बैडमिंटन की शुरुआत कहां से हुई इसका तो पता नहीं, लेकिन 19 वीं सदी में अंग्रेजों के माध्यम से हमने इस खेल को जाना। भारतीय बड़े शहरों में इस खेल की लोकप्रियता को देखते हुए इसे पहले पूना कहा जाता था। बाद में विश्व भर से इस खेल को समर्थन मिला। ये रहे इस खेल से जुड़े कुछ नियम: सिंगल मैच के शुरू होने से पहले, यानि जब स्कोर 0-0 हो या जब दोनों खिलाडियों का स्कोर इवन हो तब सर्विस करनेवाला खिलाडी दाहिने कोने से सर्विस करता है। जब स्कोर ओड होगा तब सर्विस बाएं कोने से की जाएगी। जो सर्विस कर रहा है वो अगर सर्विस जीतने में सफल होता है तो वो दूसरे कोर्ट से सर्व कर सकता है। वहीँ अगर वो सर्विस बचाने में असफल हुआ तो सर्विस बदल दी जाती है। इस पुरे समय इवन/ओड़ सर्विस नियम माने जाते हैं। स्कोरिंग प्रणाली बैडमिंटन की स्कोरिंग सिस्टम बहुत सरल है। 21 अंकों के एक गेम होता है और एक मैच में कुल 3 गेम हो सकते हैं। 21 अंक पर पहुँचने वाले पहले खिलाडी को विजेता घोषित किया जाता है। लेकिन अगर दोनों खिलाडी 20-20 अंक पर अटक जाएँ तब वो खिलाडी जो पहले दो अंक का अंतर बना ले उसे विजेता घोषित किया जाता है। अगर दोनों खिलाडी 29 अंक के स्कोर पर पहुँच जाये तो 30 अंक पर पहले पहुंचनेवाले खिलाडी को विजेता घोषित किया जाता है। मैच के बीच में एक आराम का समय होता है जब कोई भी पहला खिलाडी 11 अंक पर पहुँच जाता है। वैसे पहले दो गेम में साइड बदलने की कोई प्रक्रिया नहीं है, लेकिन अगर खेल तीसरे गेम तक गया तो इंटरवल में दोनों खिलाडी अपने साइड बदलते हैं। डबल्स डबल के खेल में केवल एक ही खिलाडी सर्विस कर सकता है। गेम की शुरुआत दाहिने कोने से होती है और हर इवन स्कोर पर सर्विस यहीं से की जाती है। ओड़ स्कोर पर कोर्ट के बाएं कोने से सर्विस की जाती है। अगर सर्विस ब्रेक हो जाए और विरोधी को सर्विस मिले तो वो अपने कोर्ट से सर्विस चालू कर स्टॉक है। बैडमिंटन के खेल में आये विराम को लेट कहा जाता है। ये तब किया जाता है, जब शटल नेट के ऊपर अटक जाये या विरोधी के शॉट को रोके।
शॉट्स
किसी भी बैडमिंटन खिलाड़ी को सबसे पहले 'डिफेंसिव लॉब' सिखाया जाता है, ताकि वों मुश्किल स्तिथि में बाख सके। लॉब शॉट दो प्रकार के होते हैं: 1. ओवरहेड डिफेंसिव क्लियर जैसा की तस्वीर में देखा जा सकता है, खिलाडी को ओवरहेड डिफेंसिव क्लियर के दौरान हवा में जाना पड़ता है और शटल को विरोधी खेमे की ओर नीचे की तरफ दबाया जाता है। 2. अंडरआर्म डिफेन्स स्ट्रोक अंडरआर्म डिफेन्स स्ट्रोक में शटल नीचे से ऊपर की ओर जाती है और विरोधी के कोर्ट में गिरती हैं। ओवरहेड शॉट और अंडरआर्म शॉट में एक फर्क ये है की पहल कोर्ट के किनारे से खेला जाता है और दूसरा नेट के पास से। 3. द ड्राप शॉट बैडमिंटन के खेल का एक और महत्वपूर्ण शॉट है ड्राप शॉट। डिफेंसिव शॉट के उल्ट यहाँ पर शटल को कोर्ट के किनारे से मारा जाता है ताकि वें ज्यादा ऊंचाई पर न् जाते हुए विरोधी के खेमे में गिरे। डिफेंसिव स्ट्रोक खेल की गति को धीरे और ड्राप शॉट खेल की गति को बढ़ाने का काम करते हैं। 4. स्मैश स्मैश दिखने में जितना आसान है, असल में उससे कई ज्यादा मुश्किल है। यहाँ पर खिलाडी अपना संतुलन खो सकता है। इसलिए इसका उपयोग तभी किया जाता है जब खिलाडी को रैली खत्म कर के अंक हासिल करना होता है। स्मैश का इस्तेमाल अक्सर विरोधी को चौंकाने के लिए किया जाता है और इसे खेलते हुए खिलाडी को मन शांत रखने की ज़रूरत है। 5. जम्प स्मैश जम्प स्मैश एक तरह का स्मैश है जहाँ पर खिलाडी हवा में उठकर शटल विरोधी के खेमे में नीचे की ओर दबाता है। इसे बैडमिंटन का सबसे खतरनाक शॉट माना जाता है और इसे पूरा करना कोई आसान काम नहीं होता। स्मैश की तरह ही जम्प स्मैश में भी शरीर के संतुलन की बड़ी जरूरत होती है। 6. नेट शॉट बैडमिंटन का ये एक खतरनाक शॉट है। इसे अक्सर रैली को आगे बढ़ाने के लिए इस्तेमाल किया जाता और इसके इस्तेमाल से विरोधी हाई शॉट खेलने पर मजबूर हो जाता है। अगर सही एक्यूरेसी और तरीके से इसका इस्तेमाल किया जाये तो ये शॉट खुद में एक अटैक करने का शॉट बन सकता है। 7. नेट किल सरल भाषा में कहें तो नेट किल का इस्तेमाल खिलाडी तभी करता है जब विरोधी ख़राब नेट शॉट मारे और आपको रैली खत्म करनी हो। 8. डिफेंसिव नेट लिफ्ट डिफेंसिव नेट लिफ्ट का इस्तेमाल तब किया जाता है जब विरोधी नेट के पास बहुत अच्छा खेल रहा हो। नेट किल को रोकने के लिए डिफेंसिव नेट लिफ्ट सबसे अच्छी मूव है। 9. द ड्राइव स्मैश की तरह ही ड्राइव का इस्तेमाल बड़ी तेज़ी से विरोधी के शरीर पर की जाती है। इसकी तेज़ी इतनी तेज़ होती है कि विरोधी को संभलने का मौका नहीं मिलता। लेखक: शंकर नारायण, अनुवादक: सूर्यकांत त्रिपाठी