ऑल इंग्लैंड बैडमिंटन : फाइनल में विश्व नंबर 1 एक्सलसन से हारे लक्ष्य सेन

विक्टर एक्सलसन का ये लगातार पांचवा ऑल इंग्लैंड फाइनल था।
विक्टर एक्सलसन का ये लगातार पांचवा ऑल इंग्लैंड फाइनल था।

भारत के लक्ष्य सेन ऑल इंग्लैंड बैडमिंटन चैंपियनशिप के फाइनल में दुनिया के नंबर 1 खिलाड़ी विक्टर एक्सलसन से हार गए। 20 साल के लक्ष्य को ओलंपिक चैंपियन एक्सलसन ने 21-10, 21-15 से हराते हुए अपना दूसरा ऑल इंग्लैंड खिताब जीता। लक्ष्य को सिल्वर मेडल से संतोष करना पड़ा।

लक्ष्य सेन एक्सलसन के अनुभव और स्मैश के आगे कमजोर पड़ गए।
लक्ष्य सेन एक्सलसन के अनुभव और स्मैश के आगे कमजोर पड़ गए।

21 सालों के बाद कोई भारतीय पुरुष खिलाड़ी सिंगल्स के खिताबी मुकाबले में पहुंचा था। लक्ष्य ने एक्सलसन को कड़ी चुनौती दी लेकिन आखिरकार एक्सलसन की ताकत उनके स्मैश बने और अनुभव से सीखते हुए उन्होंने खिताब अपने नाम किया।

लक्ष्य सेन और एक्सलसन के बीच पहले सेट में काफी लम्बी रैलियां चलीं। हालांकि एक समय सेन 6-0 से पीछे थे, लेकिन स्कोर लक्ष्य का कोर्ट पर किया गया प्रदर्शन बयान नहीं करता। लक्ष्य ने बेहतरीन रिटर्न्स किए, सेव किए, नेट पर काफी अच्छा गेम खेला लेकिन कुछ मौकों पर गलत लाइन कॉल का खामियाजा भी उन्हें भुगतना पड़ा और पहला सेट 21-10 से एक्सलसन के नाम रहा। दूसरे सेट की शुरुआत में दोनों खिलाड़ियों का स्कर 4-4 से बराबर था, इसके बाद एक्सलसन ने अपनी लय पकड़ी। दोनों खिलाड़ियों के बीच लंबी-लंबी रैलियां चलीं। लक्ष्य ने एक्सलसन को काफी परेशान किया। लेकिन इस सेट में भी आखिरकार एक्सलसन ने 21-15 से जीत दर्ज की।

एक्सलन का ये लगातार पांचवा ऑल इंग्लैंड फाइनल था। साल 2019 में वो पहली बार फाइनल में उतरे जहां जापान के केंतो मोमोता ने उन्हें हराया था। 2020 में एक्सलसन ने फाइनल में जीत दर्ज कर अपना पहला ऑल इंग्लैंड खिताब जीता। पिछले साल भी एक्लसन फाइनल में पहुंचे लेकिन मलेशिया के ली जी जिया ने उन्हें हरा दिया। अब इस साल चौथी बार फाइनल में पहुंचे एक्सलसन को अपना दूसरा खिताब मिल गया। लक्ष्य ने 9 दिन पहले ही जर्मन ओपन के सेमीफाइनल में एक्सलसन को हराते हुए सभी को चौंका दिया था, लेकिन जिस तरह का प्रोफाइनल एक्सलसन रखते हैं और जिस तरह का प्रदर्शन पूरे टूर्नामेंट में लक्ष्य ने किया उसे देखते हुए लक्ष्य की तारीफ बनती है।

भारत के लिए 1980 में पहली बार पुरुष सिंगल्स का खिताब प्रकाश पादुकोण ने जीता। इसके बाद 2001 में पुलेला गोपीचंद ने ये खिताब अपने नाम किया था। साल 2015 में साइना नेहवाल महिला सिंगल्स के फाइनल में पहुंची थीं लेकिन हार गईं थीं। ऐसे में लक्ष्य इतने सालों बाद फाइनल में पहुंचने वाले पहले भारतीय बने और अपने खेल से देशवासियों के साथ ही दुनियाभर के बैडमिंटन खिलाड़ियों और प्रेमियों को प्रभावित किया है।