अंतरराष्ट्रीय स्तर पर कई खिलाड़ी ऐसे हुए जिन्हें सफ़ेद गेंद के प्रारूपों में जबरदस्त सफलता हासिल हुई लेकिन टेस्ट फॉर्मेट में उनको ज्यादा सफलता नहीं प्राप्त हुई। ऐसे ही खिलाड़ियों की लिस्ट में पूर्व भारतीय युवराज सिंह (Yuvraj Singh) का नाम शामिल है। युवी को लिमिटेड ओवर्स की क्रिकेट के दिग्गजों में शुमार किया जाता है लेकिन लाल गेंद के फॉर्मेट में बाएं हाथ के बाद बल्लेबाज को ज्यादा सफलता नहीं प्राप्त हुई। सफ़ेद गेंद की क्रिकेट में 362 मैच खेलने वाले युवराज सिंह का टेस्ट करियर काफी छोटा और औसत रहा।
2003 में टेस्ट डेब्यू करने वाले युवराज ने अपना आखिरी टेस्ट 2012 में खेला था। इस दिग्गज खिलाड़ी ने अपने करियर में कुल 40 टेस्ट खेले और 33.92 की औसत से 1900 रन बनाये। इस दौरान उन्होंने तीन शतक और 11 अर्धशतक भी जड़े। अपने करियर को लेकर युवराज ने कहा कि उन्हें टेस्ट प्रारूप में उतने मौके नहीं मिले।
स्पोर्ट्स18 के शो 'होम ऑफ हीरोज' में बातचीत के दौरान युवराज ने कहा,
अगर आप उस दौर की तुलना आज के दौर से करें तो आप देख सकते हैं कि खिलाड़ियों को 10-15 मैच मिलते हैं। आप उस दौर को देखें, आप वैसे ही ओपन कर सकते हैं जैसे वीरू ने इसे शुरू किया था। उसके बाद द्रविड़, सचिन, गांगुली और लक्ष्मण। मैंने लाहौर में शतक बनाया और अगले टेस्ट में मुझे ओपनिंग करने के लिए कहा गया।
युवराज ने अपने टेस्ट करियर की अच्छी शुरुआत की थी और उन्होंने 2004 में पाकिस्तान दौरे के पहले टेस्ट में 59 और लाहौर में खेले गए अगले टेस्ट में 129 गेंदों में 112 रन की शानदार पारी खेली थी।
इसके अलावा युवराज ने आगे कहा कि जब सौरव गांगुली के संन्यास के बाद उन्हें टेस्ट में खेलने के मौके मिले तो वह कैंसर की चपेट में आ गए। उन्होंने कहा,
आखिरकार, जब दादा के संन्यास के बाद मुझे टेस्ट क्रिकेट खेलने का मौका मिला, तो मुझे कैंसर का पता चला। यह सिर्फ दुर्भाग्य रहा है। मैंने 24x7 कोशिश की। मैं 100 टेस्ट मैच खेलना चाहता था, उन तेज गेंदबाजों का सामना करना और दो दिन बल्लेबाजी करना चाहता था। मैंने इसे सब कुछ दिया, लेकिन यह होना नहीं था।