जूनियर हॉकी विश्व कप - कांस्य पदक से चूकी भारतीय महिला टीम, शूटआउट में इंग्लैंड ने हराया

भारतीय जूनियर हॉकी टीम शूटआउट में एक भी गोल नहीं कर पाई।
भारतीय जूनियर हॉकी टीम शूटआउट में एक भी गोल नहीं कर पाई।

भारतीय महिला टीम दक्षिण अफ्रीका में चल रहे FIH जूनियर हॉकी विश्व कप में कांस्य पदक से चूक गई। टीम इंडिया तीसरे-चौथे स्थान के मुकाबले में पेनेल्टी शूटआउट में इंग्लैंड के हाथों 3-0 से हारकर चौथे स्थान पर रही। फुल टाइम तक दोनों टीमों का स्कोर 2-2 से बराबर था लेकिन शूटआउट में टीम की ओर से कोई भी खिलाड़ी गोल नहीं कर सका। इंग्लैंड ने पहली बार जूनियर विश्व कप का कोई पदक जीता है, जबकि भारत ने इकलौता पदक कांस्य के रूप में साल 2013 में अपने नाम किया था।

भारत को सेमीफाइनल में नीदरलैंड के हाथों हार मिली थी जबकि इंग्लैंड की टीम जर्मनी से हारी थी। इसी कारण तीसरे स्थान के लिए दोनों टीमों के बीच मुकाबला हुआ। मैच के चारों गोल फील्ड गोल के रूप में आए। पहले क्वार्टर में कोई टीम गोल नहीं कर सकी जबकि भारत को 2 पेनेल्टी कॉर्नर का मौका मिला था। दूसरे क्वार्टर में 17वें मिनट में इंग्लैंड के लिए मिली गिगलियो ने फील्ड गोल कर इंग्लैंड को 1-0 से आगे कर दिया। इसके 3 मिनट बाद ही भारत की स्टार फॉरवर्ड मुमताज खान ने गोल कर मैच 1-1 से बराबर कर दिया।

इंग्लैंड का जूनियर हॉकी विश्व कप में ये पहला मेडल है।
इंग्लैंड का जूनियर हॉकी विश्व कप में ये पहला मेडल है।

तीसरे क्वार्टर में दोनों टीमें गोल करने में नाकामयाब रहीं। चौथे क्वार्टर की शुरुआत में मुमताज खान ने फिर गोल कर भारत को 2-1 की बढ़त दिला दी। इंग्लैंड ने मैच खत्म होने से 3 मिनट पहले क्लॉडिया स्वेन के गोल की मदद से दूसरा गोल कर मैच बचाया और स्कोर फुलटाइम पर 2-2 रहा। इसके बाद विजेता के निर्धारण के लिए पेनेल्टी कॉर्नर का सहारा लिया गया। भारत के लिए कप्तान सलीमा टेटे, संगीता कुमारी, शर्मिला देवी ने शुरुआती तीन शॉट लिए, लेकिन इंग्लैंड की गोलकीपर ईवी वुड्स ने तीनों बार गोल होने से बचा लिया। वहीं इंग्लैंड की टीम की ओर से केटी कर्टिस, क्लॉडिया स्वैन और मैडी ऐक्सफोर्ड ने गोल कर इंग्लैंड को 3-0 से शूटआउट में जीत दिलाई।

इंग्लैंड की टीम तीसरी बार विश्वकप में कांस्य पदक के लिए खेल रही थी और उसे पहली बार इस पदक को जीतने में सफलता मिली है। खास बात ये है कि साल 2013 में भारतीय टीम ने इंग्लैंड को ही हराकर विश्व कप का अपना पहला और इकलौता कांस्य पदक जीता था।

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