विराट कोहली से आज हर टीम खौफ खाती है। बल्लेबाजी के लिए उनके मैदान में आते ही विपक्षी टीम के खिलाड़ी सतर्क हो जाते हैं। उन्हें आउट करने के लिए पहले से रणनीतियां तैयार की जाती हैं। हालांकि, 2012 तक उनका यह खौफ विपक्षी टीमों में नजर नहीं आता था। विराट कोहली ने स्वीकारा कि 2012 तक उनके प्रति विपक्षी टीम की निगाहों में भय और सम्मान की कमी थी लेकिन उन्होंने खुद में बदलाव किए, जिससे वह एक प्रभावशाली खिलाड़ी बनने में सफल हुए।
विराट कोहली ने एमी पुरस्कार विजेता पत्रकार ग्राहम बेनसिंगर को दिए इंटरव्यू में कहा कि एक वक्त ऐसा भी था कि जब मैं बल्लेबाजी करने के लिए मैदान में उतरता था तो विपक्षी टीम में मेरे प्रति कोई डर नहीं होता था। मैं सिर्फ एक साधारण खिलाड़ी नहीं बनना चाहता था। मैं चाहता था कि विपक्षी टीम मुझे खतरनाक खिलाड़ी के रूप में ले। मैं जब बल्लेबाजी करने के लिए आऊं तो विपक्षी खिलाड़ी मुझे देखकर यह सोचें कि इसे जल्द से जल्द आउट करना पड़ेगा, नहीं तो हम मैच हार जाएंगे।
भारतीय कप्तान ने फिटनेस को लेकर भी बात की और कहा कि इंग्लैंड में हुए विश्व कप के दौरान मेरा फिटनेस लेवल काफी अच्छा रहा। वहां हर एक मैच में मेरा एनर्जी लेवल 120 प्रतिशत रहा। लगातार मैच खेलते हुए मैंने काफी बेहतरीन ढंग से रिकवरी की और कभी थका हुआ महसूस नहीं किया।
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उन्होंने आगे कहा कि 2012 में ऑस्ट्रेलियाई दौरे से वापसी के बाद मैंने अपनी फिटनेस पर ज्यादा काम किया, जिससे मेरे खेल में सुधार हुआ। मैंने देखा कि भारत और ऑस्ट्रेलिया टीम के बीच काफी बड़ा अंतर है। मैंने सोचा कि अगर हमें दुनिया की नंबर-1 टीम बनना है तो अपने खेलने, ट्रेनिंग करने और खाने के तरीकों में बदलाव लाने होंगे। बिना फिटनेस के हम दुनिया की सर्वश्रेष्ठ टीमों से नहीं भिड़ सकते हैं। अगर आप सर्वश्रेष्ठ नहीं होना चाहते हैं तो प्रतिस्पर्धा करने का कोई मतलब नहीं है।
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