बड़ी-बड़ी प्रोडक्शन कंपनियों और कॉरपोरेट ऑफिस में लोग नाइट शिफ्ट में भी काम करते हैं। यहां काम करने वाले एंप्लाई कभी दिन में काम करते हैं तो कभी रात की शिफ्ट में ड्यूटी करते हैं, ऐसे में उनकी नींद पूरी नहीं हो पाती है। सोने और जागने का समय निर्धारित नहीं हो पाता है। ऐसे में एक रिसर्च की माने तो नाइट शिफ्ट में काम करने वाले लोगों में गंभीर बीमारी का खतरा अधिक रहता है। शोधकर्ताओं का कहना है कि जो लोग ज्यादातर नाइट शिफ्ट में काम करते हैं उनमें हृदय रोगों के विकसित होने का खतरा अधिक रहता है।
अंतर्राष्ट्रीय शोधकर्ताओं की एक टीम के नेतृत्व में किए गए अध्ययन से पता चला है जो लोग नाइट शिफ्ट काम करते हैं उनमें अक्सर असामान्य रूप से दिल के धड़कन के तेज होने की समस्या विकसित होने का खतरा रहता है। इस स्थिति को मेडिकल की भाषा में 'एट्रियल फाइब्रिलेशन' के नाम से जाना जाता है। यह स्थिति हृदय से संबंधित गंभीर जटिलताओं के विकसित होने का कारण बन सकती है।
नाइट शिफ्ट के कर्मचारी में बढ़ जाता है हृदय रोगों का खतरा (Night shift workers are at increased risk of heart diseases)
वैज्ञानिकों ने 283,657 लोगों के डेटा का अध्ययन किया और इससे पता चलता कि पूरे जीवनकाल में जो लोग जितना अधिक समय तक रात वाली शिफ्ट में काम करते हैं, उन लोगों में एट्रियल फाइब्रिलेशन विकसित होने का खतरा उतनी ही अधिक होता है। इसके साथ ही अन्य प्रकार के हृदय रोग का खतरा बढ़ जाता है।
एट्रियल फाइब्रिलेशन की बढ़ सकती है समस्या (May increase the problem of atrial fibrillation)
अध्ययन में वैज्ञानिकों ने देखा कि, जो लोग स्थाई रूप से नाइट शिफ्ट में काम करते हैं, उनमें केवल दिन के दौरान काम करने वाले लोगों की तुलना में एट्रियल फाइब्रिलेशन होने का खतरा 12 फीसदी तक अधिक हो सकता है। दस या उससे अधिक वर्षों के बाद यह जोखिम बढ़कर 18 फीसदी से अधिक हो जाता है। दस साल या उससे अधिक समय तक महीने में औसतम तीन से आठ दिनों तक नाइट शिफ्ट में काम करने वाले लोगों में अन्य लोगों के मुकाबले ये जोखिम बढ़कर 22 फीसदी तक हो सकता है।
महिलाओं को सावधान रहने की है जरूरत (women need to be careful)
प्रमुख शोधकर्ता प्रो. क्यू का कहना है कि, स्टडी के दौरान दो और दिलचस्प चीजें सामने आई हैं। जिसमें पहला यह कि, दस साल से अधिक समय तक पुरुषों की तुलना में नाइट शिफ्ट में काम करने वाली महिलाओं में एट्रियल फाइब्रिलेशन की संभावना अधिक हो सकती है। दूसरा यह कि सप्ताह में 75 मिनट या अधिक समय तक मॉडरेट इंटेंसिटी का वर्कआउट करने वाले लोगों में इस रोग का जोखिम कम हो सकता है।
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