क्यों भारत के खिलाफ पाकिस्तान विश्वकप मुकाबलों में नहीं जीत पाता?

भारत-पाकिस्तान वर्ल्ड कप 2019
भारत-पाकिस्तान वर्ल्ड कप 2019

वर्ल्ड कप 2019 का चैम्पियन इंग्लैंड रहा और फाइनल में न्यूजीलैंड को हराकर उन्होंने पहली बार इस कप को उठाया। भारत लीग मैचों में पहले स्थान पर रहा और सेमीफाइनल में कीवी टीम के हाथों पराजित हुआ। पाकिस्तान की टीम को पांचवें स्थान के साथ संतोष करना पड़ा। इस बार भी उन्हें भारत के खिलाफ मैच में पराजय का सामना करना पड़ा।

क्रिकेट विश्वकप में प्रायोजकों से लेकर दर्शक और आईसीसी तक को भारत और पाकिस्तान के बीच होने वाले मैच का इन्तजार रहता है। राजस्व और कमाई के नजरिये से इन दोनों देशों के बीच मुकाबला ख़ास माना जाता है। भारत और पाकिस्तान में भी कई महीनों पहले से तैयारी शुरू हो जाती है। इन सबके बीच एक और पहलू यह भी है कि तमाम कोशिशों के बावजूद पाकिस्तान की टीम विश्वकप में अब तक भारतीय टीम को नहीं हरा पाई है। दोनों देशों के बीच 1992 से मैदान पर कशमकश जारी है लेकिन हर बार भारत ने ही बाजी मारी है।

पहली बार भारत और पाकिस्तान के बीच 1992 के विश्वकप में भिड़ंत हुई थी। उस समय पाकिस्तान ने खिताबी जीत तो दर्ज की थी लेकिन भारत के खिलाफ उसे पराजय का सामना करना पड़ा था। 50 ओवर के प्रारूप में भारत और पाकिस्तान के बीच अब तक 7 मैच खेले गए हैं और हर बार भारत ने जीत दर्ज करने में सफलता हासिल की है। भारत के खिलाफ विश्वकप मैच में पाकिस्तान की हार के कई कारण हैं उनमें से कुछ का जिक्र हम यहां करना चाहेंगे।

विश्वकप में भारतीय टीम पाकिस्तान के खिलाफ मैच को अन्य मैचों की तरह लेती है। इससे उन पर दबाव की गुंजाइश खत्म हो जाती है। भारत की टीम स्वाभाविक खेल के साथ मैदान पर उतरने की योजना पर कार्य करती है। दूसरी तरफ पाकिस्तान की टीम मुकाबले को अन्य मैचों की तुलना में कुछ बड़ा मानते हुए मैदान पर उतरती है। इसका दबाव उन पर साफ़ तौर पर नजर आता है। खिलाड़ियों के जेहन में जीत के लिए उत्साह की बजाय तनाव रहता है और इसका सीधा असर मैचों के परिणाम पर पड़ता है। दबाव की वजह से पूर्व निर्धारित रणनीति का मैदान पर बेहतर तरीके से निष्पादन नहीं हो पाता है और उन्हें हर बार पराजय का सामना करना पड़ता है।

पाकिस्तान की गेंदबाजी हमेशा सुदृढ़ रही है। तुलनात्मक दृष्टि से बल्लेबाजी उनकी कमजोर कड़ी रही है। भारत के सामने विश्वकप के सात मुकाबलों में 6 बार वे लक्ष्य का पीछा करते हुए पराजित हुए हैं। सिर्फ 2003 के विश्वकप में उन्होंने पहले बल्लेबाजी करते हुए 7 विकेट के नुकसान पर 273 रन बनाए थे जिसका पीछा करते हुए भारत ने 6 विकेट से मैच जीता था। छह मुकाबलों में लक्ष्य का पीछा करते हुए हारने से अंदाजा लगाया जा सकता है कि बल्लेबाजी उनका मजबूत पक्ष नहीं रहा है। यह कहा भी जाता है कि भारत की बल्लेबाजी और पाकिस्तान की गेंदबाजी के बीच टक्कर होती है।

पाकिस्तानी टीम मैनेजमेंट को भी हार के लिए जिम्मेदार ठहराया जाना चाहिए। दर्शकों की तरह सपोर्ट स्टाफ और कोच भी भारत के खिलाफ मैच को हाई वोल्टेज बनाकर खिलाड़ियों पर अतिरिक्त दबाव बढ़ाते हैं। मौजूदा विश्वकप में भारत के खिलाफ मैच से पहले पाकिस्तानी कोच मिकी आर्थर का बयान इसका सबसे बड़ा उदहारण है। उन्होंने कहा था कि भारत के खिलाफ मैच जीतकर वे हीरो बन सकते हैं। उन्होंने यह भी कहा कि इससे बड़ा अवसर कहीं नहीं मिलेगा इसलिए मैच जीतने पर आप सब हीरो बनेंगे और हारने पर जीरो साबित हो जाएंगे। यह प्रतिक्रिया खिलाड़ियों में जोश का काम करने की बजाय तनाव बढ़ाने वाली थी। हर व्यक्ति के खेल पर इसका असर पड़ा और वे सातवीं बार भारत के खिलाफ विश्वकप में मुकाबला गंवा बैठे।

शुरू से ही भारत के खिलाफ मैचों में पराजित होते आ रहे पाकिस्तान के खिलाड़ियों के जेहन में पुराने मैचों की तस्वीर भी रहती है। पिछले सभी मैचों के परिणाम को ध्यान में रखते हुए मैदान में उतरने पर उनके खेल पर इसका प्रतिकूल असर पड़ता है और यह चीज भारत के पक्ष में जाती है। पुराने विश्वकप मैचों के परिणाम उन पर मनोवैज्ञानिक दबाव बढ़ाते हैं।

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Edited by Naveen Sharma
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