क्रिकेट के मैदान पर अक्सर खिलाड़ियों के बीच लडाई झगड़े देखने को मिलते है। तीखी नोंकझोंक के चलते कई मर्तबा माहौल ज्यादा ही गर्म हो जाता है। कुछ खिलाड़ी अपनी टीम को विजय दिलाने के अतिउत्साह में कई बार ऐसी हरकतें कर जाते है कि खेल को शर्मसार होना पड़ता है।
ऐसे में ज्यादातर लोग क्रिकेट में "खेल भावना" के ऊपर सवालिया निशान खड़े करते रहते है। इन सबके बीच कुछ ऐसी घटनाएं भी मैदान पर घटित होती है जिसे देखकर सारे आलोचकों को मुंहतोड़ जवाब मिलता है। हम उन्हीं घटनाओं के बारे में बात कर रहे है जिन्हें "स्पिरिट ऑफ क्रिकेट" के नाम से जाना जाता है।
खेल भावना का मतलब है एक खिलाड़ी के तौर पर हार और जीत से ऊपर उठकर एक बेहतर इन्सान होने का उदाहरण प्रस्तुत करना। हर समय आप केवल जीत या अपने स्वार्थ को साधने के लिए नहीं खेलते है। ऐसे कई अवसर आते है जब आपको दुनिया के सामने खेल भावना दिखाने का मौका मिलता है, उसी समय खेल के प्रशंसकों को आपकी महानता का परिचय होता है।
आइये नज़र डालते हैं पांच ऐसे लम्हो परै जब खेल भावना दिखाने के कारण क्रिकेटरों को दुनियाभर के चाहनेवालों ने सराहा था:
#1. भारतीय कप्तान अजिंक्य रहाणे का अफगानी खिलाडियों को फोटो खिचवाने के लिए बुलाना
14 जून 2018 का दिन अंतरराष्ट्रीय क्रिकेट के लिए ऐतिहासिक दृष्टि से बेहद महत्वपूर्ण था। यह वही दिन है जब अफगानिस्तान की टीम ने टेस्ट क्रिकेट में पदार्पण किया। अफगानिस्तान के लिए टेस्ट रैंकिंग में नंबर वन पर बिराजमान टीम इंडिया के साथ बेंगलुरु में अपना पदार्पण टेस्ट मैच खेलने का अवसर मिलना किसी सपने से कम नहीं था।
विराट कोहली की गैरमौजूदगी में भारतीय टीम की कप्तानी अजिंक्य रहाणे संभाल रहे थे। स्वाभाविक रूप से भारत जैसी धुरंधर टेस्ट टीम को उनके घर पर मात देना अफगानिस्तान के लिए असंभव था। भारत ने आसानी से इस मुकाबले को जीत लिया, मगर मैच खत्म होने के बाद जो हुआ वो क्रिकेट के इतिहास में अभूतपूर्व था।
कप्तान रहाणे ने विपक्षी टीम अफगानिस्तान के खिलाड़ियों को ट्रॉफी के साथ फोटो खिंचवाने के लिए आमंत्रित किया। जोश और जज्बे से भरपूर अफगानिस्तान की टीम के लिए यह पल बेहद यादगार था। रहाणे के इस प्रशंसनीय फैसले की सारी दुनिया ने प्रशंसा की थी।
#2. ग्रांट एलियट द्वारा दिल जीत लेने वाली खेल भावना का प्रदर्शन
पराजय में तो हर कोई विचलित होता है, मगर असली खिलाड़ी वही है जो विजय की क्षणों में भी अपना आपा खोये बगैर विनम्र बना रहता है। न्यूजीलैंड के बल्लेबाज ग्रांट एलियट ने भी कुछ ऐसा ही उदाहरण विश्व कप 2015 में पेश किया था।
दक्षिण अफ्रीका और न्यूजीलैंड के बीच साल 2015 विश्व कप का सेमीफाइनल मुकाबला खेला जा रहा था। एक ओर दक्षिण अफ्रीका की टीम थी जो कभी भी प्लेऑफ से आगे बढ़ने में सफल नहीं रही थी। दूसरी ओर छह बार विश्व कप के सेमीफाइनल में हार का सामना करने वाली न्यूजीलैंड की टीम पिछले 40 साल से फाइनल में प्रवेश करने का सपना देख रही थी।
सेमीफाइनल मुकाबले के हीरो बनकर उभरे ग्रांट एलियट ने दक्षिण अफ्रीका के तेज गेंदबाज डेल स्टेन की गेंद पर छक्का जड़कर न्यूजीलैंड को फाइनल तक पहुंचा दिया। इसके साथ ही स्टेन समेत सभी दक्षिण अफ्रीका के खिलाड़ी मैदान पर निराश होकर रोने लगे, इसी बीच एलियट ने अपनी टीम को मिली ऐतिहासिक जीत का जश्न मनाने के बजाय विपक्षी टीम के गेंदबाज स्टेन को हाथ देकर सांत्वना देने का प्रयास किया। मैदान पर उपस्थित सभी दर्शकों का खड़े होकर तालियां बजाना एलियट की महानता को प्रदर्शित करने के लिए काफी था।
#3. एडम गिलक्रिस्ट का अंपायर के आउट ना देने के बावजूद पेवेलियन लौट जाना
