हाल ही में संपन्न हुई BWF बैडमिंटन विश्व चैंपियनशिप में भारत के लिहाज से इतिहास बनते देखा गया। पहली बार किदाम्बी श्रीकांत के रूप में किसी भारतीय पुरुष खिलाड़ी ने एकल वर्ग के फाइनल में जगह बनाई। उनका जीता गया सिल्वर भी इतिहास में देश के लिए पहला है। उनसे पहले किसी पुरुष खिलाड़ी ने देश के लिए ये कारनामा नहीं किया। वहीं 20 साल के लक्ष्य सेन ने जिस फुर्ती से अपने मुकाबले खेले, और सेमिफाइनल तक पहुंचकर कांस्य पदक अपने नाम किया, उसकी चर्चा भी हर तरफ हो रही है। लेकिन इस सबके बीच एक भारतीय खिलाड़ी है जो फिनिश लाइन के करीब आते-आते रह जाता है और इसी वजह से भले ही वह दुनिया के बड़े-बड़े खिलाड़ियों को चौंका दे, लेकिन देश में उन्हें वह सपोर्ट नहीं मिल पा रहा जिसके वो हकदार हैं। बात हो रही है Giant Killer के नाम से मशहूर प्रणॉय हसीना सुनील कुमार यानि एचएस प्रणॉय की जिन्होंने इस टूर्नामेंट में भी क्वार्टर-फाइनल तक का सफर तय किया, लेकिन उन्हें मिलने वाला समर्थन नाकाफी था।
दुनिया के टॉप खिलाड़ियों को किया धराशाई
प्रणॉय विश्व चैंपियनशिप 2021 के क्वार्टर-फाइनल में सिंगापुर के लो कीन यू से हारे जिन्होंने फाइनल में किदाम्बी श्रीकांत को हराया। इससे पहले इंडोनिशिया ओपन के राउंड ऑफ 32 में वो श्रीकांत के हाथों बेहद नजदीकी मैच में हारे। प्रणॉय को ऐसे ही जायंट किलर नहीं कहा जाता। प्रणॉय जब अपने अटैक की लय में आते हैं तो दुनिया के टॉप खिलाड़ी भी उनके आगे घुटने टेक देते हैं। नवंबर में इंडोनिशिया मास्टर्स में खेलते हुए प्रणॉय ने मौजूदा ओलंपिक चैंपियन डेनमार्क के विक्टर एक्सलसन को प्री-क्वार्टर-फाइनल में एक सेट हारने के बाद हराया। प्रणॉय ने 14-21, 21-19, 21-16 से ये मैच जीता। साल 2013 में जब प्रणॉय सिर्फ 20 साल के थे, उन्होंने इंडिया ओपन में पूर्व विश्व नंबर 1 इंडोनिशिया के तौफीक हिदायत को हराकर सभी को चौंका दिया था जो 2004 ओलंपिक खेल में गोल्ड मेडलिस्ट भी थे।
यही नहीं प्रणॉय 2 बार के ओलंपिक चैंपियन चीन के लिन डैन से कुल 5 बार भिड़े हैं जिनमें से 2 बार उन्होंने डैन को हराने में कामयाबी हासिल की है। यही नहीं, कभी अपने खेल से खिलाड़ियों में दहशत फैलाने वाले मलेशिया के पूर्व विश्व नंबर 1 ली चोंग वेई को भी 2 बार प्रणॉय अंतर्राष्ट्रीय मुकाबलों में मात दे चुके हैं। 2017 में इंडोनिशिया ओपन में पहले प्रणॉय ने ली चोंग वेई को हराया था, और अगले ही राउंड में तत्कालीन ओलंपिक चैंपियन (रियो) ली चोंग को मात देकर सभी को चौंका दिया था। ऐसे में जिस पहचान का हकदार ये खिलाड़ी रहा वो इन्हें मिल नहीं पाई। स्पॉन्सर भी सिर्फ अंतिम परिणाम को देखते हैं, शायद यही वजह है कि इतने सालों से कोई जाना-माना स्पॉन्सर इस खिलाड़ी को नहीं मिला।
विश्व चैंपियनशिप से नाम वापस लेने वाले थे
प्रणॉय विश्व चैंपियनशिप में शायद भाग ही नहीं लेने वाले थे। ट्विटर पर अपना अनुभव साझा करते हुए प्रणॉय ने लिखा है कि कैसे स्पॉन्सर और फंड की कमी के कारण उन्हें नाम वापस लेने के लिए मजबूर होना पड़ता। लेकिन ऐसे में गोस्पोर्टस वॉइसेस नामक संस्था द्वारा उन्हें मदद दी गई। प्रणॉय ने एक समाचार चैनल को दिए इंटर्व्यू में ये भी बताया कि किस तरह ओलंपिक मेडल जीतने पर तो स्पॉन्सर आपके दरवाजे तक आते हैं, लेकिन ये सरासर नाइंसाफी है। क्योंकि ओलंपिक तक पहुंचने के सफर में स्पॉन्सर की ज्यादा जरुरत होती है।
29 साल के प्रणॉय ने 2010 समर यूथ ओलंपिक में सिल्वर मेडल जीतकर अपनी कुशलता का परिचय दिया था। इसी साल जूनियर विश्व चैंपियनशिप में उन्होंने कांस्य पदक जीता। 2014 में इंडोनिशिया मास्टर्स, 2016 में स्विस ओपन और 2017 में यूएस ओपन जीतकर प्रणॉय ने अपनी रैंकिंग बेहतर की। चोट से भरे करियर के बीच प्रणॉय ने हमेशा अपने आलोचकों को जवाब देकर कोर्ट पर वापसी की और प्रदर्शन किया। आज दुनिया के 32वें नंबर के खिलाड़ी प्रणॉय एक दशक से भी ज्यादा समय से बैडमिंटन कोर्ट पर देश को पहचान दिलाने की कोशिश कर रहे हैं और खुद भी दुनिया के बाकि खिलाड़ियों के बीच उन्हें जाना जाता है। लेकिन शायद कुछ खिलाड़ियों की कामयाबी के शोरगुल में कई और कुशल खिलाड़ियों का टैलेंट ज्यादा आवाज नहीं कर पाता। प्रणॉय भी उन्हीं में शामिल है।