भारत में क्रिकेट के प्रति जुनून किसी से छिपा नहीं है। भारतीय क्रिकेट ने अपने समय के साथ-साथ एक से बढ़कर एक खिलाड़ी देखे हैं। दिग्गजों के बाद दिग्गज बनने की कठिन प्रक्रिया में युवराज सिंह का नाम बड़े गर्व के साथ लिया जाता है। कड़ी मेहनत और कठिन परिश्रम से तपकर भारतीय टीम के लिए तैयार हुई यह नायाब खिलाड़ी अपने बेहतरीन खेल के लिए दुनिया भर में जाना जाता है। गेंद को मैदान से बाहर भेजना हो या घुटनों के बल बैठकर लेग साइड में सिक्स लगाना हो युवराज सिंह का अपना एक अलग अंदाज रहा है। युवराज सिंह भले फिलहाल टीम से बाहर चल रहे हों लेकिन युवराज जब तक टीम में रहे उनकी धाक थी और गेंदबाजों में खौफ। युवराज सिंह की क्रिकेट को बेहतरीन हिस्सा यह रहा कि वह युवाओं के खिलाड़ी रहे हैं उनकी बल्लेबाजी के दौरान टीवी पर क्रिकेट देख रहे लोगों को यह भरोसा होता था कि युवराज सिंह मैच जीतने में पूरी तरह से सक्षम हैं।
हम आपको बता रहे हैं कैसे युवराज ने अपने पिता की आंखों में पल रहे सपने को हकीकत में बदल दिया।
#1पिता का सपना पूरा किया
12 दिसम्बर को योगराज सिंह और शबनम सिंह के घर किलकारी गूंजी और जन्म हुआ युवराज सिंह का। पंजाब के एक सिख परिवार में जन्मे युवराज सिंह को काफी नाज से पाला गया। यह तो सभी को पता है कि युवराज पूर्व क्रिकेटर खिलाड़ी और फिल्म अभिनेता योगराज सिंह के बेटे हैं। 1976 में भारतीय टीम की ओर से महज एक टेस्ट मैच खेलने वाले योगराज सिंह ने अपने बेटे को क्रिकेट सिखाने के लिए अपना सब कुछ दांव पर लगा दिया था। योगराज ने एक पिता का धर्म निभाते हुए युवराज सिंह को अनुशासन और लाड़ प्यार दोनों दिए।
युवराज के लिए घर में ही क्रिकेट से जुड़ी हर चीज का बंदोबस्त किया। योगराज की इस कड़ी तपस्या का जो परिणाम निकला वो इतिहास है। बताया जाता है कि चोट की वजह से और कुछ अन्य कारणों से योगराज सिंह को क्रिकेट छोड़ना पड़ा लेकिन उनके मन में एक टीस थी जिसे उन्होंने अपने बेटे को क्रिकेट की दुनिया का युवराज बनाकर निकाल ली। युवराज की मां शबनम सिंह को युवराज सिंह काफी प्यार करते हैं और वह उन्हें अपना आदर्शन मानते हैं।
#2 टीम इंडिया में एंट्री
साल 2000 वह दौर था जब भारतीय टीम के कई बड़े खिलाड़ी फिक्सिंग के दलदल में फंस कर टीम से बाहर हो चुके थे। भारतीय कप्तान सौरभ गांगुली के हाथ में टीम की कमान दी गई और सौरव के सामने टीम को फिर से तैयार करन की चुनौती थी। इस दौरान सौरव ने युवराज सिंह पर भरोसा जताया और टीम में जगह दी। युवराज की बल्लेबाजी और फील्डिंग टीम में क्रांति के तौर पर सबित हुई। मैदान पर युवराज की फील्डिंग का कोई सानी नहीं था उन्हें देखकर टीम के अन्य खिलााड़ियों को भी अपनी फील्डिंग को सुधारने की बात कही गई।
युवराज सिंह ने आईसीसी नॉक-आउट ट्राफी के दौरान केन्या के खिलाफ अपना पहला मैच खेला। इस सीरीज के दूसरे ही मैच में युवी ने आस्ट्रेलिया के खिलाफ 82 गेंदों पर 84 रन बनाते हुए विश्व क्रिकेट के पटल पर अपनी धाक जमा ली। 2007 टी-ट्वेंटी विश्व कप में इंग्लैण्ड के खिलाफ एक ओवर में छह छक्के मारकर युवराज ने दुनिया को बता दिया की वह क्रिकेट की किताब में नई इबारत लिखने वाले हैं। इसके बाद युवराज का काफीला आगे बढ़ता गया और वह बल्ले ही नहीं गेंदबाजी से भी कमाल करने लगे।
#3 भारत को अपने दम पर जिताया विश्व कप
साल 2011 में विश्व कप में टीम के खिलाड़ियों के प्रदर्शन को तराजू पर तौले तो युवराज का प्रदर्शन जिस पल्ले पर रखेंगे वह भारी हो जाता है। बैटिंग, बॉलिंग और फील्डिंग क्रिकेट के इन तीनों क्षेत्रों में युवराज का प्रदर्शन एक निपुण खिलाड़ी जैसा रहा। विश्व कप 2011 में 362 रन और 15 विकेट लेकरन सिर्फ भारत को विश्व कप दिलाया बल्कि खुद के नाम मैच ऑफ द टूर्नामेंट भी किया।
विश्व कप जीतने के बाद सबको स्तब्ध करने वाली खबर आई कि युवराज सिंह को कैंसर हो गया है। जिसके बाद दुनिया भर में मायूसी छा गई लेकिन इस योद्धा प्रवृत्ति के खिलाड़ी ने हार नहीं मानी। युवराज के चाहने वालों की तरफ से दुआ के लिए इतने सजदे हुए कि युवराज उठ खड़े हुए कैंसर से जीतकर दोबारा मैदान पर शानदार प्रदर्शन किया। युवराज एकदिवसीय और टी20 के इतिहास के पन्नों पर कई रिकॉर्ड्स अपने नाम कर चुके हैं लेकिन टेस्ट मैच में युवराज सिंह को खुद को साबित करना हमेशा चुनौतीपूर्ण रहा है।