भारत में फुटबॉल हमेशा क्रिकेट की तुलना में पिछड़ा ही गया हैं, किन्तु आज हम असीम धन्यवाद कहेंगे जो भारतीय क्रिकेट टीम की सफलता से प्रेरित होकर अंतरराष्ट्रीय स्तर पर आ गया है। लेकिन भारत में फुटबॉल जंगल में फैली आग की तरह धीरे-धीरे एक औसत खेल प्रशंसक के अंतःकरण में आ रही है, चूकिं नई भारतीय सुपर लीग के साथ और एशियाई टूर्नामेंट में बेंगलुरू एफसी जैसे आई लीग क्लब की सफलता इसका जीवंत उदहारण हैं।
भारत में फुटबॉल का स्तर हमेशा से ऐसा नहीं था, भारतीय फुटबॉल का 50 वें और 60 के दशक में स्वर्ण काल था जब राष्ट्रीय टीम को एशिया में सर्वश्रेष्ठ टीमों में से एक माना जाता था। वर्ष 1950 में भारत ने ब्राजील में खेली जा रही फुटबॉल विश्व कप के लिए क्वालिफाई तो किया, लेकिन उसने खेलने के लिए मना कर दिया।इसका एक कारण ये भी था कि खेलने के लिए फुटबॉल बूट पहनने पड़ते, जबकि भारतीय खिलाड़ियों को नंगे पांव खेलने की आदत थी। लेकिन पिछले कुछ साल में क्रिकेट के दीवाने देश में फुटबॉल को बढ़ावा देने की उम्मीदें काफी बढ़ी हैं।
अगर बात की जाये 70 के दशक की, तो भारतीय फुटबॉल के स्तर में गिरावट का दौर शुरु होने से पहले विश्व फुटबॉल ने सैयद अब्दुल रहीम जैसे शानदार भारतीय खिलाड़ी का शानदार दौर भी देखा। ठीक इसके बाद ऐसा दौर आ गया कि भारतीय फुटबॉल सिर्फ़ बंगाल, केरल और गोवा के क्लबों तक सीमित रह गया, कुछ लोग ही प्रशंसक के रूप में भावात्मक तरीके से जुड़े रहे। इसके उपरांत एक बार फिर 1990 और 2000 के दशक में स्टीफन कॉंन्सटाइन और बाब हॉटन जैसे कई अच्छे फुटबॉल खिलाड़ियों की वजह से भारत ने एशिया महाद्वीप में अलग मान्यता और सम्मान हासिल किया।
चलिए हम चर्चा करते हैं भारतीय फुटबॉल के 10 सर्वश्रेष्ठ खिलाडियों की, जिन्होंने फुटबॉल की दुनिया में अपनी अलग ही जगह बनाई।
क्लाईमैक्स लॉरेंस
क्लाइमैक्स लॉरेंस कई वर्षों तक भारतीय फुटबॉल टीम के लिए खेले और अब तक के सबसे सफलतम भारतीय फुटबॉलर्स में से एक साबित हुए। इनका जन्म गोवा में हुआ था और ये बेहतरीन मिडफील्डर भारतीय फुटबॉल की लंबे समय तक धुरी बना रहा। अपने कैरियर में क्लाईमैक्स सालगांवकर, ईस्ट बंगाल, डेम्पो जैसे क्लबों के लिए भी खेले।
क्लाइमेक्स मैदान में एक डेंजर मिडफील्डर होने के साथ ही स्वभाव से बहुत ही सीधे औऱ सरल इंसान थे। जब तक वो टीम का हिस्सा रहे तब तक ऐसा कभी नहीं हुआ कि उनके बारे में उनके कोच से लेकर किसी भी खिलाड़ी ने कभी कोई सवाल उठाए हों । क्लाईमैक्स लॉरेंस ने अपने अंतर्राष्ट्रीय कैरियर की शुरुआत सन् 2002 में स्टीफन कॉन्सटैन्टाइन के साथ की(जब वो भारतीय कोच के रूप में पहली बार देखे गए)। उनके कैरियर में सबसे बेहतरीन पल 2008 एएफसी चैलेंज कप के फाइनल में आया, जब उन्होंने अफगानिस्तान के खिलाफ 91 वें मिनट में शानदार गोल कर अपनी टीम को जीत दिलाई।
क्लाईमैक्स के नाम 74 इंटरनेशनल कैप्स हैं, जो उनके अलावा केवल भूटिया, विजयन और छेत्री जैसे महान खिलाड़ी ही हासिल कर सके हैं। यही सब बातें हैं जो 2012 में फुटबॉल को अलविदा कहने वाले इस खिलाड़ी को भारत का महान फुटबॉलर बनाती हैं।