एक लीडर की ज़रूरत विश्व के हर क्षेत्र में होती है, भले ही वो राजनीति का मंच हो या खेल का मैदान। जहां भी टीम वर्क की बात वहां एक लीडर की अहमियत काफ़ी बढ़ जाती है। एक लीडर न सिर्फ़ अपनी टीम की लीड करता है बल्कि सभी की कामयाबी और नाकामयाबी के लिए वो ज़िम्मेदार होता है। एक सही लीडर का चुनाव टीम की किस्मत बदल सकता है।
कई क्रिकेटर ऐसे हैं जो अपनी टीम के अहम खिलाड़ी रहे हैं और लगातार अपने प्रदर्शन से सभी का दिल जीतते आए हैं। उनके अनुभव में कोई कभी नहीं रही है, लेकिन वो कभी अपनी राष्ट्रीय टीम के कप्तान नहीं बनाए गए। पूरा अंतरराष्ट्रीय करियर बीतने के बाद भी उन्हें अपने टीम को लीड करने की ख़ुशकिस्मती हासिल नहीं हुई। हम यहां ऐसे 5 खिलाड़ियों की चर्चा कर रहे हैं जो कभी भी अपनी राष्ट्रीय टीम के कप्तान नहीं बन पाए।
#5 जेम्स एंडरसन
इंग्लैंड टीम के नामी गेंदबाज़ जेम्स एंडरसन न सिर्फ़ अपने देश के महानतम क्रिकेटर्स में से एक रहे हैं, बल्कि दुनिया के सबसे कामयाब तेज़ गेंदबाज़ भी हैं। टेस्ट में उन्होंने 575 विकेट हासिल किए हैं, यही उनकी क़ाबिलियत का सबूत है। जेम्स ने अपने अंतरराष्ट्रीय करियर की शुरुआत साल 2002 में की थी, 17 साल लंबे करियर में उन्होंने 361 इंटरनेशनल मैच में उन्होंने 862 विकेट लिए हैं। यही वजह है कि उन्हें क्रिकेट जगत में काफ़ी सम्मान से देखा जाता है।
फ़िटनेट उनके लंबे करियर की एक बड़ी वजह है, उनके अंदर हुनर की कोई कमी नहीं है। वो बेहद सटीक गेंदबाज़ी करते हैं, यही उनकी कामयाबी का मंत्र है। अपनी ज़िंदगी के आधे समय इंग्लिश टीम को देने के बावजूद वो कभी इस टीम के कप्तान नहीं बनाए गए। साल 2017-18 के एशेज़ के वक़्त वो बेन स्टोक्स की जगह उप-कप्तान बनाए गए, लेकिन कप्तान नहीं बन पाए।
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#4 हरभजन सिंह
हरभजन सिंह जिन्हें प्यार से ‘भज्जी’ भी बुलाया जाता है, उन्होंने साल 1998 से लेकर साल 2016 तक टीम इंडिया के लिए 367 मैच खेले हैं। वो भारत के सबसे कामयाब ऑफ़ स्पिनर हैं, उन्होंने टेस्ट में 417 और वनडे में 269 विकेट हासिल किए हैं। साल 2011 के वर्ल्ड कप के दौरान वो टीम इंडिया का हिस्सा थे। इसके अलावा कई मौकों पर उन्होंने भारत को जीत दिलाने में मदद की है।
वो टीम इंडिया के साथ लंबे वक़्त तक जुड़े रहे और लगातार अच्छा प्रदर्शन करते रहे। इसके बावजूद वो कभी भारतीय टीम के कप्तान नहीं बन पाए। हांलाकि ऐसा नहीं है कि भज्जी ने कभी किसी टीम के लिए कप्तानी न की हो। उन्होंने आईपीएल की मुंबई इंडियन टीम को लीड किया और साल 2011 में उन्होंने मुंबई को चैंपियंस लीग टी-20 का ख़िताब दिलाया।
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#3 ग्लेन मैक्ग्रा
