अगर भारत में कोई भी एक धर्म है जो कश्मीर से लेकर कन्याकुमारी तक लोगों को एकजुट कर सकता है, तो वो है क्रिकेट। कई सालों से भारतीय घावों के ऊपर क्रिकेट मरहम का काम करता आ रहा है, फिर चाहे वो प्राकृतिक आपदा हो या फिर आतंकी घटना। देश की कूटनीतिक नीतियों में भी इस खेल का बहुत बड़ा हाथ रहा है। मशहूर कमेंटेटर हर्षा भोगले ने एक बार लिखा था ' जब सचिन अच्छा खेलते हैं, तब भारत चैन से सोता है'। इससे पता चलता है कि भारतीयों के जीवन में क्रिकेट क्या मायने रखता है।
अक्सर भारतीय क्रिकेट टीम भारत की आर्थिक, राजनीतिक और सामाजिक स्थिति का चेहरा रही है। 20वीं शताब्दी की शुरुआत में भारतीयों को अंग्रेजों द्वारा हर सेक्टर में पहचान और मान-सम्मान मिलने लगा। हालांकि अग्रेंजों के अंदर इस बात को लेकर मतभेद था कि वे भारतीय लोगों के साथ कैसा व्यवहार करें। लेकिन अगर हम रनजीतसिंहजी के करियर को देखें तो इसकी साफ झलक देखने को मिलती है। लगातार अच्छा प्रदर्शन करने के बावजूद एमसीसी में कई ऐसे लोग थे जो उनको इंग्लैंड की टीम में शामिल किए जाने के खिलाफ थे। आखिरकार उन्हें इंग्लैंड की टीम में शामिल कर लिया गया और उन्होंने ऑस्ट्रेलियाई टीम के खिलाफ शानदार प्रदर्शन किया। लेकिन उनके रंग और अंग्रेजों की तरह परंपरागत खेलने की स्टाइल ना होने के कारण उन पर हमेशा उंगली उठती रही।
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सन् 1930 को हम भारतीय इतिहास का सबसे अशांत समय मान सकते हैं। महात्मा गांधी की अगुवाई में भारत के लोग अंग्रेजों के खिलाफ जगह-जगह आंदोलन कर रहे थे। इसका नतीजा ये हुआ कि एक राष्ट्र के रुप में भारत और मजबूत होकर उभरा। इसका असर भारतीय क्रिकेट टीम के कप्तान कर्नल सीके नायडू पर भी देखने को मिला, जिन्होंने इंग्लिश कैप्टन डगलस जार्डिन को खुली चुनौती दे डाली। उस समय क्रिकेट ने भारत की सामाजिक और आर्थिक भिन्नताओं को भी प्रकट किया।
क्रिकेट को उस समय शाही खेल माना जाता था और वे उस समय इसको अंग्रेजों की वाहवाही के लिए खेलते थे। वहीं दूसरी तरफ भारत की आम जनता को इसकी वजह से अपमानित होना पड़ता था। भारतीय क्रिकेट टीम देश के अलग-अलग हिस्सों के लोगों का एक संग्रह थी। सरदार वल्लभ भाई पटेल के पहले भारतीय राज्यों में एकता नहीं थी और इसकी झलक भारतीय टीम में भी देखने को मिलती थी। राजनैतिक ताकत होने के कारण अक्सर टीम मीटिंग में राजाओं-महाराजाओं की बात ही मानी जाती थी, भले ही वे खुद अच्छे खिलाड़ी ना हों।
कुछ घटनाएं जैसे विजयनगरम के महाराजकुमार का युवा खिलाड़ी लाला अमरनाथ से झगड़ा दिखाता है कि भारतीय टीम में उस वक्त एकता नहीं थी। आजादी के बाद जवाहरलाल नेहरु के मजबूत नेतृत्व में भारतीय समाज मजबूत हुआ और इसका असर भारतीय क्रिकेट टीम पर भी पड़ा । भारतीय क्रिकेट टीम में धीरे-धीरे सुधार होने लगा। भारत ने 1952 में इंग्लैंड के खिलाफ पहला टेस्ट मैच जीता। 1968 में न्यूजीलैंड के खिलाफ भारत ने पहली बार विदेशी सरजमीं पर सीरीज जीता।