ऑस्ट्रेलिया का जब भी जिक्र होता है तो सबके मन में आक्रामक तेवर वाले खिलाड़ियों की तस्वीर उभर कर सामने आती है। "स्लेजिंग" को कंगारू खिलाड़ी अपने खेल का हिस्सा मानते है, ऐसे में उनकी ओर से खेल भावना की उम्मीद नहीं रख सकते है। मगर साल 2003 में खेले गए विश्व कप के सेमीफाइनल में ऑस्ट्रेलिया के दिग्गज विकेटकीपर बल्लेबाज एडम गिलक्रिस्ट ने इस बात को गलत साबित कर दिखाया।
सेमीफाइनल मुकाबले में श्रीलंका के विरुद्ध ऑस्ट्रेलियाई टीम पहले बल्लेबाजी करने उतरी थी, सलामी बल्लेबाज गिलक्रिस्ट अपने विस्फोटक अंदाज में 20 गेंदों पर 22 रन बनाकर नाबाद थे। श्रीलंकाई गेंदबाज अरविंद डीसिल्वा की गेंद गिलक्रिस्ट के पैड पर लगकर विकेटकीपर कुमार संगाकारा के हाथों में चली गई। अंपायर रूडी कर्जन ने गिलक्रिस्ट को आउट देने से साफ मना कर दिया।
लेकिन गिलक्रिस्ट अंपायर के निर्णय को दरकिनार करते हुए पेवेलियन की ओर चल पड़े, क्योंकि उन्हें ऐसा लग रहा था कि उनके बल्ले का गेंद के साथ संपर्क हुआ है। इसी प्रकार की "स्पोर्ट्समैन स्पिरिट" के अनगिनत प्रसंग महान बल्लेबाज सचिन तेंदुलकर के साथ भी हुए है, जब उन्होंने अंपायर के फैसले का इंतजार किये बगैर ही पवेलियन का रुख कर लिया था।
#4. मार्वन अटापट्टू का एंड्रयू साइमंड्स को वापस बुलाना
ऑस्ट्रेलिया और श्रीलंका के बीच साल 2004 में खेली गई एकदिवसीय श्रृंखला के दौरान बेहद रोमांचक घटना देखने को मिली। ऑस्ट्रेलियाई बल्लेबाज एंड्रयू साइमंड्स श्रीलंका के गेंदबाज कुमार धर्मसेना की गेंद को खेलने गए, तब उनके बल्ले का अंदरूनी किनारा लगकर गेंद पैड्स पर टकरा गई। अंपायर पीटर मेन्युअल ने तुरंत ही उंगली उठाई और साइमंड्स को आउट करार दिया।
अंपायर के फैसले से हैरान हुए साइमंड्स काफी निराश होकर पेवेलियन की ओर चलने लगे, तभी श्रीलंकाई कप्तान मार्वन अटापट्टू ने परिस्थिति को भांप लिया। मैदान पर मौजूद दोनों अंपायर के साथ अटापट्टू ने विचार-विमर्श किया और साइमंड्स को वापस बल्लेबाजी करने के लिए बुलाने की इच्छा जाहिर की।
ठीक इस तरह का संयोग 2011 में भारत और इंग्लैंड के बीच खेले गए दूसरे टेस्ट में भी देखने को मिला था। इंग्लैंड के बल्लेबाज इयान बेल 137 रनों पर नाबाद खेल रहे थे, उसी समय बेल के क्रीज से बाहर खड़ा होने का लाभ उठाकर उन्हें रन आउट कर दिया गया। अंपायर ने तुरंत चाय की घोषणा कर दी, चायकाल के दौरान इंग्लैंड टीम के कुछ सदस्यों ने भारतीय कप्तान महेंद्र सिंह धोनी को अपना फैसला बदलने की गुजारिश की। धोनी ने भी खेल भावना दिखाते हुए आदर्श कप्तान होने का शानदार उदाहरण प्रस्तुत करते हुए चायकाल समाप्त होने के बाद बेल को फिर से बल्लेबाजी करने के बुलाया।
#5. महेंद्र सिंह धोनी का दक्षिण अफ्रीका के बल्लेबाज फाफ डु प्लेसिस के लिए फिजियो बनना
महेंद्र सिंह धोनी को एक बेहतरीन क्रिकेटर और कप्तान से ज्यादा आदर्श इंसान के रूप में जाना जाता है। मैदान पर और मैदान के बाहर भी निजी जीवन में धोनी का व्यक्तित्व लाजवाब है। भारत और दक्षिण अफ्रीका के बीच मुंबई के वानखेड़े स्टेडियम में खेले गए एकदिवसीय श्रृंखला के पांचवें मैच में भी कुछ ऐसा ही देखने को मिला।
दक्षिण अफ्रीका के बल्लेबाज फाफ डु प्लेसिस शानदार शतक जड़कर 133 रनों पर नाबाद थे। पैर के स्नायुओं में खिंचाव के कारण शोट लगाने के बाद डु प्लेसिस गिर जाते थे। आखिरकार चोट के कारण उन्होंने रिटायर्ड हर्ट होकर वापस लौटने का निर्णय लिया। इस दौरान डु प्लेसिस की मदद के लिए भारतीय कप्तान महेंद्र सिंह धोनी आगे आये और कुछ समय के लिए उनके फिजियो बन गए। धोनी ने खेल भावना प्रदर्शित करते हुए डु प्लेसिस के पैरों के खिचाव को कम करने का प्रयास किया।