2019 विश्व कप में खेलना युवराज सिंह का सिर्फ सपना बनकर ही रह जाएगा!

Enter caption

युवराज सिंह यह सिर्फ एक नाम ही नहीं है, बल्कि भारत द्वारा जीते गए दो विश्व कप की एक मुख्य वजह में से एक है। साल 2000 में ऑस्ट्रेलियाई टीम के खिलाफ शानदार आगाज करने वाले युवराज सिंह का करियर किसी उतार चढ़ाव से कम नहीं रहा। 17 साल तक देश के लिए खेलने के बाद भी अगर किसी खिलाड़ी के अंदर वापसी करने का जज्बा खत्म ना हो , तो यह दिखाता है कि उसमें खेल के प्रति अभी भी कितनी भूख बाकी है।

इतने लंबे करियर में उन्होंने कई बार इंडिया को अपने बलबूते पर जीत दिलाई और न जाने कितनी मैच जिताऊ पारी भी खेली, लेकिन ऐसा क्या था कि इतना सब करने के बाद भी जब भी पंजाब का यह खिलाड़ी मैदान में उतरता है तो उसे हर बार अपने आप को साबित करना पड़ता है।

एक नजर युवराज सिंह के इंटरनेश्नल करियर के आंकड़ो पर:

फॉर्मैट मैच रन औसत

टेस्ट 40 1900 33.92

वन-डे 304 8701 36.55

टी-20 58 1177 28.00

इन आंकड़ों को देखकर युवराज सिंह के टैलंट का असल अंदाजा नहीं लगाया जा सकता, लेकिन यह आंकड़ें इस चीज की ओर इशारा जरूर कर रहे हैं कि बाएं हाथ के इस बल्लेबाज ने अपनी प्रतिभा के अनुरूप कभी भी निरंतरता से प्रदर्शन नहीं किया औऱ यह सबसे बड़ी वजह रही कि पिछले 6 सालों में टीम से अंदर बाहर होते रहे और इस बीच वो सिर्फ 24 वन-डे ही खेल पाए।

युवराज सिंह के करियर को दो हिस्सों में बाटा जा सकता है, एक 2011 विश्व कप से पहले का फेज औऱ एक उसके बाद का । 28 साल बाद भारत को विश्व कप दिलाने के बाद युवी ने कैंसर के रूप में अपने करियर की सबसे बड़ी जंग लड़ी और उसमें जीत भी हासिल की। किसी ने इस चीज की उम्मीद नहीं की थी कि कैंसर जैसी बीमारी के बाद शायद ही हम इस खिलाड़ी को दोबारा मैदान में देख पाएंगे।

हालांकि उन्होंने सबको गलत साबित किया और साल के अंत तक वो एक बार फिर भारत के लिए तीनों फॉर्मेट में खेलते हुए नजर आए, लेकिन अभी भी वो पूरी तरह से फिट नहीं थे जिसके बाद उन्हें एक अहम टूर्नामेंट से ड्रॉप भी किया गया।

साल 2013 में जब युवराज सिंह को चैंपियंस ट्रॉफी की टीम से बाहर का रास्ता दिखाया गया, तो उन्होंने हार मानने की जगह अपनी फिटनेस को और बेहतर बनाने के लिए फ्रांस में जाकर ट्रेनिंग की और उसके बाद घरेलू क्रिकेट में रनों का अंबार लगाया और एक बार फिर टीम इंडिया में अपनी जगह पक्की की।

इसके बाद ऑस्ट्रेलिया के खिलाफ राजकोट में खेले गए एकमात्र टी-20 में उन्होंने विस्फोटक अंदाज में 35 गेंदों में शानदार 77 रनाकर 200 रनों के विशाल लक्ष्य को भी बौना बना दिया।

हालांकि हर खिलाड़ी के करियर में एक दौर जरूर आता है, जिसके ऊपर उसका पूरा करियर निर्भर करता है। युवराज के लिए वो खराब दौर ऑस्ट्रेलिया का भारत दौरा था। उस सीरीज में भारत ने 3-2 से जीत हासिल की, विराट कोहली ने भारत की तरफ से सबसे तेज़ शतक लगाया, रोहित शर्मा ने अपने करियर का पहला दोहरा शतक लगाया और इसके अलावा भारत ने दो बार 350 से ऊपर का लक्ष्य भी हासिल किया, लेकिन उसी श्रंखला में एक ऐसा दौर आय़ा, जो युवराज के पतन का बड़ा कारण भी बना।

उस सीरीज में खेले गए 7 मैचों की 4 पारियों में युवराज ने सिर्फ 19 रन बनाए और जिसमें से वो दो बार 0 पर भी आउट हुए। यह ही नहीं इस सीरीज नें मिचेल जॉनसन द्वारा किए शॉर्ट बॉल के हमले ने युवी को इस कदर बैकफुट पर भेजा कि मौजूदा समय तक वो उस कमजोरी से उबर नहीं पाए हैं और जब भी वो बल्लेबाजी के लिए मैदान में आते हैं, तो उनके खिलाफ बाउंसर का इस्तेमाल अब आम बात बन गई है।

ऐसा नहीं है कि युवी इन गेंदों को अच्छा नहीं खेलते, लेकिन जब दिमाग में डर बैठ जाए, तो उसे निकाल पाना लगभग नामुमकिन हो जाता है। कहते हैं शरीर पर लगा घाव तो भर जाता है, लेकिन मानसिक घाव इतनी आसानी से नहीं भरता।

उस सीरीज में युवराज के साथ कुछ ऐसा ही हुआ, शॉर्ट बॉल के खौफ ने उनका पूरे विश्वास को ही हिला दिया और यह वो ही दौर था, जिसके बाद उनका करियर पूरी तरह से डगमगा गया।

पंजाब के इस खिलाड़ी ने भले ही इस साल वापसी की और इंग्लैंड के खिलाफ शानदार 150 रनों की पारी खेली भी खेली, लेकिन अभी भी उनके खेल में वो निरंतरता नजर नहीं आ रही जिसके लिए वो जाने जाते हैं।

युवराज की उम्र इस समय 35 साल है औऱ 2019 विश्व कप तक वो 37 साल के हो जाएंगे और जैसी फिटनेस उनकी अभी है, उसको देखते हुए उनके लिए टीम का हिस्सा दोबारा बन पाना अब एक सपना ही लगता है।

हालांकि जैसे की सब युवराज को जानते हैं कि अगक वो एक बार कुछ ठान लें, तो वो उसको हासिल करके ही दम लेते हैं। लेकिन इस बार उनके लिए राह काफी मुश्किल नजर आ रही है और अगर हम उन्हें अब एक बार फिर इंडिया के लिए खेलते हुए न देखे, तो किसी को भी हैरानी नहीं होना चाहिए।

Quick Links

Edited by Staff Editor