दुनिया के सबसे काबिल टीम मैनेजर की बात होती है तो उसमें पुर्तगाल के 'जोस मोरिन्हो' का नाम हमेशा लिया जाता है। इसका कारण भी साफ है कि कम समय में ही उन्होंने पूरे यूरोप में अपनी मैनेजमेंट स्किल्स का लोहा मनवाया है। उन्होंने 'पोर्टो एफसी' से लेकर 'चेल्सी' तक कई बड़े यूरोपियों क्लबों में रहकर तमाम ट्रॉफी जीतीं। मोरिन्हो ने अपना करियर 'सीपी पुर्तगाल' में 'सर बॉबी रॉब्सन' के ट्रांस्लेटर के तौर पर शुरू किया। इसके बाद वो पोर्टो एफसी में गए और फिर आखिरकार मैनेजर के तौर पर पहली बार वो 'बेन्फ़सिया' से जुड़े। लेकिन जोस को शुरुआती प्रसिद्धि 2002 में मिली जब वो पोर्टो एफसी के मैनेजर के तौर पर टीम को काफी आगे ले गए। इसके बाद वो 2004 में पहली बार चेल्सी में शामिल हुए। उनके शामिल होने से इस क्लब ने 50 साल में पहली बार प्रीमियर लीग खिताब की जीत का स्वाद चखा। इस कामयाबी के बाद वो इंटर मिलान में चले गए और अपने प्रबंधन का जलवा दिखाया। 2010 में मोरिन्हो को रियाल मैड्रिड ने बुलाया, जो उनके आने के बाद कई खिताब जीता। रियाल से अलग होने के बाद जोस चेल्सी में लौटे और काफी समय तक क्लब को सेवाएं देते रहे। हाल ही में वो दुनिया के सबसे बड़े क्लबों में से एक 'मैनचेस्टर यूनाइटेड' के मैनेजर बने हैं। हालांकि जोस मोरिन्हो के इस सफलता भरे करियर के दौरान कुछ ऐसे पल भी आए जहां उन्होंने कई बड़े मौकों को खो दिया। यहां हम बात कर रहे हैं उन्हीं मौकों की जिनका फायदा जोस मोरिन्हो अपने करियर में उठाने से चूक गए :
#5 इंग्लैंड
जोस मोरिन्हो ने भले ही दुनिया कई प्रतिष्ठित क्लबों में अपना परचम लहराया, लेकिन वो आजतक किसी राष्ट्रीय टीम के कोच नहीं बन पाए। हालांकि 2010 वर्ल्ड कप से पहले उनके पास ऐसा मौका आया था। 2007 में खराब हालात में चेल्सी को छोड़ने वाले मोरिन्हो के पास कोई जिम्मेदारी नहीं थी। लेकिन चेल्सी के फ्रैंक लैमपार्ड, जॉन टेरी और जो कोल जैसे दिग्गज खिलाड़ियों से उनका काफी लगाव था। ऐसे में जोस इंग्लैंड टीम के कोचकी जिम्मेदारी लेने को लेकर असमंजस में थे। वहीं इंग्लैंड में फुटबॉल संचालन करने वाली संस्थान एफए ने उनसे बात करने में काफी देरी कर दी। जब तक एफए उनके पास किसी प्रस्ताव के साथ आता तब तक जोस इंटर मिलान के शनदार ऑफर के बाद वहां जा चुके थे। हालांकि इसके पीछे सिर्फ एफए का ही हाथ नहीं था। जोस ने बताया था कि उनकी पत्नि इंग्लैंड के कोच बनने के उनके खयाल से खुश नहीं थीं। वो चाहती थीं कि जोस क्लब में ही खिलाड़ियों के करीब रहें। तो इस कारण भी जोस ने इंग्लैंड की कमान नहीं संभाली। #4 टॉटेनहैम हॉटस्पर
साल 2002 में टॉटेनहैम हॉटस्पर ने जोस मोरिन्हो को साइन करने की कोशिश की थी। इस दौरान जोस ने चेल्सी के मालिक रोमन इब्रामोविच के साथ अपने मनमुटाव के चलते क्लब को छोड़ दिया था। इस समय ‘स्पर्स’ अपने इस प्रतिद्वंद्वी मैनेजर को साइन करना चाहती थी। लेकिन, चेल्सी से करार के अनुसार जोस अगले 2 साल तक इंग्लैंड के किसी क्लब में शामिल होने के बाध्य नहीं थे। स्पर्स के मालिक ने जोस की फीस को लेकर भी काफी बेहतर ऑफर रखे, लेकिन ये करार नहीं हो पाया। 2012 में ‘स्पर्स’ ने फिर मोरिन्हो को साइन करने की पहल की। इस समय क्लब अपने तत्कालीन मैनेजर हैरी रेडनैप को निकालना चाहता था। इसी दौरान रियाल मैड्रिड में रहते हुए खुद पर हो रहीं आपत्तिजनक टिप्पणियों के जोस परेशान थे और बाहर निकलना चाहते थे। लेकिन इस बार वक्त के हालात के कारण ये हो नहीं पाया। जहां टॉटेनहैम हॉटस्पर तुरंत जोस को साइन करना चाहती थी, वहीं जोस स्पैनिश लीग को बीच में छोड़कर नहीं आ सके। #3 मैनचेस्टर यूनाइटेड
