गोस्था पाल का नाम भारतीय फुटबॉल जगत में बहुत इज्जत से लिया जाता है। पाल अपने पूरे कैरियर के दौरान नंगे पांव खेले, उन्हें अपने दौर में टीम का बेहतरीन डिफेंडर माना जाता था। पाल तत्कालीन भारत में जिसे अब (हम बांग्लादेश कहते हैं) 1896 में वहां पैदा हुए। पाल के फुटबॉल सफर का आगाज तब हुआ, जब उनहोंने मशहूर मोहन बगान जिसकी (कमान कालीचरण मित्रा के हाथों में थी) ज्वाइन किया तब उनकी उमर 16 साल थी । वो टीम के लिए राइट-बैक खेलते थे और अपने बेखौफ खेल के लिए जाते थे , उन्हें लोग 'चिनेर पचीर' के नाम से भी बुलाते थे जिसका हिंदी में मतलब चीन की दीवार है । पाल मुगल बागान के लिए 1912 से 1936 तक खेले जिसमे वो 1921 से 1936 तक टीम के कप्तान रहे । 1924 में पाल भारतीय टीम के कप्तान बने, तगड़ी कद काठी वाले इस प्लेयर को विदेशी धरती पर पहला भारतीय फुटबॉल कप्तान बनने का गौरव हासिल हुआ । इस महान फुटबॉलर ने 1935 में अपने रिटायरमेंट की घोषणा की पर वो हमेशा अपने फैंस के दिलों मे बसे रहे। पाल पहले भारतीय फुटबॉलर थे जिन्हें 1962 में पद्मश्री जैसे खिताब से नवाजा गया। 9 अप्रैल 1976 को इस महान खिलाड़ी ने दुनिया को अलविदा कह दिया, पाल की याद में कोलकाता के ईडन गार्डन में उनकी एक मूर्ती बनाई गई और शहर की एक सड़क का नाम भी उनके नाम पर रखा गया है ।