वात, पित्त, कफ: आयुर्वेदिक शारीरिक प्रकार (दोष) को ऐसे समझें

वात, पित्त, कफ: आयुर्वेदिक शारीरिक प्रकार (दोष) को ऐसे समझें (फोटो - sportskeedaहिन्दी)
वात, पित्त, कफ: आयुर्वेदिक शारीरिक प्रकार (दोष) को ऐसे समझें (फोटो - sportskeedaहिन्दी)

आयुर्वेद में वात, पित्त, और कफ तीन प्रमुख शारीरिक प्रकार (दोष) होते हैं, जिनका संतुलन स्वास्थ्य के लिए महत्वपूर्ण होता है। इन तीनों दोषों का संतुलन व्यक्ति की प्राकृतिक प्रवृत्ति और विकृति के आधार पर होता है। निम्नलिखित हैं वात, पित्त, और कफ के बारे में थोड़े विस्तार से जानकारी:-

वात, पित्त, कफ: आयुर्वेदिक शारीरिक प्रकार (दोष) को ऐसे समझें (Vata, Pitta, Kapha: Understanding Ayurvedic Body Types Doshas In Hindi)

1. वात (Vata)

गुण (Qualities): वात तत्व वायु और आकाश से बना होता है, और यह शीत, लघु, खरा, खरपत्तीला, खुरचकीला, तेजी, आसानी से बदलने वाला, और विचलनशील होता है।

स्थान (Seat): वात प्रधानत: कमर, जोड़, नसों, श्वासनली, मस्तिष्क, नाक आदि में पाया जाता है।

कार्य (Functions): वात दोष शरीर की गतिशीलता, अनुकूलन, संचालन, विचलन, उदासीनता, आदि के कार्यों को नियंत्रित करता है।

विकृति (Imbalance): अगर वात अत्यधिक बढ़ जाए तो शरीर में शीतलता, दुबलापन, सूखापन, आंतों की समस्याएँ, निद्रा की कमी, अच्छादितता, आदि की समस्याएँ हो सकती हैं।

2. पित्त (Pitta)

गुण (Qualities): पित्त तत्व आग्नि और जल से बना होता है, और गरम, तेज, द्रव, विद्युत्, अस्त्रलकारी, अच्छादनशील, नेत्रीकरण कारी, और विश्लेषणशील होता है।

स्थान (Seat): पित्त प्रधानत: पेट, नाभि, रक्त, पित्त, त्वचा, आँखें, लिवर, स्वेदननली, आदि में पाया जाता है।

कार्य (Functions): पित्त दोष शरीर में पाचन, तापन, रक्त परिसंचरण, रंग, पिगमेंटेशन, बुद्धिमत्ता, तेजी, आदि के कार्यों को नियंत्रित करता है।

विकृति (Imbalance): अगर पित्त अत्यधिक बढ़ जाए तो शरीर में जलन, पाचन संबंधित समस्याएँ, त्वचा में दाने-खाने, उल्टी, दस्त, मुख में आफत, अधिक पसीना, आदि की समस्याएँ हो सकती हैं।

3. कफ (Kapha)

गुण (Qualities): कफ तत्व पृथ्वी और जल से बना होता है, और गरम, गाढ़ा, स्थिर, स्निग्ध, ठंडा, सुंदर, स्तूल, शिथिल, शीतलता और गर्मी में घटने वाला होता है।

स्थान (Seat): कफ प्रधानत: शिरा, श्रोणि, नाक, गला, नसों, पेट, स्वादननली, फेफड़े, सिरा, आदि में पाया जाता है।

कार्य (Functions): कफ दोष शरीर के श्लेष्मन में शुद्धि, स्नेहन, स्थिरता, समृद्धि, तैलापन, प्रतिरक्षा, तरलता, आदि के कार्यों को नियंत्रित करता है।

विकृति (Imbalance): अगर कफ अत्यधिक बढ़ जाए तो शरीर में नाक बंदी, विकार जैसे कि गले में जलन, खांसी, सर्दी, सिरदर्द, श्वासनली संबंधित समस्याएँ, बढ़ती तापमान, अतिशीतलता, आदि की समस्याएँ हो सकती हैं।

व्यक्ति की प्राकृतिक प्रवृत्ति और विकृति को आधार बनाकर, आयुर्वेद विशेष उपचार और आहार अनुसार वात, पित्त और कफ की संतुलनशीलता को सुनिश्चित करता है। यह मानव शरीर की विशेषताओं का महत्वपूर्ण हिस्सा है जो स्वास्थ्य और तंत्रिका संरचना के बीच संतुलन बनाए रखने में मदद करते हैं।

अस्वीकरण: सलाह सहित यह सामग्री केवल सामान्य जानकारी प्रदान करती है। यह किसी भी तरह से योग्य चिकित्सा राय का विकल्प नहीं है। अधिक जानकारी के लिए हमेशा किसी विशेषज्ञ या अपने चिकित्सक से परामर्श करें। स्पोर्ट्सकीड़ा हिंदी इस जानकारी के लिए ज़िम्मेदारी का दावा नहीं करता है।

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