जोस मोरिन्हो इस साल मैनचेस्टर यूनाइटेड के मैनेजर बनने में कामयाब रहे हैं। हालांकि ऐसा करने कि इच्छा उनकी काफी समय से रही है। खासकर की तब जब मैन्यू के करता-धरता सर एलेक्स फर्ग्यूसन ने क्लब को अलविदा कहा था। एक स्पैनिश रिपोर्टर के मुताबिक जोस मोरिन्हो सर एलेक्स के उत्तराधिकारी बनने की दौड़ में खुद को शामिल करने के काफी इच्छुक थे। वो इसलिए, क्योंकि उनकी सर एलेक्स के साथ अच्छी दोस्ती थी और साथ ही वो मैन्यू के एजेंट के भी करीबी थे। लेकिन ओल्ड ट्रेफोर्ड की किस्मत में कुछ और ही था। क्लब को लगता था जोस का मैनेजमेंट कलह पैदा करने वाला है इसलिए उन्होंने मोरिन्हो के बदले ’डेविड मोयस’ को चुन लिया। उसी स्पैनिश रिपोर्टर ने अपनी किताब में उल्लेख करते हुए कहा है कि मोयस के मैनेजर बनने पर मोरिन्हो ने कहा था कि उन्होंने (मोयस ने) अभी तक कोई खिताब नहीं जीता है। #2 लिवरपूल
इंग्लैंड आने के बाद चेल्सी से जुड़ने से पहले जोस मोरिन्हो को ‘लिवरपूल’ का मैनेजर बनने में काफी दिलचस्पी थी। लिवरपूल के पूर्व मिडफील्डर डेनी मर्फी ने बताया कि 2004 में जब क्लब के लिए नया मैनेजर चुनने की बात उठी तो मोरिन्हो और राफा बेनिटेज़ दौड़ में सबसे आगे थे। लेकिन राफा द्वारा वेलेंसिया को जितवाए गए यूएफा चैंपियंस लीग और ला लीगा खिताबों के चलते उन्हें मैनेजर बनाया गया। मर्फी का कहना था कि मैं हमेशा से जानता था कि जोस या राफा में से ही कोई लिवरपूल का प्रबंधन करेगा। मैं ये भी कह सकता हूं कि मोरिन्हो तहे दिल से ये जिम्मेदारी निभाना चाहते थे। ऐसे में राफा के मैनेजर बनने से उन्हें काफी दुख हुआ होगा। इसके बाद ऐसा देखा गया कि मोरिन्हो की बेनिटेज़ से कभी नहीं बनी न ही लिवरपूल से। लिवरपूल के लिए उनका प्रतिरोधक रवैया शायद 2004 की नाकामी का ही कारण है। #1 बार्सिलोना माना जाता है कि जोस मोरिन्हो ने अपने करियर की शुरुआत बार्सिलोना में सर बॉबी रॉब्सन और बाद में लुइस वेन गाल के ट्रांस्लेटर के रूप में की थी। हालांकि बार्सा के दिग्गज खिलाड़ी ज़ेवी इस बात से इत्तेफाक नहीं रखते। ज़ेवी का कहना था कि जोस मोरिन्हो कभी भी बार्सा में ट्रांस्लेटर नहीं थे। वो हमेशा से एक असिस्टेंट कोच के तौर पर दिखे। वो खिलाड़ियों की मनोवैज्ञानिक स्तिथी को काफी अच्छे से समझते थे और वेन गाल के साथ उन्हें शेयर भी करते थे। उन्हें सभी खिलाड़ी इज्जत देते थे और कभी-कभी वो हमें बार्सिलोना बी टीम में कोच भी करते थे। हालांकि 90 के दशक में मोरिन्हो बार्सा के फेवरेट लोगों में से एक थे। लेकिन 2008 में जब बार्सिलोना के लिए मैनेजर रखने की बात चली तो मोरिन्हो को नहीं पेप गार्डिओला को ये जिम्मेदारी दी गई। जोस मोरिन्हो ने बार्सिलोना के एडवाइज़र से इस सिलसिले में काफी बात की लेकिन वो नहीं माने। ऐसा इसलिए हुआ क्योंकि मोरिन्हो ने बार्सिलोना के खेल की शैली अपनाने और अपना झगड़ालू रवैया छोड़ने से मना कर दिया था। इस इंकार के चलते शायद उन्होंने अपने जीवन का सबसे बड़ा मौका खोया था।