यूपी के बनारस (वाराणसी) के छोटे से गांव सुलेमानपुर में इस समय जश्न का माहौल है। गांव के दशरथ यादव के बेटे विजय कुमार यादव ने बनारस की गलियों से निकलर बर्मिंघम, इंग्लैंड में कॉमनवेल्थ खेलों में देश के लिए मेडल जीत लिया है। गरीबी में पले-बढ़े विजय ने पुरुष जूडो के 60 किलोग्राम भार वर्ग में रेपेचाज राउंड के जरिए ब्रॉन्ज मेडल हासिल किया। 25 साल के इस जूडोका का ये पहला कॉमनवेल्थ गेम्स मेडल है।
विजय के पिता दशरथ यादव खराद यानी मशीन का काम करते हैं। विजय ने परिवार को बेहतर जीवन देने के लिए खेलों को चुना और जूडो के खेल में हाथ आजमाया। शुरुआती दांव-पेंच बनारस में ही सीखे। लेकिन परिवार के पास इतना पैसा नहीं था कि खेल के हिसाब से विजय की खुराक पूरी हो पाती। ऐसे में विजय ने भारतीय खेल प्राधिकरण यानी SAI लखनऊ के ट्रायल्स में भाग लिया और यहां एंट्री पा ली जिससे डाइट की परेशानी दूर हुई।
विजय ने चार बार नेशनल चैंपियनशिप में गोल्ड मेडल हासिल किया। साल 2018 और 2019 की कॉमनवेल्थ जूडो चैंपियनशिप में विजय ने गोल्ड जीता। 2019 के दक्षिण एशियाई खेल यानी सैफ गेम्स में भी विजय को गोल्ड मिला। कॉमनवेल्थ खेलों के लिए हुए नेशनल ट्रायल्स में विजय ने बेहतरीन प्रदर्शन कर जीत दर्ज की और भारतीय दल में शामिल हुए। 60 किलो भार वर्ग में विजय को ऑस्ट्रेलिया के जोशुआ काट्ज के खिलाफ हार का सामना करना पड़ा। काट्ज फाइनल में पहुंचे तो विजय को रेपेचाज खेलने का मौका मिला। उन्होंने रेपेचाज में पहले स्कॉटलैंड के डिलन मुनरो को हराया और फिर साइप्रस के पेत्रोस को हराते हुए ब्रॉन्ज अपने नाम किया।
हालांकि मेडल जीतने के बाद एक इंटरव्यू में विजय ने बताया कि वो ज्यादा खुश नहीं हैं क्योंकि उनका लक्ष्य गोल्ड जीतने का था। लेकिन विजय की जीत से उनका परिवार और पूरा देश खुश है। विजय के बड़े भाई अजय भारतीय सेना में हैं और अपने घर बनारस (वाराणसी) आए हैं जहां पूरे परिवार ने मिलकर विजय की जीत को मेडल में बदलते देखा।