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आखिरकार राहुल द्रविड़ ने टीम इंडिया के पूर्णकालिक कोच बनने के सवाल पर दिया जवाब

राहुल द्रविड़
राहुल द्रविड़

राहुल द्रविड़ ने भारतीय टीम के पूर्णकालिक हेड कोच बनने के सवाल पर अपना जवाब आखिरकार दे दिया है। द्रविड़ ने कहा कि उन्‍होंने श्रीलंका में युवा टीम के मार्गदर्शन करने का आनंद उठाया, लेकिन वो इसके बारे में आगे कुछ भी नहीं सोच रहे हैं।

भले ही द्रविड़ ने सफलतापूर्वक भारतीय अंडर-19 और भारत ए टीम की कोचिंग पहले की है, लेकिन यह दौरा राहुल द्रविड़ का सीनियर अंतरराष्‍ट्रीय टीम के साथ हेड कोच के रूप में पहला था।

क्रिकेट जगत में राहुल द्रविड़ की छवि बहुत शानदार है। कई लोग कह चुके हैं कि वह युवाओं को बहुत अच्‍छे से प्रेरित करते हैं और उन्‍हें पूर्णकालिक कोच की भूमिका निभाना चाहिए।

हालांकि, राहुल द्रविड़ इसके लिए पूरी तरह प्रतिबद्ध नहीं है और उन्‍होंने इस भूमिका की कई चुनौतियां गिनाई। द्रविड़ ने कहा, 'मैंने इस अनुभव का आनंद उठाया। मैंने आगे के बारे में कुछ भी नहीं सोचा है। ईमानदारी से कहूं तो मैं जो कर रहा हूं, उसमें खुश हूं। मेरे लिए, मैंने इस दौरे के अलावा और कुछ नहीं सोचा है। इस दौरे पर आकर मैंने अनुभव का आनंद उठाया।'

उन्‍होंने कहा, 'मुझे इन लड़कों के साथ काम करके मजा आया। यह शानदार रहा। और नहीं, मैंने आगे कोचिंग के बारे में कुछ नहीं सोचा है। आप जानते हैं, पूर्णकालिक कोचिंग करते समय कई चुनौतियां आती हैं, तो मुझे वाकई कुछ नहीं पता।'

राहुल द्रविड़ को 2012 में संन्‍यास लेने के बाद से क्षमतावान हेड कोच माना जाता था। हालांकि, पंडितों और पूर्व क्रिकेटरों ने कई बार बताया कि 48 साल के द्रविड़ इसलिए जिम्‍मेदारी नहीं लेना चाहते क्‍योंकि उन्‍हें घर से ज्‍यादा दूर रहना पड़ेगा और काफी यात्रा भी करनी पड़ेगी।

राहुल द्रविड़ का भारतीय टीम के साथ पहला कोचिंग अनुभव कैसा रहा

राहुल द्रविड़ का भारतीय टीम के साथ पहला कोचिंग अनुभव मिला-जुला रहा। राहुल द्रविड़ की कोचिंग में भारतीय टीम ने श्रीलंक दौरे पर वनडे सीरीज 2-1 से अपने नाम की।

इसके बाद टी20 इंटरनेशनल सीरीज में भारतीय टीम को श्रीलंका के हाथों 1-2 की शिकस्‍त झेलनी पड़ी। भारत ने पहला टी20 इंटरनेशनल मैच 38 रन से जीता था। मगर क्रुणाल पांड्या के कोविड-19 पॉजिटिव निकलने और उनके करीबी संपर्क में आने के कारण आठ लोगों के एकांतवास में होने के कारण अगले दो मैचों में भारतीय टीम को शिकस्‍त झेलनी पड़ी।

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Edited by Vivek Goel
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