भारतीय उपमहाद्वीप में अंतरराष्ट्रीय स्तर पर महान खिलाड़ी बनने के बाद खेल को छोड़ना खिलाड़ी के लिए आसान नहीं होता। खिलाड़ी अपन समय पूरा होने के बाद भी असमंजस में रहता कि उसे संन्यास लेना है या टीम में चुने जाने का इन्तजार करना है। महेंद्र सिंह धोनी भी एक महान खिलाड़ी हैं और उनके साथ भी अब ऐसा ही हो रहा है। 2019 विश्वकप के बाद धोनी टीम से बाहर हैं। कहा गया था कि उनको पीठ में चोट है इसलिए टीम में शामिल नहीं किया जा रहा है।
नए खिलाड़ी टीम में खेल रहे हैं और कई कतार में भी हैं। धोनी को टीम में लेने के लिए उन्हें नजरअंदाज नहीं किया जा सकता। पहले कई बार देखा गया है कि टीम से बाहर रहने वाला खिलाड़ी घरेलू क्रिकेट खेलकर वापसी करता था, धोनी के मामले में ऐसा नहीं दिख रहा। उन्होंने अपनी चोट की पुष्टि भी खुद नहीं की। वर्ल्ड कप सेमीफाइनल में जिस तरह उन्होंने धीमी बल्लेबाजी की, टीम की हार के लिए भी उन्हें जिम्मेदार माना गया। इसके बाद वे सेना के साथ एक महीने तक रहे। कई बार ऐसा भी लगता है कि अब उन्होंने खेल को गंभीरता से लेना छोड़ दिया है।
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खेल खिलाड़ी को बनाता है न कि खिलाड़ी खेल को। इसमें कोई संदेह नहीं कि उन्होंने टीम को कितने मौकों पर कैसी परिस्थिति से निकालकर जीत दिलाई है लेकिन अब वह धोनी देखने को नहीं मिलेगा। उनका समय पूरा हो चुका है। चयनकर्ताओं ने भी उन्हें टीम में शामिल नहीं करते हुए कहा था कि हम धोनी से आगे बढ़ चुके हैं और युवा खिलाड़ियों पर ध्यान दे रहे हैं, धोनी का कोई भी फैसला उनका व्यक्तिगत है।
वीरेंदर सहवाग, सौरव गांगुली और युवराज सिंह जैसे कई खिलाड़ियों ने टीम से बाहर होने पर घरेलू क्रिकेट में खुद को साबित कर फिर से टीम में जगह बनाई। धोनी ऐसा भी नहीं कर रहे हैं। घरेलू क्रिकेट में बिना खेले उन्हें टीम में शामिल करना उन खिलाड़ियों के साथ अन्याय होगा जो अच्छा कर रहे हैं। बांग्लादेश के खिलाफ टी20 सीरीज के लिए तो भारतीय टीम घोषित हो चुकी है लेकिन आने वाले समय में बिना खेले धोनी को यदि टीम में जगह मिलती है, तो यह न्यायसंगत नहीं कहा जा सकता है।
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