भारतीय फुटबॉल इतिहास में अगर कोई महान गोलकीपर हुआ हैं तो पीटर थंगराज का नाम लेना गलत नहीं होगा। लंबे से कद के इस खिलाड़ी का अकेले दम पर कड़े संरक्षण का लोहा पूरे देश में माना जाता था। वह हैदराबाद में पैदा हुए, थंगराज ने अपने कैरियर की शुरुआत मद्रास रेजिमेंटल सेंटर (MCR) से सेंटर फॉर्वड प्लेयर के रूप में की । 1955 और 1958 में उनकी टीम को डूरंड कप जिताने में थंगराज का खासा योगदान रहा।उन्होंने 1955 में नेशनल टीमके लिए डेब्यू किया, जब वो चार देशों के टूर्नामेंट में भारतीय टीम के गोलकीपर के रूप में भाग ले रहे थे, जब थंगराज के रूप में दशकों बाद भारत को एक फर्स्ट चॉइस गोलकीपर मिला था। अपने बेहतरीन इंटरनेशनल कैरियर के दौरान थंगराज 1956 और 1960 में ओलंपिक में भारतीय टीम का हिस्सा रहे और इसके साथ ही 1958 और 1962 में टोक्यो और जकार्ता एशियन गेम्स में भारत की कमान संभाली(जहां भारत ने गोल्ड जीते) और 1966 में बैंकॉक में भी टीम को लीड किया । सन्यास के बाद भी कोलकाता जाइन्ट्स (1963-65) और मोहम्डन स्पोर्टिंग के लिए (1965-71) तक खेलते रहे। थंगराज लेव यासीन के बड़े फैंन माने जाते थे,उन्हें1958 में एशिया के सर्वश्रेष्ठ गोलकीपर के लिए नामित किया गया और 1967 में अर्जुन अवॉर्ड मिला । पीटर दो बार एशियन ऑल स्टार्स टीम का हिस्सा रहे और 1971 में उन्हें सर्वश्रैष्ठ गोलकीपर के सम्मान से नवाजा गया और 1971 में उन्होंने अपने फुटबॉल के शानदार सफ़र को अलविदा कह दिया ।