हॉकी खिलाड़ी अपने प्रतिद्वंद्वी के गोल पोस्ट की ओर एक गेंद को आगे बढ़ाने के लिए हुक के आकार की लकड़ी की छड़ी (स्टिक) का इस्तेमाल करते हैं। एक मुक़ाबला 15-15 मिनटों के चार क्वार्टर (कुल 60 मिनट) में खेला जाता है, जिसके बाद जिस टीम के नाम सबसे ज़्यादा गोल होते हैं, विजेता वही होती है।
प्रत्येक टीम अटैकर्स, मिडफ़िल्डर्स और डिफ़ेंडर्स के समायोजन से बनती है जहां एक गोलकीपर भी होता है, इस खेल में कुछ प्रतिस्थापन (सब्सटिट्यूशन) की भी अनुमति होती है। गोलकीपर के अलावा किसी और खिलाड़ी का हाथ या पैर गेंद को नहीं छू सकता, उन्हें हॉकी स्टिक से गेंद को नियंत्रण करना होता है। गेंद का आकार एक बेसबॉल की गेंद के बराबर होता है, लेकिन उससे थोड़ा हल्का। खिलाड़ियों को गेंद को मारने के लिए अपनी हॉकी स्टिक के सपाट भाग का प्रयोग करना होता है।
एक हॉकी पिच की लंबाई 91.4 मीटर और चौड़ाई 55 मीटर होती है, दोनों ही तरफ़ गोल पोस्ट होते हैं। प्रत्येक गोल पोस्ट के चारों और अंग्रेज़ी अक्षर ‘D’ आकार का घेरा बना होता है। गोल तभी वैध माना जाता है जब प्रतिद्वंदी के डी आकार के घेरे के अंदर जाकर किया गया हो।
इस खेल में अब ऑफ़साइड का कोई मायने नहीं होता, 1996 में इसे हॉकी के नियमों से हटा दिया गया था। ऑफ़साइड को हटाने की वजह थी कि इससे खेल और भी तेज़ हो जाएगा और ऐसा हुआ भी है, अब ज़्यादा गोल देखने को मिलते हैं।
हॉकी मैच दो ऑन फ़िल्ड अंपायर और एक अतिरिक्त वीडियो अंपायर की देख रेख में होता है। पिच के दोनों ही भागों में एक एक तरफ़ ऑन फ़िल्ड अंपायर मौजूद रहते हैं, रेडियो ट्रांसमीटर के ज़रिए दोनों ही अंपायर एक दूसरे से जुड़े होते हैं ताकि फ़ैसला लेने में वह एक दूसरे की राय भी ले सकें। कुछ फ़ाउल्स के दौरान, ख़ास तौर से डी आकार के घेरे के अंदर जिसे शूटिंग सर्किल भी कहते हैं, वहां टीमों को पेनल्टी कॉर्नर दे दिया जाता है। जहां एक खिलाड़ी गेंद को बैकलाइन से अंदर की ओर लेकर आता है, और उसके साथी शूटिंग सर्किल के अंदर गोल करने के लिए तैयार रहते हैं। और फिर वह शॉट लगाने के लिए गेंद ले सकते हैं जिसकी रक्षा करने के लिए सिर्फ़ पांच डिफ़ेडर रह सकते हैं। इससे भी ज़्यादा गंभीर फ़ाउल पर पेनल्टी स्ट्रोक दिया जाता है, जहां एक खिलाड़ी पेनल्टी स्पॉट से गोल पोस्ट में शॉट मारता है, जिसे सिर्फ़ गोलकीपर ही रोक सकता है। नॉकरआउट और क्लासिफ़िकेशन स्टेज के दौरान जब कोई मुक़ाबला ड्रॉ पर ख़त्म होता है, तब उसका फ़ैसला शूटआउट के ज़रिए किया जाता है। जहां 8 सेकंड्स के अंदर अटैकर को गोल करने का समय मिलता है और उसके सामने सिर्फ़ गोलकीपर की चुनौती होती है।
हॉकी का इतिहास
हॉकी की जड़ें प्राचीनता की गहराई में दफ़न हैं, जिसका नाम एक फ़्रेंच शब्द ‘हॉकेट’ से लिया गया है। जिसका मतलब होता है शेफ़र्ड का बदमाश, ये हॉकी स्टिक के संदर्भ में कहा गया है। ऐतिहासिक साक्ष्यों से पता चलता है कि मिस्र में 4,000 साल पहले खेल का एक प्राचीन रूप खेला जाता था, जिसमें इथियोपिया (1,000 ईसा पूर्व) और ईरान (2,000 ईसा पूर्व) में प्राचीन विविधताएं निभाई जाती थीं।
जिसके बाद ये धीरे धीरे इंग्लैंड के स्कूल और क्लबों में खेला जाने लगा, ये खेल फिर भारत, पाकिस्तान, अफ़्रीकी देशों के साथ साथ ऑस्ट्रेलिया और दूसरे देशों में भी पहुंचा। अब हॉकी एक वैश्विक खेल बन गया है जहां सभी पांच उपमहाद्वीप पुरुष और महिला टीम की टॉप-20 रैंकिंग में नज़र आते हैं।
ओलंपिक में हॉकी
