भारतीय हॉकी टीम 1948, 1952 और 1956 में मैच जीतकर 1964 के टोक्यो ,जापान ओलंपिक खेलों की गोल्ड की दावेदारी पेश कर रही थी। यह भारतीय हॉकी के गोल्डन दौर का दूसरा चरण था। दूसरे विश्व युध्द के 12 साल बाद लंदन ओलंपिक गेम्स की मेजबानी कर रहा था। भारत के महान खिलाड़ी ध्यानचंद अपने पूरी फॉर्म में थे और हर मैच में उनका प्रदर्शन निखरता जा रहा था। आजादी के बाद ये पहला मौका था जब भारत ग्रेट ब्रिटेन के खिलाफ मैदान में उतरा। इसका रोमांच तब और बढ़ गया जब दोनों ही टीमों ने फाइनल में अपनी अपनी जगह बनाई। भारत ये मैच 4-0 के अंतर से जीत गया। उसके बाद भारत ने मुड़कर पीछे नहीं देखा और किशन लाल ,केडी सिंह बाबू और बालबीर सिंह जैसे खिलाड़ियों की अगुवाई में लगातार 1948, 1952 और 1956 मेलबर्न में गोल्ड अपने नाम किया। हालांकि 1960 में भारतीय टीम ये करिश्मा करने से चूक गई पर इसकी भरपाई 1964 में भारत ने हॉकी का सातवां गोल्ड जीतकर कर दी थी।