भारत ने तीसरे टेस्ट के लिए टीम का ऐलान कर दिया है। इसमें दो दिग्गज खिलाड़ियों को बाहर का रास्ता दिखाया गया तो वहीं भारतीय अंडर-19 टीम के कप्तान 18 साल के पृथ्वी शॉ और हनुमा विहारी के रूप में दो युवा चेहरों को टीम में शामिल किया गया है। पृथ्वी अगर अंतिम एकादश में जगह बना लेते हैं तो ऋषभ के बाद टैस्ट में पदार्पण करने वाले 292वें खिलाड़ी बन जाएंगे। पृथ्वी का तेजी से इस मुकाम तक पहुंचना कोई बड़ी बात नहीं क्योंकि उन्होंने अपने प्रदर्शन से खुद की काबिलियत को साबित किया है। हाल ही में ईसीबी-एलेवन के खिलाफ भारत ए की 125 रन की जीत में पृथ्वी ने 70 रन बनाए थे। यही नहीं फरवरी में अपनी कप्तानी में उन्होंने देश को अंडर-19 विश्व कप का खिताब भी दिलाया। शानदार बल्लेबाजी और परिपक्व कप्तानी ने उन्हें आईपीएल में जगह दिलाई। अब बारी भारतीय टीम में जगह बनाने की है। हालांकि पिछले ट्रैक रिकॉर्ड के मुताबिक यह कहा जा सकता है कि इस युवा को मौका मिला तो धमाल मचा देगा। आइए नजर डालते हैं उन मुख्य बिंदुओं पर जिसने उन्हें यहां तक पहुंचाया। बल्लेबाजी तकनीक नवंबर 2013 में जब पृथ्वी ने स्कूली क्रिकेट के एक मैच में 500 रनों से ऊपर की उम्दा पारी खेली थी तब क्रिकेट जगत के कई दिग्गजों ने उनकी तारीफ की थी। बाद में जब उन्होंने जूनियर टीम के साथ खेलना शुरू किया और अपनी निरंतरता से खाते में रन बटोरने लगे तो उन्हेंं देश का अगला मास्टर ब्लास्टर कहा जाने लगा। इसकी वजह थी उनकी बल्लेबाजी की तकनीक। उनके खेलने के अंदाज ने सचिन तेंदुलकर को भी उनकी तारीफ करने के लिए मजबूर कर दिया था। प्रथम श्रेणी के 14 मैचों में 56.72 की औसत से 1418 रन बटोरने वाले पृथ्वी के नाम इसमें सात शतक हैं। वहीं इतने रन बनाने के दौरान उन्होंंने पांच अर्धशतक भी लगाया है। लीस्ट ए मैचों में भी शॉ के नाम दो शतक और तीन अर्धशतक दर्ज हैं। वहीं टी-20 में वे अब तक दो अर्धशतक लगा चुके हैं। इससे पता चलता है कि उनकी बल्लेबाजी तकनीक कितनी मजबूत हैं और वे बड़ी पारी खेलने में भी सक्षम हैं। बल्लेबाजी में निरंतरता किसी भी बेहतरीन बल्लेबाज के लिए सबसे जरूरी उसका निरंतर रन बनाना है। पृथ्वी इस कला में माहिर हैं। इक्का-दुक्का मैचों को छोड़ दें तो उन्होंंने अपने सभी मैचों में रन बनाए हैं। उन्होंने चार प्रथम श्रेणी मैचों और छह लिस्ट ए मैचों में कुल 759 रन बटोरे हैं। इसमें चार शतक और दो अर्धशतक शामिल हैं। वहीं गर्मियों के दौरान इंग्लैंड गई भारतीय ए टीम के लिए दो चार दिनी मैचों में शॉ ने 188 और 62 रन बनाए। दक्षिण अफ्रीका के खिलाफ अनधिकारिक टेस्ट में भी शतक जमाया। उनकी इसी निरंतरता ने सुनिल गावस्कर तक को अचंभित किया है। मुरली की असफलता बनी शॉ की सफलता भारतीय टीम अभी विश्व के सबसे मजबूत टीमों में शुमार है। टीम के पास एक से बढ़कर एक उम्दा खिलाड़ी मौजूद हैं। ऐसे में अगली पीढ़ी को तैयार करना और उसे इस लायक बनाना ताकि वह टीम का भविष्य बन सके काफी माथापच्ची का काम है। हालांकि मुरली विजय का लगातार खराब प्रदर्शन पृथ्वी शॉ के लिए सुनहरा मौका बनकर आया है। इस दिग्गज पर तरजीह देकर ही शॉ को टीम में जगह दी गई है। इस लिहाज से अगर शॉ को अंतिम एकदश में जगह मिलती है तो उनके लिए इस इम्तहान में अच्छे नंबरों से पास होना बेहद जरूरी होगा। साथ ही इंग्लैंड की धरती पर एक बेहतरीन पारी उन्हें 2019 विश्व कप के लिए एक विकल्प के तौर पर पेश कर सकता है।