फ़ुटबाल के खेल में एक टीम में 11 खिलाड़ी होते हैं जिनका लक्ष्य होता है कि गेंद को सामने वाले को गोल पोस्ट में पहुंचाकर गोल किया जाए। सिर्फ़ एक गेंद से खेला जाने वाला ये खेल दुनिया के सबसे लोकप्रिय खेलों में से एक है, जो सभी उपमहाद्वीप में खेला जाता है। फ़ुटबाल क़रीब 250 मिलियन से ज़्यादा लोगों द्वारा खेला जाता है जिसमें दुनिया के 200 से भी ज़्यादा देश शामिल हैं।
इस खेल के नियम को 1963 में नए स्थापित हुए फ़ुटबॉल एसोसिएशन की हुई लंदन में बैठक में बनाया गया था। 1930 से शुरू हुआ फ़ीफ़ा वर्ल्ड कप (FIFA World Cup) हर चार सालों में एक बार आयोजित होता है, ये एक ऐसा प्रमुख इवेंट है जो दुनियाभर में सबसे ज़्यादा टेलीविज़न रेटिंग दिलाता है।
पुरुष ओलंपिक फ़ुटबॉल का इतिहास दरअसल फ़ीफ़ा वर्ल्ड कप से भी पुराना है, ये पेरिस 1900 से लेकर अब तक सिर्फ़ लॉस एंजेलिस 1932 गेम्स को छोड़कर सभी ओलंपिक में खेला जाता रहा है। लॉस एंजेलिस 1984 गेम्स से इसमें बदलाव किया गया और तबसे इसमें सिर्फ़ एम्योचोर खिलाड़ी ही हिस्सा लेते हैं। अब इसे नई प्रतिभाओं को एक व्यापक मंच देने के तौर पर देखा जाता है।
युवा प्रतिभाओं पर ज़ोर देने के लिए भी एक नियम बनाया गया है, जिसकी शुरुआत 1992 बार्सिलोना गेम्स से हुई थी जिसमें हर टीम के खिलाड़ियों की अधिकतम आयु 23 वर्ष थी। हालांकि अटलांटा 1996 के बाद से टीमों को तीन से ज़्यादा आयु वर्ग के खिलाड़ियों को शामिल करने की अनुमति दी गई है।
अटलांटा 1996 गेम्स में पहली बार महिला फ़ुटबॉल को भी शामिल किया गया था, जिसमें कोई भी आयु सीमा नहीं है। ओलंपिक में महिला फ़ुटबॉल के शामिल होने से इस खेल को और भी ज़्यादा लोकप्रियता मिलनी शुरू हो गई जिससे महिला फ़ुटबॉल का भी व्यापक तौर पर विकास हुआ।
फ़ुटबॉल का अपने प्रतिद्वंदी टीम से ज़्यादा गोल करना – जो बहेद साधारण है और ज़्यादातर लोग जानते भी हैं। दोनों ही टीमें 45-45 मिनट के दो हाफ़ के दौरान प्रतिस्पर्धा करती हैं, जिसमें अतिरिक्त समय और पेनल्टी शूट आउट के ज़रिए ओलंपिक प्रतिस्पर्धाओं के नॉक आउट मुक़ाबलों का ड्रॉ के बाद फ़ैसला निकाला जाता है।
टोक्यो ओलंपिक में फ़ुटबॉल
मेज़बान देश जापान को छोड़कर टोक्यो 2020 में 15 और देश पुरुष इवेंट में हिस्सा ले हे हैं, इसके लिए क्वालीफ़ाई करना होता है जो कॉन्टिनेन्टल कॉन्फ़ेडरेशन द्वारा आयोजित टूर्नामेंट के आधार पर होता है। इसके अलावा जापान को छोड़कर महिला इवेंट में भी 11 और देश क्वालीफ़ाई करेंगे जिनको भी ठीक उसी तरह आना है जैसे पुरुष इवेंट में होगा।
पुरुष और महिला दोनों ही इवेंट राउंड रॉबीन ग्रुप स्टेज के प्रारुप में खेले जाएंगे और फिर नॉक आउट स्टेज होगा। टीमों को 4 अलग अलग ग्रुप में रखा जाएगा, जहां एक टीम अपने ग्रुप की दूसरी टीम से एक बार भिड़ेगी। जीतने वाली टीम को तीन अंक मिलेंगे, ड्रॉ होने पर दोनों ही टीमों को एक एक अंक और हारने वाली टीम को कोई अंक हासिल नहीं होगा। हर ग्रुप की टॉप-2 टीम (साथ ही महिला टूर्नामेंट में शीर्ष दो तीसरे स्थान पर रही) को नॉक आउट स्टेज में जगह मिलेगी, जहां क्वार्टर फ़ाइनल्स, सेमीफ़ाइनल्स और फिर गोल्ड मेडल और कांस्य पदक का मैच होगा।