अगर विश्व के महानतम क्रिकेटर पर कभी कोई किताब लिखी जाएगी तो उस में एक पूरा चैप्टर ग्लेन मैक्ग्रा के नाम होगा। उन्होंने 15 साल के करियर में ऑस्ट्रेलिया के लिए 376 अंतरराष्ट्रीय मैच खेले हैं। मैक्ग्रा ने टेस्ट में 563 और वनडे में 380 विकेट हासिल किए हैं। उन्हें प्यार से पीजन (कबूतर) कहा जाता है। वो विपक्षी टीम के बल्लेबाज़ों के लिए किसी बुरे ख़्वाब से कम नहीं हैं। उनकी गेंद पर शॉट लगाना किसी भी क्रिकेटर के लिए आसान नहीं होता था।
मैक्ग्रा उस टीम का हिस्सा रहे हैं जिसने लगातार 3 बार आईसीसी क्रिकेट वर्ल्ड कप जीता है। उनकी मौजूदगी में ऑस्ट्रेलियाई टीम ने लंबे वक़्त तक टेस्ट क्रिकेट पर राज किया है। मैक्ग्रा ने हर वो कामयाबी हासिल की है जिसके वो हक़दार रहे हैं। फिर भी वो कंगारू टीम की कप्तानी से हमेशा महरूम रहे हैं। भले ही वो अपनी राष्ट्रीय टीम के कप्तान नहीं बन पाए, लेकिन एक महान गेंदबाज़ के तौर पर हमेशा याद किए जाएंगे।
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#2 युवराज सिंह
युवराज सिंह कभी टीम इंडिया के कप्तान नहीं बन पाए उसकी एक ही वजह है और वो हैं महेंद्र सिंह धोनी। युवी ने साल 2000 में आईसीसी नॉक आउट टूर्नामेंट (आईसीसी चैंपियंस ट्रॉफ़ी) से अपने अंतरराष्ट्रीय करियर की शुरुआत की थी। उस वक़्त टीम इंडिया के कप्तान सौरव गांगुली थे। इसके अलावा साल 2007 की आईसीसी वर्ल्ड टी-20 में भी युवराज सिंह ने एक चैंपियन की भूमिका निभाई।
साल 2007 के आईसीसी क्रिकेट वर्ल्ड कप में टीम इंडिया ने बेहद ख़राब प्रदर्शन किया था, जिसकी वजह से राहुल द्रविड़ को कप्तानी से हाथ धोना पड़ा था। इसके बाद बीसीसीआई ने महेंद्र सिंह धोनी पर भरोसा जताया और युवी को उप-कप्तानी सौंप दी। युवराज सिंह ने 402 अंतरराष्ट्रीय मैच खेले हैं, लेकिन उन्हें टीम इंडिया की कप्तानी का मौका कभी नहीं मिला। हांलाकि युवी ने आईपीएल की किंग्स XI पंजाब और पुणे वॉरियर्स इंडिया की कप्तानी की थी।
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#1 मुथैया मुरलीधरन
आंकड़ों के हिसाब से मुथैया मुरलीधरन विश्व के सबसे महान गेंदबाज़ हैं। उन्होंने श्रीलंकाई टीम के लिए 495 अंतरराष्ट्रीय मैच खेले हैं, लेकिन उन्हें कभी भी इस टीम का कप्तान नहीं बनाया गया। हांलाकि उन्होंने 1347 अंतरराष्ट्रीय विकेट हासिल किए हैं, फिर भी श्रीलंकाई क्रिकेट बोर्ड ने उन्हें कप्तानी के लायक नहीं समझा। मुरली ने अपनी गेंदबाज़ी से विश्व क्रिकेट में क्रांति ला दी थी, उनका ख़ौफ़ विपक्षी टीम के बल्लेबाज़ों की आंखों में साफ़ देखा जा सकता था।
मुरली का हाल भी मैक्ग्रा के ही जैसा हुआ, ऐसा लगता है कि जब कप्तानी की बात आती है तो गेंदबाज़ों के मुक़ाबले बल्लेबाज़ों को तरजीह दी जाती है। मुरली ने न सिर्फ़ श्रीलंका को 1996 का वर्ल्ड कप दिलाने में मदद की, बल्कि अपनी टीम को क्रिकेट का सुपरपावर भी बनाया। हांलाकि कई मौकों पर उन्हें श्रीलंका का उप-कप्तान बनाया गया था, लेकिन मुरली कभी इससे आगे नहीं बढ़ पाए।
लेखक- कुशाग्रा अग्रवाल
अनुवादक- शारिक़ुल होदा
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