![सुनील गावस्कर](https://statico.sportskeeda.com/editor/2020/12/9287f-16076166724342-800.jpg?w=190 190w, https://statico.sportskeeda.com/editor/2020/12/9287f-16076166724342-800.jpg?w=720 720w, https://statico.sportskeeda.com/editor/2020/12/9287f-16076166724342-800.jpg?w=640 640w, https://statico.sportskeeda.com/editor/2020/12/9287f-16076166724342-800.jpg?w=1045 1045w, https://statico.sportskeeda.com/editor/2020/12/9287f-16076166724342-800.jpg?w=1200 1200w, https://statico.sportskeeda.com/editor/2020/12/9287f-16076166724342-800.jpg?w=1460 1460w, https://statico.sportskeeda.com/editor/2020/12/9287f-16076166724342-800.jpg?w=1600 1600w, https://statico.sportskeeda.com/editor/2020/12/9287f-16076166724342-800.jpg 1920w)
धीरे-धीरे लेकिन नियमित रुप से भारतीय टीम के होम ग्राउंड में मजबूत होने की धारणा बनने लगी। लेकिन धीरे-धीरे भारतीय टीम को वर्ल्ड क्रिकेट में पहचान मिलने लगी। 1970 के दशक में एक राजनैतिक उथलपुथल मची, जहां बेरोजगार युवाओं के बढ़ते हुए गुस्से का सामना करने के लिए लोगों को अधिक संरक्षणवादी बनना पड़ा। इसकी झलक भारत के पहले लिटिल मास्टर सुनील गावस्कर की बैटिंग स्टाइल में भी देखने को मिली।
आम भारतीयों की तरह सुनील गावस्कर मुश्किल हालात में भी हर हाल में खुद को बचाए रखने की कोशिश करते थे। यही उनकी सफलता का मुख्य कारण भी थी, जो उन्हें उस समय के खतरनाक कैरेबियन तेज गेंदबाजों का सामना करने की हिम्मत देता था। 1980 के दशक में भारतीय तड़क-भड़क को पसंद करने लगे वो किसी खास चेहरे की तरफ आकर्षित होने लगे। ठीक इसी समय कपिल देव और रवि शास्त्री जैसे दिग्गजों का उदय हुआ जो उस बात के प्रतीक थे।
ये वो समय था जब भारत ने राजनीति में भी और क्रिकेट में भी अपनी पहचान बनाना शुरु कर दिया था। एक तरफ भारतीय जहां गुट निरपेक्ष आंदोलन के कर्ताधर्ता थे तो दूसरी तरफ 1983 का वर्ल्ड कप और बेंसन और हेज्स कप जीतकर उन्होंने दिखा दिया था कि सीमित ओवरों के खेल में भी वो किसी से कम नहीं हैं। लेकिन भारतीय क्रिकेट में उसके सोसायटी के प्रभाव का सबसे बड़ा उदाहरण है सचिन तेंदुलकर का उदय।
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सचिन तेंदुलकर के उदय और आर्थिक उदारीकरण ने समाज को नई दिशा दी। लोगों के अंदर एक नई इच्छाशक्ति आ गई और उनमें एक नया आत्मविश्वास आ गया जो कि सचिन तेंदुलकर के बिना किसी डर के लगाए गए शॉट और अटैकिंग मानसिकता के रुप में परिलक्षित होता था। एक मध्यम वर्गीय परिवार से निकलकर अर्श तक पहुंचने की उनकी कहानी उदारीकरण के बाद कई लोगों के सफल जीवन का प्रतीक बनी। दुनिया भर के अच्छे-अच्छे तेज गेंदबाजों की पिटाई करने के कारण वो बोल्ड भारत के चेहरे बन गए। 2000-02 में मैच फिक्सिंग की घटनाओं के कारण भारतीय क्रिकेट को नुकसान उठाना पड़ा । इसकी वजह से पिछले कुछ समय से अच्छी रफ्तार से चल रही भारतीय अर्थव्यवस्था को इसका खामियाजा भुगतना पड़ा।
![सौरव गांगुली](https://statico.sportskeeda.com/editor/2020/12/d1757-16076167780067-800.jpg?w=190 190w, https://statico.sportskeeda.com/editor/2020/12/d1757-16076167780067-800.jpg?w=720 720w, https://statico.sportskeeda.com/editor/2020/12/d1757-16076167780067-800.jpg?w=640 640w, https://statico.sportskeeda.com/editor/2020/12/d1757-16076167780067-800.jpg?w=1045 1045w, https://statico.sportskeeda.com/editor/2020/12/d1757-16076167780067-800.jpg?w=1200 1200w, https://statico.sportskeeda.com/editor/2020/12/d1757-16076167780067-800.jpg?w=1460 1460w, https://statico.sportskeeda.com/editor/2020/12/d1757-16076167780067-800.jpg?w=1600 1600w, https://statico.sportskeeda.com/editor/2020/12/d1757-16076167780067-800.jpg 1920w)
