके बाद तीसरे अम्पायर की भूमिका बढ़ती गई और कई तरह के अधिकार समय-समय पर उनको मिलते गए।
थर्ड अम्पायर को आईसीसी एलिट पैनल से नियुक्त किया जाता है। इमरजेंसी की स्थिति में मैदानी अम्पायर की भूमिका भी थर्ड अम्पायर निभा सकता है। वर्तमान समय में टेस्ट वनडे और टी20 तीनों प्रारूप में थर्ड अम्पायर की नियुक्ति होती है और अब तो चौथे अम्पायर को भी नियुक्त किया जाता है।
वर्तमान समय में डिसीजन रिव्यू सिस्टम आने से थर्ड अम्पायर का काम और बढ़ा है। मैदानी अम्पायर के फैसले को बदलने के लिए खिलाड़ी डिसीजन रिव्यू के लिए तीसरे अम्पायर के पास जाते हैं और कई बार फैसलों को बदला भी जाता है। देखा जाए तो समय के साथ-साथ थर्ड अम्पायर की शक्तियों में वृद्धि हुई है।