हॉकी को पहली बार आधिकारिक तौर पर लंदन 1908 गेम्स के दौरान शामिल किया गया, जहां 6 टीमों के बीच प्रतिस्पर्धा हुई थी और स्वर्ण पदक इंग्लैंड को हासिल हुआ था। हालांकि इसे अगले ओलंपिक से बाहर कर दिया गया था और एक बार फिर 1920 ओलंपिक में ये शामिल किया गया लेकिन दोबारा पेरिस 1924 गेम्स से भी ये खेल बाहर रहा। एम्सट्रेडम 1928 गेम्स में एक बार फिर ये खेल ओलंपिक का हिस्सा बना, इसके बाद से हॉकी ओलंपिक में लगातार खेली जा रही है। मॉस्को 1980 गेम्स में महिलाओं की हॉकी टीम भी ओलंपिक में शिरकत करने लगी।
1970 तक हॉकी घास पर खेली जाती थी, लेकिन अब बड़े स्तर के मुक़ाबले सिंथेटिक टर्फ़ पर खेले जाते हैं जिसपर गेंद घास की तुलना में कहीं ज़्यादा तेज़ और सपाट दौड़ती है। एक हॉकी गेंद 200 किमी प्रति घंटे की रफ़्तार से निकल सकती है। पहली बार किसी ओलंपिक में जब कृत्रिम टर्फ़ का इस्तेमाल हुआ था तो वह था मोंट्रियाल 1976 गेम्स। घास से सिंथेटिक टर्फ़ पर बदलने के दौरान इस खेल में भी काफ़ी बदलाव आएं, जिसने खिलाड़ियों को भी नई स्किल और रफ़्तार वाला बनाया।
टोक्यो 2020 में पुरुष और महिला दोनों ही टीमों की शुरुआत पूल फ़ॉर्मेट से होगी, जहां से मज़बूत टीमें नॉक आउट स्टेज का सफ़र तय करेंगी, और फिर पदक के लिए मुक़ाबले खेले जाएंगे।
ओलंपिक में किस देश का रहा है दबदबा ?
ओलंपिक में हॉकी के खेल का सबसे क़ामयाब देश भारत रहा है, जिसके नाम अब तक 8 स्वर्ण पदक हैं। ये सारे पदक भारतीय पुरुष टीम ने 1928 से 1980 के बीच हासिल किए थे, लेकिन हाल के सालों में पुरुष और महिला दोनों ही टीमों में ऑस्ट्रेलिया, नीदरलैंड, जर्मनी, ग्रेट ब्रिटेन और अर्जेन्टीना का दबदबा रहा है।
1996 से 2012 के बीच की बात करें तो इस दौरान खेले गए पांच ओलंपिक में से चार के फ़ाइनल तक का सफ़र नीदरलैंड की पुरुष टीम ने तय किया है, जिसमें अटलांटा 1996 और सिडनी 2000 में लगातार दो स्वर्ण भी इस देश के नाम हैं। नीदरलैंड की महिला टीम भी किसी से कम नहीं है, उन्होंने तो 2004 से लेकर 2016 ओलंपिक तक हर फ़ाइनल में खेला है, जिसमें बीजिंग 2008 और लंदन 2012 में इनके नाम गोल्ड मेडल रहा, नीदरलैंड महिला टीम ने पहली बार 1984 ओलंपिक में गोल्ड जीता था। जर्मनी और ऑस्ट्रेलिया ने भी ओलंपिक में इस खेल पर गहरी छाप छोड़ी है, जर्मनी नाम अब तक पांच स्वर्ण पदक (पुरुष: 1972, 1992, 2000 और 2012, महिला: 2004) हैं। ऑस्ट्रेलिया के नाम कुल चार स्वर्ण पदक हैं जिसमें तीन ऑस्ट्रेलियाई महिला टीम (1988, 1996 और 2000) और एक पुरुष टीम (2004) के सिर हैं।
अर्जेन्टीना की पुरुष टीम ने भी इतिहास के पन्नों में अपना नाम सुनहरे अक्षरों में दर्ज करा लिया जब रियो 2016 में इस टीम ने पहली बार स्वर्ण पदक हासिल किया। हालांकि अर्जेंटीना की महिला टीम ने 2000 से 2012 तक लगातार चार बार पोडियम पर अपनी मौजूदगी ज़ाहिर की थी। रियो 2016 में पहली बार ग्रेट ब्रिटेन की महिला टीम ने भी स्वर्ण पदक जीता था, इससे पहले उनके नाम लंदन 2012 में कांस्य पदक था। लिहाज़ा अर्जेन्टीना की पुरुष टीम और ग्रेट ब्रिटेन की महिला टीम पर टोक्यो 2020 में अपने ख़िताब की रक्षा करने का दबाब होगा, तो इसके लिए उन्हें कई मज़बूत और इन फ़ॉर्म देशों से कड़ी चुनौती भी मिलना तय है।
हॉकी में कब किस रंग के दिखाए जाते हैं कार्ड ?
हॉकी अंपायरों के पास खिलाड़ियों को नियम का उल्लंघन करने के लिए कार्ड होते हैं। पीले कार्ड (Yellow Card) का अर्थ होता है उस खिलाड़ी को 5 या 10 मिनट के लिए मैच से बाहर रहना होगा, गंभीर फ़ाउल पर लाल कार्ड (Red Card) भी खिलाड़ियों को दिए जाते हैं, जिससे वह उस मैच में दोबारा नहीं खेल पाते। अंपायरों के पास एक और रंग का कार्ड होता है, एक हरा कार्ड (Green Card), ये देने का मतलब होता है खिलाड़ी को चेतावनी देना और उसे दो मिनटों के लिए मैदान से बाहर जाना होता है।