सिडनी 2000 गेम्स से फ़ुटबॉल ओलंपिक के दूसरे सभी खेलों से अलग और ख़ास हो गया है, क्योंकि फ़ुटबॉल की शुरुआत ओलंपिक के उद्घाटण समारोह से पहले ही हो जाती है। ऐसा फ़ुटबॉल के बड़े कार्यक्रम को देखते हुए किया जाता है, ताकि खिलाड़ियों को एक मैच के बाद अगले मैच से पहले ख़ुद को तैयार करने का पर्याप्त समय मिल जाए।
इस खेल में खिलाड़ियों को तीव्रता, ताक़त और सहनशक्ति के साथ साथ बेहतरीन बॉल स्किल और टीम में एक रणनीति के साथ खेलने की क्षमता ज़रूरी होती है। रेफ़री की नज़र नियमों के हिसाब से ही खेल को कराए जाने पर रहती है, अगर कोई खिलाड़ी नियम तोड़ता है तो उसे पीला कार्ड, फिर दूसरा पीला कार्ड और फिर लाल कार्ड के साथ तुरंत ही खेल से बाहर भी होना पड़ सकता है। गंभीर फ़ाउल करने पर खिलाड़ियों को सीधे लाल कार्ड भी मिल जाता है, फिर दूसरे टीम के पास एक अतिरिक्त खिलाड़ियों के साथ खेलने का फ़ायदा होता है। इसी तरह जब कोई टीम नियम का उल्लंघन करती है, तो विरोधी टीम को फ्री किक मिल जाती है। अगर किसी खिलाड़ी को पेनल्टी एरिया के अंदर फ़ाउल करते पाया जाता है, तो उसकी टीम को पेनल्टी किक दी जाती है।
ओलंपिक में किस देश का रहा है दबदबा ?
एम्योचोर युग में पुरुषों की प्रतियोगिता पर अलग अलग देशों का कब्ज़ा देखने को मिला, हाल ही में दक्षिण अमेरिका के देशों का दबदबा देखा गया है। ब्राज़ील, जिसने दूसरे किसी भी देश से ज़्यादा बार फ़ीफ़ा वर्ल्ड कप पर कब्ज़ा जमाया है, उनके नाम अब तक सिर्फ़ एक ओलंपिक फ़ुटबॉल गोल्ड है जो उन्हें पिछली ही बार अपने घर में रियो 2016 गेम्स में मिला था। लंदन 2012 गेम्स के फ़ाइनल में मेक्सिको ने ब्राज़ील को गोल्ड मेडल के मैच में मात दी थी, जबकि बीजिंग 2008 और एथेंस 2004 में अर्जेंटीना को ख़िताबी जीत हासिल हुई थी।
स्पेन आख़िरी यूरोपिय देश था जिसने पुरुष ओलंपिक फ़ुटबॉल में गोल्ड मेडल जीता हो, ये अवसर उन्हें अपने ही घर में बार्सिलोना 1992 गेम्स में मिला था। किसी भी एशियाई देश ने अब तक गोल्ड मेडल नहीं जीता है, आख़िरी बार मेक्सिको 1968 गेम्स में जापान को कांस्य पदक हासिल हुआ था जबकि लंदन 2012 में वे चौथे स्थान पर रहे थे।
महिलाओं के बीच हुई अब तक की 6 प्रतिस्पर्धाओं में से 4 बार गोल्ड मेडल यूएसए के नाम रहा है, रियो 2016 गेम्स में अमेरिकी महिला टीम को क्वार्टर फ़ाइनल में स्वीडेन से हार मिली थी और स्वीडेन ने ही इस इवेंट का स्वर्ण पदक भी जीता था। जबकि लंदन 2012 गेम्स में गोल्ड मेडल जर्मनी के नाम रहा था। उन्होंने ख़िताबी मुक़ाबले में जापान की महिला टीम को 2-1 से मात दी थी। टोक्यो 2020 में भी इन देशों पर सभी की नज़र रहेगी, साथ ही साथ महिला फ़ुटबॉल के विकास के बाद मुक़ाबला बेहद कड़ा और दिलचस्प होने की उम्मीद है।
कम से कम कितने खिलाड़ियों का रहना अनिवार्य है ?
सात, अगर किसी टीम के पास मैदान पर खिलाड़ियों की संख्या 7 से कम हो जाए तो फिर मैच आगे नहीं हो सकता। हालांकि ये तब मुमकिन है जब एक टीम के कई खिलाड़ियों लाल कार्ड दिए जाएं या फिर वह चोटिल हो जाएं। हालांकि अब तक ओलंपिक इतिहास में इस तरह का कोई मुक़ाबला देखने को नहीं मिला है।