2000 के बाद भारतीय लोग विदेशों में भी हर सेक्टर में अपनी पहचान बनाने लगे। इसी समय सौरव गांगुली की कप्तानी में भारतीय टीम भी पहले से ज्यादा अच्छा प्रदर्शन करने लगी। इस समय को इसलिए भी ज्यादा पहचाना जाता है , क्योंकि तब छोटे शहरों से कई प्रतिभावान खिलाड़ी निकलकर भारतीय टीम में आए और अच्छा प्रदर्शन किया।
मोहम्मद कैफ, सुरेश रैना और बाद में महेंद्र सिंह धोनी ने इस मिथक को तोड़ दिया कि बड़े खिलाड़ी केवल बड़े शहरों से ही निकलकर आते हैं। भारत अपने आपको आर्थिक और राजनैतिक रुप से तो मजबूत बना ही रहा था, ठीक उसी समय भारतीय क्रिकेट टीम भी अपने आपको वर्ल्ड क्रिकेट में स्थापित कर रही थी। 2003 के वर्ल्ड कप में फाइनल तक का सफर, स्टीव वॉ की अजेय टीम को पटखनी, चैंपियस ट्रॉफी में जीत और 2007 का टी-20 वर्ल्ड कप अपने नाम कर भारतीय क्रिकेट टीम ने वर्ल्ड क्रिकेट को अपनी ताकत का एहसास करा दिया।
आईपीएल के आगाज के बाद वर्ल्ड क्रिकेट में आया बड़ा बदलाव
![विराट कोहली और एम एस धोनी](https://statico.sportskeeda.com/editor/2020/12/f00f4-16076168374616-800.jpg?w=190 190w, https://statico.sportskeeda.com/editor/2020/12/f00f4-16076168374616-800.jpg?w=720 720w, https://statico.sportskeeda.com/editor/2020/12/f00f4-16076168374616-800.jpg?w=640 640w, https://statico.sportskeeda.com/editor/2020/12/f00f4-16076168374616-800.jpg?w=1045 1045w, https://statico.sportskeeda.com/editor/2020/12/f00f4-16076168374616-800.jpg?w=1200 1200w, https://statico.sportskeeda.com/editor/2020/12/f00f4-16076168374616-800.jpg?w=1460 1460w, https://statico.sportskeeda.com/editor/2020/12/f00f4-16076168374616-800.jpg?w=1600 1600w, https://statico.sportskeeda.com/editor/2020/12/f00f4-16076168374616-800.jpg 1920w)
2008 में आईपीएल के आने के साथ ही भारतीय क्रिकेट में ऐसे युवा खिलाड़ियों का उदय हुआ जो खतरा मोल लेने में घबराते नहीं थे और बिना किसी डर के आक्रामक क्रिकेट खेलते थे। भारतीय क्रिकेट टीम में भी इसकी झलक देखने को मिली। इस पीढ़ी के खिलाड़ी स्लेजिंग का मुंहतोड़ जवाब देने लगे और अपने खेल से विपक्षी टीम को करारा जवाब दिया।
भारतीय टीम के टेस्ट कप्तान विराट कोहली इसका सबसे बड़ा उदाहरण हैं, जो लक्ष्य का पीछा करने से घबराते नहीं हैं। कोहली बिना किसी डर के अटैकिंग क्रिकेट खेलते हैं और हालात कितने ही मुश्किल क्यों ना हों वे पीछे नहीं हटते हैं। विराट कोहली जब एडिलेड टेस्ट में पहली बार कप्तानी कर रहे थे तब उन्होंने ऑस्ट्रेलिया जैसी टीम के खिलाफ 356 रनों का विशाल लक्ष्य पीछा करने का साहस दिखाया वो भी खेल के 5वें दिन। ये इस समय की भारतीय मानसिकता को दर्शाता है।
फिल्में समाज का आइना होती हैं। वे देश के मिजाज, समाजिक परिस्थितियों और जनमानस के हालात को दिखाती हैं। लेकिन ये कहना गलत नहीं होगा कि क्रिकेट भी भारतीय समाज को प्रस्तुत करता है। क्रिकेटर्स, उनका प्रदर्शन, मैदान पर उनका व्यवहार और जिस तरह से वे खेलते हैं उसमें अलग-अलग समय की झलक मिलती है। इसी वजह से आशीष नंदी ने एक बार सही ही लिखा था ' क्रिकेट भारत का खेल है, संयोगवश इसे अंग्रेजों ने जन्म दिया'।