दिग्गज भारतीय ओपनर बल्लेबाज वीरेन्द्र सहवाग (Virender Sehwag) अपने समय में धुंआधार बल्लेबाजी के लिए जाने जाते थे। टेस्ट क्रिकेट में भी सहवाग धुंआधार बल्लेबाजी करते थे। 2007 में खराब फॉर्म के कारण सहवाग को टेस्ट टीम से बाहर कर दिया गया था। सहवाग ने 52वां टेस्ट खेला और उसके बाद वह टीम से बाहर हो गए थे। इसके बाद अगला टेस्ट खेलने के लिए उन्हें लगभग एक साल का इंतजार करना पड़ा था। अब सहवाग ने खुलासा किया है कि कैसे अनिल कुंबले (Anil Kumble) ने उनका टेस्ट करियर बचाया था।
टीम से बाहर होने को लेकर सहवाग ने कहा,
अचानक मुझे पता चला कि मैं टेस्ट टीम का हिस्सा नहीं हूं और इससे मुझे दुख हुआ। यदि उस समय मुझे टीम से बाहर नहीं किया गया होता तो संभवतः मैंने टेस्ट में 10,000 से अधिक रन बनाए होते।
टीम से बाहर चल रहे सहवाग को जब अचानक 2007-08 के ऑस्ट्रेलिया दौरे के लिए चुना गया था तब काफी लोगों को हैरानी हुई थी। उस समय टीम के कप्तान रहे कुंबले ने जबरदस्ती सहवाग को अपनी टीम में शामिल कराया था। पहले दो टेस्ट में सहवाग को प्लेइंग इलेवन में जगह नहीं मिली थी और इन दोनों मैचों में भारत हारा था। पर्थ में तीसरे टेस्ट से पहले भारत को एक अभ्यास मैच खेलना था और कुंबले ने वादा किया था कि यदि सहवाग इसमें अर्धशतक लगाते हैं तो वह तीसरा टेस्ट खेलेंगे।
"कुंबले ने भरोसा दिया था कि उनके कप्तान रहते हुए नहीं किया जाएगा बाहर"- सहवाग
अभ्यास मैच में शतक लगाने के बाद सहवाग को तीसरे टेस्ट में खेलने का मौका मिला। कुंबले को लेकर सहवाग ने बताया,
दौरा समाप्त होने के बाद अनिल भाई ने वादा किया था कि जब तक वह टेस्ट टीम के कप्तान रहेंगे तब तक मुझे टीम से निकाला नहीं जाएगा। हर खिलाड़ी को अपने कप्तान से इसी भरोसे की उम्मीद रहती है। शुरुआती दौर में गांगुली ने यह भरोसा दिया था और फिर कुंबले ने उसे आगे बढ़ाया।