वर्ल्ड कप 2019 का फाइनल क्रिकेट इतिहास के सबसे बड़े मुकाबले में बदल गया। इस मैच के नतीजों के लिए नया पैमाना तय था, जिससे एक टीम को अपार उत्साह मिला, तो वहीं दूसरी टीम के लिए यह दिल तोड़ने वाला रहा। यह मैच थीम पार्क में रोलर-कोस्टर सवारी की तरह था, जिसमें हर वक्त दर्शकों के दिलों की धड़कने तेज थी। इस मैच को दौरान किसी भी समय विजेता का अनुमान लगाना कठिन था।
इस मैच का रोमांच आखिरी समय में और भी तेज हो गया, जब यह मुकाबला टाई हुआ और सुपर ओवर में चला गया। उसके बाद सुपर ओवर भी बराबरी पर समाप्त हुआ। जिसके बाद नए नियम के तहत मैच के दौरान ज्यादा बाउंड्री लगाने वाली इंग्लैंड को विजेता घोषित किया गया। यह एक ऐसा नियम था, जिसने पूरे क्रिकेट जगत को चौंका दिया।
आज हम बात करेंगे उन 3 नियमों की जिनकी अगले विश्व कप से पहले समीक्षा होनी चाहिए:
# 3 डीआरएस टेक्नोलॉजी को और ज्यादा कुशल बनाने की जरुरत:
डीआरएस टेक्नोलॉजी शुरू से ही विवादों में रही है। भारत सहित कुछ टीमों ने लंबे समय तक द्विपक्षीय सीरीज में इसे लागू नहीं किया था।
डीआरएस 2011 विश्व कप के बाद सभी आईसीसी इवेंट्स का अहम हिस्सा बन गया। हालाकिं अब भी इसका पूरी क्षमता के साथ इस्तेमाल नहीं होता है। प्रत्येक पारी में 1 रिव्यू की उपलब्धता इसकी सबसे बड़ी खामी है। कई बार इसका इस्तेमाल सलामी बल्लेबाज के साथ ही समाप्त हो जाता है, और फिर पूरे मैच में कठिन परिस्थितियों में भी उनके पास रिव्यू नहीं होता है।
बेहतर परिणाम के लिए शुरूआती 25 ओवर में एक और दूसरे 25 ओवर में एक रिव्यू किया जा सकता है, पहले रिव्यू का इस्तेमाल नहीं होने पर दूसरे हाफ में उसके पाद 2 रिव्यू हो जायेंगे।
अन्य मुद्दा हॉटस्पॉट टेक्नोलॉजी की भागीदारी का है। वेस्टइंडीज के खिलाफ रोहित का आउट होना काफी विवादास्पद था, क्योंकि स्निकोमीटर के सबूत प्रयाप्त नहीं थे। ऐसे में बेहतर समाधान खोजने के लिए हॉट स्पॉट टेक्नोलॉजी का इस्तेमाल किया जा सकता था।
यह भी पढ़ें : विश्व कप 2019: उम्मीदों के मुताबिक प्रदर्शन ना कर पाने वाले खिलाड़ियों की प्लेइंग XI
# 2 बाउंड्री एकदिवसीय मैचों का परिणाम तय नहीं कर सकती:
वर्ल्ड कप 2019 के फाइनल में न्यूजीलैंड मैच नहीं हारने के बावजूद हार गया। एक सीमित ओवर के मैच के बाद सुपर ओवर के इस्तेमाल के चलते बाउंड्री को पैमाना बनाकर इंग्लैंड को जीत दी गयी। यह टी20 के लिए सही हो सकता है लेकिन एकदिवसीय मैचों के लिए नहीं?
इस मैच में दोनों टीमों ने 241 रन बनाए। एक ने ज्यादा बाउंड्री लगाकर, तो दूसरी ने ज्यादा सिंगल चुराकर इस काम को अंजाम दिया। दोनों ने अलग-अलग तरीके से अपनी मंजिल हासिल की, तो यह नियम कैसे एक को सही और दूसरे को गलत कैसे बता सकता है। टी20 फॉर्मेट में इसका उपयोग सही हो सकता है, लेकिन एकदिवसीय मैचों में यह फिट नहीं बैठता। यह एक ऐसा फॉर्मेट है जहाँ सिंगल, डबल और बाउंड्री सभी की महत्वपूर्ण भूमिका होती है।
एकदिवसीय मैचों के बेहतर परिणाम के लिए सुपर ओवर की लिमिट बढ़ाने के बारे में सोचना चाहिए।
#1 राउंड रॉबिन फॉर्मेट में प्ले ऑफ, सेमीफाइनल से बेहतर विकल्प हो सकता है:
वर्ल्ड कप 2019 राउंड रॉबिन फॉर्मेट में खेला गया और लीग चरण की टॉप 4 टीमों के बीच सेमीफाइनल खेला गये। इस विश्व कप में लीग चरण में टॉप पर रहने वाली भारत और ऑस्ट्रेलिया को एक ख़राब मैच चलते बाहर हो गयी, वहीं तीसरे और चौथे नंबर की टीमों के बीच विश्व कप का फाइनल खेला गया। अगर फाइनल के लिए टीमों का फैसला सेमीफाइनल से ही होना है, तो लीग चरण में टॉप पर रहने का फायदा क्या हुआ?
इससे बेहतर विकल्प के लिए आईपीएल से सीखा जा सकता है, जहाँ टॉप 2 में रहने वाली टीम को हारने के बाद भी एक मौका और मिलता है। आईपीएल में काफी समय से प्लेऑफ का इस्तेमाल किया जाता है जिसमें टॉप 2 टीमों के बीच पहला मैच होता है| जहाँ जीतने वाली टीम फाइनल में जाती है और हारने वाली टीम को दूसरे मैच की विजेता के साथ खेलने का मौका मिलता है।
अगर वर्ल्ड कप के लीग मैच राउंड रॉबिन फॉर्मेट में खेले जाते है, तो सेमीफाइनल की जगह प्ले ऑफ बेहतर विकल्प हो सकता है।